रावण का परामर्श
रावण का परामर्श
दशहरे के दिन जब दहन हेतु मैं पहुंचा रावण के पुतले के पास,
मेरे कानो में गूंजा रावण का गर्वीला उपहास भरा मौन अट्टहास।
बोला,” आपआज प्रसन्न हो सकते हो मुझे जलाकर मित्र,
पर अपनी कल्पना में मिटा दो मेरे अंत होने का चित्र।
मानव हमेशा ढूंढ़ता है बाहर दूसरों में मेरा निवास,
पर भूल जाता है कि हर इंसान के अंदर है मेरा वास।
कुछ में सदा सुप्त रहता हूँ मैं और कुछ में जागृत हो जाता हूँ,
और फिर दुनिया को अपनी कलाकारी का शौर्य दर्शाता हूँ।
मेरे सच्चे अनुयायियों की है आज सारे संसार में बहुत भरमार,
मिलेंगे वे हर क्षेत्र में -राजनीति,धर्म, सरकारी-सेवा या हो व्यापार।
देख कर उनके कारनामें, मैं घोर हीन -भावना से घिर जाता हूँ,
क्योंकि उनकी महानता के समक्ष स्वयं को बहुत छोटा पाता हूँ।
मुझे न्यायसंगत नहीं लगता जो इतना बड़ा हो गया मेरा नाम,
आज के सन्दर्भ में तो बहुत छोटा है जो मैंने किया था काम।
अगर सच में मेरा उन्मूलन चाहते हो तो अपने अंदर झांको,
दूसरों में मुझे खोज कर मिटाने हेतु व्यर्थ में मत धूल फांको। ‘’
डॉ हरविंदर सिंह बक्शी
30 -10 -2023