रास्ता
पेरो से चलना है या रास्ते से.
इसका खुद ही करना चाहिए फैसला.
क्यूकी रास्ते पर चलने का
हमारा अपना ही लगता है हौसला.
रास्ते की मंजिल का कोई निश्चित नही होता है स्थान.
लेकिन पेरो को अपनी मंजिल की हमेशा होती है पहचान.
रास्ता दिखाने वालों की दुनिया मे होती है भरमार..
लेकिन सारासार का खुद ही को करना होता है विचार.
लोगो की तो होती है रास्ता दिखाने की फितरत.
लेकिन उस पर चलने की तो करनी पडती है हमे ही कसरत.
इसलिये हर रास्ते का करना चाहिए अवलोकन.
तर्कबुद्धी की कसोटी पर करणा चाहिये मनोमंथन.
ताकी उसपर चलना हो आसान.
और अपनी लक्ष पर पुरा पुरा हो ध्यान..