राष्ट्रीय एकीकरण में सरदार वल्लभभाई पटेल जी की भूमिका
प्रस्तावना :- जब-जब देश के सामने कोई संकट आया है तब-तब ऐसे महापुरूष भी सामने आए हैं जिन्होंने संकट से इस देश को उबारा है। ऐसे महापुरूषों में भारत की एकता और अखंडता के शिल्पकार लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल जी का नाम सबसे पहले आता है। जिन्होंने राष्ट्रीय एकता के बीज का रोपण किया, जिसका परिणाम एक सम्पूर्ण भारत है।
जीवन परिचय :- सरदार पटेल जी का जन्म 31 अक्टूबर सन् 1875 में गुजरात के नडियाद में हुआ था। इनके पिता झाबेर भाई और माता का नाम लाडबा पटेल था। बहुत कम लोगों को पता है कि उनके जन्म की तारीख क्या है? 31 अक्टूबर यह उनका वास्तविक जन्मदिन नहीं है क्योंकि जब 1897 में मैट्रिक की परीक्षा का फार्म भरने की बारी आई तो सरदार पटेल ने 31 अक्टूबर 1875 उसमें भर दिया और फिर बिना कुछ सोचे-समझे उनका जन्मदिन इसी तारीख को मनाया जाने लगा। इस बात का ज़िक्र उनके सहयोगी ने अपनी किताब “राष्ट्रनिर्माता” में किया है। 1948 में हुई गाँधी जी की मृत्यु के बाद पटेल को इस बात का गहरा आघात पहुँचा और उन्हें कुछ महीनो बाद हार्ट अटैक हुआ, जिससे वे उभर नहीं पाए और 15 दिसम्बर 1950 को इस दुनिया से चले गए!
उपनाम एवं लक़व :- पटेल साहब के नाम में दो शब्द विशेष जुड़कर आते हैं वो हैं – “सरदार” और “लौह-पुरुष”
1928 का समय था जब बारडोली नामक स्थान पर अकाल पड़ा हुआ था और वहां की बर्तानिया ‘ब्रिटिश’ हुकूमत ने लगभग 20% से भी ज्यादा टैक्स लगा रक्खा था और कोई फसल नहीं हो इस दुर्दशा की स्थिति में इतना बड़ा टैक्स कहां से दिया जा सकता था इस स्थिति में ज़मीनें, मवेशियां ये सब गिरवीं रखने की नौवत आ गई थी। ऐसी स्थिति में वल्लभ भाई पटेल ने किसानों के उस हुज़ूम का नेतृत्व किया बढ़-चढ़कर उस आंदोलन को हवा दी, अगुवाई की और अपनी रहनुमाई में बर्तानिया हुकूमत को झुकने पर मज़बूर किया एवं सभी टैक्सों को माफ़ करवाया। यही वज़ह थी कि वहां के किसानों ने उन्हें सरदार वल्लभ भाई पटेल का नाम दिया और तब से आज तक भारतीय इतिहास में या विश्व के इतिहास में वल्लभभाई पटेल को सरदार पटेल के नाम से जाना गया। दूसरी जो बात इनके नाम से जुड़ी है वो है लौह-पुरुष! 15 अगस्त 1947 को भारतवर्ष को स्वतंत्रता देने के पूर्व ब्रिटेन के अन्तिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने भारतीय नेताओं के समक्ष यह बात रखी कि बिना भारत का विभाजन किए भारत को स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती। उस समय भारत 565 रियासतों में बंटा हुआ था और अंग्रेजी हुकुमरानों ने उन्हें एक भारतीय झंडे के नीचे लाने का कोई प्रयास नहीं किया और भारत के नेताओं के ऊपर छोड़ दिया कि भारत का विभाजन होगा उसे स्वतंत्रता दी जाएगी और इन रियासतों को संभालने की ज़िम्मेदारी आपकी अपनी होगी चाहे जैसे संभालें संभालिए। सरदार पटेल ने देश की इस विकराल ज़िम्मेदारी को अपने कंधों पर लिया और हिन्दुस्तान की स्वतंत्रता की घोषणा के पूर्व केवल तीन रियासतें जिनमें काश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद को 562 रियासतों को अपनी मेधा और दम पर स्वतंत्र भारत के एक झंडे की नीचे लाने का काम किया और स्वतंत्र होने के पश्चात् बाकी बची तीन रियासतों में कुछ जगह उन्हें आंशिक बल भी प्रयोग करना पड़ा और वो कामयाब भी रहे। सन् 1950 से पहले अर्थात् 1947 को देश आज़ाद हुआ और तीन वर्षों के अंदर बाकी बचीं तीन रियासतों को हिन्दुस्तान के झंडे के नीचे लाने के प्रयास में सफल रहे। देश ने उनकी इस कामयाबी से उन्हें लौह-पुरूष या ‘आयरन मैन’ की संज्ञा से नवाजा।
“तुम्हारे नाम के मंदिर नहीं बने हैं कहीं,
न मस्ज़िदों ने ही सज़दा किया है तुम्हें,
मगर ख़ुदाओं से बढ़कर रूतबा होता है,
ज़मींन-ए-हिंद ने वो मर्तबा दिया है तुम्हें!!”
– मनोज मुंतशिर
शिक्षा :- सरदार पटेल ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने में काफी समय लगा। उन्होंने 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की। इनका सपना वकील बनने का था और अपने इस सपने को पूरा करने के लिए उन्हें इंग्लैंड जाना था, लेकिन उनके पास इतने भी आर्थिक साधन नहीं थे कि वे एक भारतीय महाविद्यालय में प्रवेश ले सकें। उन दिनों एक उम्मीदवार व्यक्तिगत रूप से पढ़ाई कर वकालत की परीक्षा में बैठ सकते थे। ऐसे में सरदार पटेल ने अपने एक परिचित वकील से पुस्तकें उधार लीं और घर पर पढ़ाई शुरू कर दी।
राजनैतिक सफ़र :- इंग्लॅण्ड जाकर इन्होने 36 महीने की पढाई को 30 महीने में पूरा किया, उस वक्त इन्होने कॉलेज में टॉप किया। इसके बाद वापस स्वदेश लोट कर अहमदाबाद में एक सफल और प्रसिद्ध बेरिस्टर के रूप कार्य करने लगे, इंग्लैंड से वापस आये थे, इसलिए उनकी चाल ढाल बदल चुकी थी। वे सूट-बूट यूरोपियन स्टाइल में कपड़े पहनने लगे थे। इनका सपना था ये बहुत पैसे कमाये और अपने बच्चो को एक अच्छा भविष्य दे, लेकिन नियति ने इनका भविष्य तय कर रखा था। गाँधी जी के विचारों से प्रेरित होकर इन्होने सामाजिक बुराई के खिलाफ अपनी आवाज उठाई। भाषण के जरिये लोगो को एकत्र किया,इस प्रकार रूचि ना होते हुए भी धीरे-धीरे सक्रीय राजनीती का हिस्सा बन गए।
राजनीति में सक्रियता :- 15 अगस्त 1947 के दिन देश आजाद हो गया, इस आजादी के बाद देश की हालत बहुत गंभीर थी। पाकिस्तान के अलग होने से कई लोग बेघर थे। उस वक्त रियासत होती थी, हर एक राज्य एक स्वतंत्र देश की तरह था, जिन्हें भारत में मिलाना बहुत जरुरी थी। यह कार्य बहुत कठिन था, कई वर्षो की गुलामी के बाद कोई भी राजा अब किसी भी तरह की आधीनता के लिए तैयार नहीं था, लेकिन वल्लभभाई पर सभी को यकीन था, उन्होंने ने ही रियासतों को राष्ट्रीय एकीकरण के लिए बाध्य किया और बिना किसी युद्ध के रियासतों को देश में मिलाया। जम्मू कश्मीर, हैदराबाद एवं जूनागढ़ के राजा इस समझौते के लिए तैयार न थे इसलिए इनके खिलाफ सैन्यबल का उपयोग करना पड़ा और आखिकार ये रियासते भी भारत में आकर मिल गई। इस प्रकार वल्लभभाई पटेल की कोशिशों के कारण बिना रक्त बहे 560 रियासते भारत में आ मिली। रियासतों को भारत में मिलाने का यह कार्य नम्बर 1947 आजादी के महज कुछ महीनों में ही पूरा किया गया। गाँधी जी ने कहा कि यह कार्य केवल सरदार पटेल ही कर सकते थे। भारत के इतिहास से लेकर आज तक इन जैसा व्यक्ति पुरे विश्व में नहीं था, जिसने बिना हिंसा के देश एकीकरण का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया हो। उन दिनों इनकी इस सफलता के चर्चे पुरे विश्व के समाचार पत्रों में थे,इनकी तुलना बड़े-बड़े महान लोगो से की जाने लगी थी।कहा जाता हैं अगर पटेल प्रधानमंत्री होते, तो आज पाकिस्तान, चीन जैसी समस्या इतना बड़ा रूप नहीं लेती, पटेल की सोच इतनी परिपक्व थी कि वे पत्र की भाषा पढ़कर ही सामने वाले के मन के भाव समझ जाते थे। उन्होंने कई बार नेहरु जी को चीन के लिए सतर्क किया, लेकिन नेहरु ने इनकी कभी ना सुनी और इसका परिणाम भारत और चीन का युद्ध हुआ था।
उनकी सोच एवं विचार :- पटेल जी एक राजनेता के साथ-साथ एक महान विचारक भी थे जिनके शब्द आज भी अधिकांश रूप से बोले जाते हैं। “कभी- कभी मनुष्य की अच्छाई उसके मार्ग में बाधक बन जाती हैं कभी- कभी क्रोध ही सही रास्ता दिखाता हैं, क्रोध ही अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की ताकत देता हैं! डर का सबसे बड़ा कारण विश्वास में कमी हैं!”
राष्ट्रीय सम्मान :- 1991 में इन्हें भारत रत्न का सम्मान दिया गया,इनके नाम से कई शेक्षणिक संस्थायें हैं।हवाईअड्डे को भी इनका नाम दिया गया। स्टेच्यु ऑफ़ यूनिटी के नाम से सरदार पटेल के 2013में उनके जन्मदिन पर गुजरात में उनका स्मृति स्मारक बनाने की शुरुवात की गई, यह स्मारक भरूच (गुजरात) के पास नर्मदा जिले में हैं।
भारत जैसा देश, जो विविधताओं से भरा है, जहां धर्म, जाति, भाषा, सभ्यता और संस्कृतियां, एकता को बनाए रखना बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए, राष्ट्र की एकता को स्थापित करने के लिए भारत सरकार ने 2014 में राष्ट्रीय एकता दिवस का प्रस्ताव रखा क्योंकि सरदार पटेल भारत के एकीकरण के लिए जाने जाते हैं, इसलिए राष्ट्रीय एकता दिवस उनकी जयंती पर मनाया जाता है!
निष्कर्ष :- उपरोक्त बिन्दुओं से स्पष्ट है कि सरदार वल्लभ भाई पटेल एक कुशल वक्ता के साथ-साथ बेहतर राजनीतिज्ञ और महान वकील थे। इनकी वाक् शक्ति ही इनकी सबसे बड़ी ताकत थी, जिस कारण उन्होंने देश के लोगो को संगठित किया। इनके प्रभाव के कारण ही एक आवाज पर आवाम इनके साथ हो चलती थी। इतना बड़ा एकता का कौशल इन्हीं के पास था जिसका सफल प्रयास आज़ाद और एकत्रित भारत है। इसलिए आपका जन्म महत्वपूर्ण नहीं है आपकी मृत्यु महत्वपूर्ण है क्योंकि कोई भी व्यक्ति महान होकर पैदा नहीं होता वो अपने कर्मों से महान बनता है!