राहू निगले सोम को
राहू निगले सोम को, केतू आँख दिखाय ।
हालत अपनी इस तरह, रोज़ गहन लग जाय ।।
रोज़ गहन लग जाय, हाय मन बेबस चंदा ।
अब तौ कछू न भाय, गले बेक़ारी फंदा ।।
कह दीपक कविराय, कबहुँ ना पिघले काहू ।
कोई मुझे बताय, तलक़ कब निगले राहू ।।
राहू निगले सोम को, केतू आँख दिखाय ।
हालत अपनी इस तरह, रोज़ गहन लग जाय ।।
रोज़ गहन लग जाय, हाय मन बेबस चंदा ।
अब तौ कछू न भाय, गले बेक़ारी फंदा ।।
कह दीपक कविराय, कबहुँ ना पिघले काहू ।
कोई मुझे बताय, तलक़ कब निगले राहू ।।