राह चलने से ही कटती है चला करते हैं।
राह चलने से ही कटती है चला करते हैं।
बेख़बर हैं वही दूरी का गिला करते हैं।
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इनके ऊपर नहीं मौसम की हुकूमत चलती।
ख़्वाब वो फूल हैं हर हाल खिला करते हैं।
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थोड़ी आसान हुआ करती ज़िंदगी उनकी।
आगे बढ़के जो मुश्किलों से मिला करते हैं।
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मुझको बरसात का मौसम हबीब लगता है।
शहरों जंगल सभी हँसते हैं धुला करते हैं।
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जब तलक जिंदगी , इनसे , निज़ात किसको है।
हादसे आते हैं बेख़ौफ़ मिला करते हैं।
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धूप में चल रहे जो उनका हाल कैसे कहूँ।
यहाँ तो आदमी साये में जला करते हैं।
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सब “नज़र” देखते हैं तुझको बड़ी हैरत से।
ख़्याल दिल में तेरे कितने पला करते हैं।
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कुमारकलहँस,16,01,2019,बोइसर,पालघर।