राम गीत 2.0
स्वप्न में राम हैं, नींद में राम हैं,
भक्ति में राम हैं, शक्ति में राम हैं।
पूर्ण विश्वास से तुम सृजन तो करो,
आदि भी राम हैं, अंत भी राम हैं।
हर कण में समाए हुए राम हैं,
पुष्प की हर कली में खिले राम हैं।
राम संसार के मर्म का रूप हैं,
एक सरल से ह्रदय का प्रतिरूप है।
राम सबरी के जूठे किए बेर में,
राम केवट की नौका की पतवार में।
वो मनुष्यता की उच्चिष्ठ सीमा भी हैं,
राम का नाम कष्टों को अभिशाप है।
लेखक/कवि
अभिषेक सोनी “अभिमुख”