राम जी का सपना (लघुकथा)
राम जी का सपना
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ब्रह्म मुहूर्त में पवनपुत्र ने कहा-प्रभु उठो।क्या हो गया आपको?पवनपुत्र की आवाज़ सुनकर प्रभु राम उठे और पवनपुत्र से पूछा – क्या हुआ अंजनीनंदन? मुझे क्यों उठाया? तुम्हें पता नहीं कि मैं कितना अच्छा सपना देख रहा था।तुमने मेरा सपना तोड़ दिया।
पवनपुत्र ने कहा- प्रभु क्षमाप्रार्थी हूँ। जब मैं जगा तो मैंने आपके मुँह से कुछ अस्फुट सी आवाज़ सुनी तो मैं विचलित हो गया।मैंने सोचा, पता नहीं मेरे प्रभु को क्या हो गया है? कहीं आपका स्वास्थ्य तो खराब नहीं हो गया? बस यही जानने के लिए आपको जगाने का दुस्साहस किया।पवनपुत्र ने कहा- प्रभु आपने क्या सपना देखा? कृपया बताइए।
प्रभु राम ने कहा- मैंने देखा एक जगह पर बहुत सारे व्यक्ति इकट्ठे हैं और एक मंच पर बैठे कुछ लोग एक – एक करके उनके सामने अपनी बात रख रहे हैं।सभी लोग उनकी बातें सुनकर तालियाँ बजा रहे हैं। मंच पर बीच में बैठा हुआ व्यक्ति जब बोलने के लिए उठा तो सारे लोग काफी उत्साहित लग रहे थे।जानते हो उसने क्या कहा?
पवनपुत्र ने कहा – प्रभु मुझे कैसे पता हो सकता है।आप ही बताइए।प्रभु राम ने कहा- वह व्यक्ति कह रहा था कि अब मैं अपने प्रभु राम को टेंट में नहीं रहने दूँगा। बहुत हो चुका।अब तो मंदिर बनकर रहेगा।पवनपुत्र मुझे लग रहा है कि मेरे दुर्दिन समाप्त होने वाले हैं।
पवनपुत्र ने कहा- प्रभु वे नेता थे जो एक जन सभा को संबोधित कर रहे थे।दशकों से वे ऐसे ही भाषण देते आ रहे हैं।वह संबोधन लोगों के लिए था , आपके लिए नहीं।
प्रभु राम ने पवनपुत्र से पूछा- तो क्या ब्रह्म मुहूर्त में देखा मेरा सपना असत्य हो जाएगा? मैंने तो सुना है कि सुबह के समय देखा गया सपना सच हो जाता है।
पवनपुत्र बोले- प्रभु जी! गुस्ताखी माफ , पर जो सपना आपने देखा है उसके सच होने की कोई संभावना नहीं है। नेता ऐसा कोई काम नहीं करेंगे कि उनकी दुकान बंद हो जाए।पवनपुत्र का उत्तर सुनकर प्रभु मायूस हो गए।
डाॅ बिपिन पाण्डेय