राह ए मुहोबत
उफ्फ ! कितनी दुश्वार है ये राह ए मुहोबत,
मंजिल दूर तलक नजर आती नहीं ।
नाखुदा है कहां मेरा , ए खुदा बता !
उसके बिना कश्ती साहिल पर लग सकती नहीं ।
उफ्फ ! कितनी दुश्वार है ये राह ए मुहोबत,
मंजिल दूर तलक नजर आती नहीं ।
नाखुदा है कहां मेरा , ए खुदा बता !
उसके बिना कश्ती साहिल पर लग सकती नहीं ।