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29 Oct 2023 · 1 min read

राम वन गमन -अयौध्या का दृश्य

सार छंद १६+१२=२८

राम विपिन को चले लखन सॅग,
चर्चा है घर-घर में।
वन में कैसे रह पायेंगे,
जीते हैं सब डर में।।
****************************
वल्कल वस्त्र देखकर प्रभु के,
चिंतित नगर निवासी।
महलों के रहने वाले अब,
होंगे वन के वासी।।
कैसे काटेंगे दिन रैना,
झोंपड ओ छप्पर में ।
राम विपिन को चले लखन सॅग,
चर्चा है घर-घर में।।
*********************
कोमल मन की, कोमल तन की
सिया संग में जाती।
मन में व्यथित हुई है लेकिन
कुछ भी नहिं कह पाती।।
देखि रही अपने भविष्य को
केवल प्रभु अनुचर में।
राम विपिन को चले लखन सॅग,
चर्चा है घर पर में।
**************************
एक सखी दूजी से पूछे,
बतलाओ यह बहना।
वन में तो कंकड़ पत्थर हैं,
होगा कैसे रहना।।
कोमल मृदुल पांव हैं इनके,
पल में छिलें डगर में।
राम विपिन को चले लखन सॅग,
चर्चा है घर-घर में।।
************************
विरह आग हिय में जलती है,
होगा उन्हें बिछुड़ना।
सोच -सोच कर चिंता खाये,
दुख दारुण अब सहना।।
बहे अश्रु की धार नयन से,
रोते सभी नगर में।
राम -विपिन को चले लखन सॅग,
चर्चा है घर पर में।
**********************

Language: Hindi
Tag: गीत
103 Views

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