दिल और दिमाग़
पुस्तक मेले में उसका लेखक मन किया कि वह अपनी पसन्द की कुछ किताबें ख़रीदे।
हर बार वह कोई किताब उठता और रख देता। उसने अनेक किताबें उलटी-पुलटी और मूल्य देखकर हर बार उसकी हिम्मत जवाब दे जाती।
तीस प्रतिशत छूट के साथ उसके मनपसन्द लेखक “मोहन राकेश समग्र” पुस्तक सेट, जिसे वह काफ़ी लम्बे अरसे से ख़रीदना चाहता था। अन्ततः उसके दिल ने पुस्तक सेट ख़रीदने का मन बनाया और कैश काउंटर की तरफ़ क़दम बढ़ाये।
तभी उसके कानों में स्वर गूँजे, “देखो जी, आप लेखक हो ठीक है, लेकिन जिम्मेदारियाँ पहले हैं। हज़ार रुपए की किताबें न ख़रीद लाना। पहले ही सैकड़ों किताबें तुम्हारे निजी पुस्तकालय में धूल फाँक रही हैं। इतने में कितने सालों का राशन पानी आ जाता!”
उसने पीछे मुड़कर देखा कोई नहीं था।
उसके दिल पर दिमाग़ हावी था और उसने किताब सेट वापिस सेट वहीँ रख दिया। जहाँ से उठाया था।
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