राम चरित
20 दोहे
रामचरित
मातु शारदा दीजिए, ज्ञान चक्षु वरदान।
सुष्मित लेखन से करूं, कृपा सिंधु का ध्यान।(1)
मति मेरी अति मंद मां ,किस विधि करूं बखान।
कृपा आपकी चाहिए, विधिवत करूं बयान।(2)
रामचरित पावन सुखद ,सहज शुभग श्री राम।
पावन सुख सागर सहज ,कृपा सिंधु घनश्याम।(3)
चतुर्दशी तिथि शुक्ल की , पौष मास निर्दोष।
प्राण प्रतिष्ठित राम जी ,सबको सुख संतोष।(4)
पूजनीय संतन मिलें , मान अयोध्या धाम।
चंदन वंदन सब करें , पावन विग्रह राम।(5)
राम लला दर्शन मिले ,जन्म सफल हो आज।
मनोकामना पूर्ण हो, झंकृत हो हिय साज। (6)
शोभा अनुपम राम की, अनुपम है दरबार।
निर्मित मंदिर अति सुखद ,अवध धाम घर द्वार।(7)
दीपक सरयू तट जलें ,हृदय आत्मविश्वास।
प्राण प्रतिष्ठित राम जी ,अवधपुरी में वास।(8)
रामराज दरबार शुचि ,लोकतांत्रिक लोग।
सम्मानित जनता सभी, जन-जन में सहयोग।(9)
समाजवादी नींव रख,किया राम ने राज।
प्रथम प्रणेता राम है ,नायक सबके आज।
(10)
कल कल सरयू बह रही ,अविरल जल की धार ।
बूंद बूंद करने लगी ,अवधपुरी से प्यार।
(11)
रूठ गए जब मातु से ,राम लला खिसियाय।
ठुमक ठुमक करके चलें ,पग पग पर रिसियाय।(12)
रहे मांग मां से सभी ,चंदा मामा एक।
जल भर लाई थाल मां ,देखो चांद प्रत्येक।
(13)
खेलें राम लखन सहित ,भरत शत्रुघ्न लाल।
दशरथ भी हर्षित हुए, किलकारी सुन बाल।
(14)
पकड़ें बालक खग सभी, चलते-चलते चूक ।
दाना चुगते खग तभी, कूक -कूक कर कूक।
(15)
खेलें कंदुक राम जी, खेल चारों भ्रात ।
राम जीत कर हारते,रखते सब की बात।(16)
आए विश्वामित्र हैं, राजा दशरथ द्वार।
मांगे अनुमति कूच की ,राम लखन तैयार।(17)
दीक्षा शिक्षा शास्त्र की,ऋषि मुनि थे हार ।
नष्ट हुए जब यज्ञ सब , झेल आसुरी वार।
(18)
राम सहित सीखें लखन , सब रण कौशल वार ।
करते रक्षा यज्ञ की, असुरों का संहार।(19)
बाण मार कर राम ने ,फेंक दिया मारीच।
लक्ष्मण ने घायल किया ,मार सुबाहु नीच।
(20)
डॉ. प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, “प्रेम, ”
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