राहों में
राहों में
यूँ ही चलते चलते
एक दिन तुम मिल गईं थीं मुझे
मैं आज भी
तुम्हारी तलाश में
भटक रहा हूँ वहीं कहीँ
सोचता हूँ कहीं
वो मेरा ख़्वाब तो नहीं था
…अगर था भी
तो बताओ..
मेरी हथेलियों पर
तुम्हारे मरमरी हाथों की
भीनी-भीनी सी महक
अब तलक क्यूँ है????
हिमांशु Kulshrestha