राष्ट्र निर्माण और युवा
मुकद्दर से हारकर राह बदलने वालों की कमी नहीं है, गुज़र गए देश के कई वीर फिर भी देशवासियों की आँखों मेंv नमी नहीं है…. भले ही जाहिर ना करे पर ये तो निश्चित है कि युवाओ के सीने में धधकती आग अभी थमी नहीं है…
मैं राष्ट्र निर्माण और युवा शक्ति पर अपने विचार लेकर उपस्थित हूँ…
शुरुवात करते है युवाओ से… युवा शब्द का अर्थ क्या है..
“आँखों में वैभव के सपने, मन में तूफानों सी गति हो, ह्रदय में उठते हुए ज्वार हो, परिवर्तन की ललक हो, अदम्य साहस हो, स्पष्ट संकल्प लेने की चाहत का नाम है युवावस्था। हारे मन और थके तन
से कोई भी युवा नहीं होता, फिर भले ही उसकी आयु कुछ भी क्यों ना हो? यौवन तो वहाँ है, जहाँ शक्ति का तूफान अपनी संपूर्ण प्रचंडता से सक्रिय है। यदि समाज की तुलना किसी उद्यान से की जा सकती है , तो नवयुवक – वर्ग उस उद्यान का सुगन्धित पुष्प होता है ।
युवा शक्ति ही है जिसके दम पर किसी निर्माण, आंदोलन, दुनिया की कोई भी विचारधारा या विध्वंश की नीव रखी जाती है।
एक मजबूत राष्ट्र विकास के लिए युवाओं में एक फौलादी जिगर, दृढ़ इच्छा शक्ति, पराक्रम, धैर्य, संयम की जबरजस्त मांग होती है।
“वो युवा है, सोच रखता है कुछ नया कर दिखाने का। उसमे जोश है, सोच को परिणाम तक पहुचाने का।”
देश का युवा देश को बदलने और आकार देने का सामर्थ्य रखता है पर…
“क्या एक व्यक्ति पूरे राष्ट्र में बदलाव ला सकता है …?” प्रगति में बाधा डालता है। राष्ट्र की सेवा करने के लिए सही रवैया और आग्रह बहुत महत्वपूर्ण है। परिवर्तन और प्रगति लाने के लिए युवा सामाजिक अभिनेता हैं।
समस्याओं की परिधि व्यक्तिगत हो या पारिवारिक, सामजिक – राष्ट्रीय हो अथवा वैश्विक, युवाशक्ति इनका समाधान करने में कभी नहीं हारी है। रानी लक्ष्मी बाई, वीर सुभाष, स्वामी विवेकानंद के रूप में अनेक अनगिनत आयाम प्रकट हुए हैं। यह प्रक्रिया थमी नहीं है, आज भी जारी है।
स्वामी विवेकानंद जी का कहना है कि “युवाओ को बीते कल से सीख लेनी होगी, आज के लिए जीना होगा और आने वाले कल पे आशाएं बनाई रखनी होगी।”
इसी विचार को समाहित करते हुए युवा शक्ति, राष्ट्र निर्माण में क्या कर सकती है य़ह मैं प्राचीन, मध्यकालीन और वर्तमान भारत के उदाहरण लेकर बताना चाहूँगी।
सबसे पहले प्राचीन काल, जब हम फिरंगियों के फेरे में फस गए थे तो ” रंग दे बासंती चोला “की एक आवाज पर टोले के टोले उमड़ आते थे। युवा लड़ जाते थे, तो वो भी राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे रहे होते थे। भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद उन्ही युवाओ में से है, जो आज भी हर युवाओ की प्रेरणा है।
मध्यकालीन भारत की बात करे तो 62,65,71 और 1999 के युद्ध में अपनी जान का बलिदान देकर भी राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले कैप्ट. विक्रम बत्रा, मनोज कुमार पांडेय को कोई नहीं भूल सकता। अब बात आती है वर्तमान युवाओ की। आज का युवा चौराहे पर खड़ा है, किधर जाए और किधर ना जाए। कुछ युवाओ को मुसीबत में फंसे लोगों की जान बचाने से ज़्यादा सेल्फी लेकर लाइक बढ़ना अधिक पसंद है।आज के इस दौर में वो युवा जिनके ऊपर जिम्मेदारी थी अपने देश, समाज और राष्ट्र की आशाओं को बाँधे रखने की वही युवा अब चार बाई चार इंच की छोटी सी स्क्रीन पर अपनी कोमल उंगलियों के छूने मात्र से अपने भावनाओ की ‘इमोजी’ भेज रहा है।
मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि यौवन में शक्ति की महाअनुदान मिलते तो सभी को है, पर टिकते वहीं हैं, जहाँ इनका सदुपयोग होता है। ज़रा सा दुरुपयोग होने पर शक्ति यौवन का संहारक बन जाती है। कालिख की अंधेरी कालिमा में इसकी प्रभा विलीन होने लगती है।
नवयुवको के चरित्र निर्माण के नीव पर राष्ट्र निर्माण में हम उन्हें किस प्रकार प्रयोग में लाए अब यह प्रश्न हमारे सामने है।
देश का अधिकतर युवा वर्ग बेरोजगार है, क्यूंकि उनके पास उनकी शिक्षा के अनुरूप काम नहीं है।
अगर सरकार चाहे तो जनगणना में सरकारी कर्मचारियों की जगह पर युवाओ को ले सकती है। इसी प्रकार चुनावो के समय भी हम अपनी युवा शक्ति को सुचारू रूप से लगा सकते है। कुम्भ मेलों में पुलिस के साथ देश की युवा शक्ति बहुत मददगार साबित हो सकती है। इसी प्रकार के अनगिनत कार्यक्रमों में देश की युवा शक्ति काम आ सकती है।
पर इसके बाद भी क्या देश की युवा शक्ति जागरूक है??
आज भी लिंग आधारित भेदभाव ने युवा महिलाओं और लड़कियों को सामाजिक आर्थिक गतिविधियों में भाग लेने से वंचित कर दिया है। सतत विकास के लिए, युवाओं को समान अवसर प्रदान करना महत्वपूर्ण है।
जब देश की युवा शक्ति ये समझ जाएगी कि महिला की पूजा नहीं इज्जत होनी चाहिए, जाति का नरक्षण नहीं सामजिक सशक्तिकरण पर बात होनी चाहिए, स्वच्छता अभियान केवल सरकार नहीं ब्लकि सड़क पर चल रहे हर इंसान को हाथ बटाने की ज़रूरत है, स्वच्छ और स्वस्थ भारत सबकी जिम्मेदारी है और यह सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं कि कोई गरीब बच्चा भोजन के लिए नहीं ब्लकि ज्ञान अर्जित करने के लिए सरकारी स्कूल की चौखट पे कदम रखे तो ही सही मायनों में राष्ट निर्माण होगा। युवा शक्ति को बड़ी बड़ी नहीं छोटी छोटी कोशिशे करनी होंगी, क्यूंकि पहाड़ से नहीं पत्थरों से ठोकर लगती है।
नेल्सन मंडेला की एक ख़ूबसूरत कहावत है कि, “आज के युवा कल के नेता हैं” जो हर एक पहलू में सही लागू होता है।
मेरे विचारो में जब तक देश का युवा अपनी सफलता के लिए मंदिरों में जा जाकर, नारियल फोड़कर भगवान को रिश्वत लगाता रहेगा, बिल्ली के रास्ता काटने पर खड़ा हो जाएगा, अपने धर्म और अपनी जाती को ऊँचा बताकर दूसरे धर्मों की अवहेलना करता रहेगा तब तक राष्ट्र निर्माण सम्भव नहीं।
अंत में मैं यही कहना चाहूँगी कि
जब देश का युवा शक्ति यह समझ जाएगी कि देश की जिम्मेदारी नहीं हमे आगे ले जाने की, हमारी जिम्मेदारी है देश को आगे ले जाने की तो हम राष्ट्र निर्माण की एक सीढ़ी चढ़ चुके होंगे।
धन्यवाद