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23 Jun 2022 · 2 min read

रावण बध के भेदिया

रावण बध के भेद बताबे वाला मे रामायण आ रामचरित मानस मे मतभिन्नता हैय।

बाल्मीकि रामायण के अनुसार इन्द्र के सारथि मातलि हैय।

अथ संस्मारयामास मालति राघवं तदा।
अजानन्वि किं वीर त्वमेनमनुवर्तसे।।१।

मातलि ने श्री रघुनाथ जी को कुछ याद दिलाते हुए कहा -वीरवर !आप अनजान की तरह क्यों इस राक्षस का अनुसरण कर रहे हैं?(,यह जो अस्त्र चलाता है, उसके निवारण करने वाले अस्त्र का प्रयोग करके रह जाते हैं),।

विसृजास्मै वधाय त्वमस्त्रं पैतामहं प्रभो।
विनाशकाल:कथितो य: सुरै:सोद्धं वर्त्तते।।२।।

प्रभो! आप इसके वध के लिए ब्रह्मा जी के अस्त्र का प्रयोग कीजिए। देवताओं ने इसके विनाश का जो,समय बताया है,वह अब आ पहुंचा है।

स विसृष्टो महावेग: शरीरान्तकर:पर:।
बिभेद हृदयं तस्य रावणस्य दुरात्मनं।।१८।।

शरीर का अंत कर देने वाले उस महान वेगशाली श्रेष्ठ वाण ने छूटते ही दुरात्मा रावण के हृदय को विदिर्ण कर डाला।

रुधिराक्त: स वेगेन शरीरान्तकर:शर:।
रावणस्य हरन् प्राणान् विवेश धरणीतलम्।।१९।।

शरीर का अंत करके रावण के प्राण हर लेने वाला वह वाण उसके खून से रंग कर वेगपूर्वक धरती में समा गया।

स शरो रावणं हत्या रुधिरार्द्रकृतच्छवि;।
कृतकर्मा निभृतवत् स तूणिं पुनराविशत्।।२०।।

इस प्रकार रावण का बध करके खून से रंगा हुआ वह सौभाग्यशाली बाण अपना काम पूरा करने के पुन:विनित सेवक की भांति श्री रामचन्द्र जी के तरकस में लौट आया।

रामचरित मानस के अनुसार रावण के भाई विभीषण भेद बताबे वाला हैय।

नाभिकुंड पियुष बस याकें।नाथ जिअत रावनु बल ताकें।।
सुनत विभिषण बचन कृपाला।हरषि गहे कर बान कराला।।

इसके नाभि कुंड में अमृत का निवास है।हे नाथ! रावण उसी के बल पर जीता है। विभिषण के वचन सुनते ही कृपालु श्री रघुनाथ जी ने हर्षित होकर हाथ में विकराल बाण लिये।

सायक एक नाभि सर सोषा।अपर लगे भुज सिर करि रोषा।
लै सिर बाहु चले नाराचा।सिर भुज हीन रूंड महि नाचा।।

एक बाण ने नाभि के अमृत कुंड को सोख लिया।दूसरे तीस बाण कोप करके उसके सिरो और भुजाओं में लगे।बाण सिरो और भुजाओं को लेकर चले। सिरों और भुजाओं से रहित रूंड (धड़) पृथ्वी पर नाचने लगा।

अइ प्रकार से रावण बध के भेद बताबे वाला मे रामायण आ रामचरित मानस मे मतभिन्नता हैय।

-आचार्य रामानंद मंडल सामाजिक चिंतक सह साहित्यकार सीतामढ़ी।

Language: Maithili
Tag: लेख
195 Views
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