*राम की रामांगी *(नामकरण)
हमारी कॉलोनी अभी नई नई विकसित हुई थी । अतः यहां कई मकान व प्लाट खाली पड़े हुए थे । कोई नया किराएदार या मकान मालिक रहने आता तो सभी बहुत प्रसन्न होते, कि चलो धीरे -धीरे कॉलोनी में चहल-पहल बढ़ेगी । मेरे घर के सामने वाला मकान भी काफी समय से खाली पड़ा हुआ था । घर के मकान मालिक ने घर की चाबी मुझे ही देख रखी थी क्योंकि वह जिले के बाहर रहते थे । आज उन्होंने मुझे फोन पर सूचना दी कि उस घर में कोई किरायेदार रहने आ रहे हैं जो कि मिस्टर राम व उनकी पत्नी मिसेज रामांगी हैं । मिस्टर राम एक विद्यालय में सफाई कर्मचारी हैं और मिसेज रामांगी हाउसवाइफ हैं । मैंने कहा-” ठीक है, आप उन्हें रविवार को भेजिएगा मैं उन्हें चाबी दे दूंगी।”
उनके अद्वितीय एवं एक दूसरे के पूरक नामों को सुनकर मुझे उनसे मिलने की बहुत उत्सुकता हुई । मुझे लगा.. कि दोनों एक दूजे के लिए ही बने और समर्पित होंगे । ऊपर वाला भी कैसे चुन-चुन जोड़े बनाता है । फिर मुझे लगा-” हुंह… एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी मेरे घर के सामने रहेगा । उसका आचार -विचार , रहन-सहन और बात-व्यवहार पता नहीं कैसा होगा ? फिर मैंने सोचा… चलो मुझे क्या करना है , सामने पड़े खाली मकान में कोई आ जाएगा तो अच्छा ही है मेरे लिए। मेरे घर के सामने भी चहल-पहल रहेगी और हमारी सांझ की बैठक में एक सदस्य और शामिल हो जाएगा ।” हर शाम को कॉलोनी की औरतों का जमघट मेरे घर के सामने ही लगता था । आधे- एक घंटे हंसी- ठिठोली हुआ करती थी । आज मैंने उन सब को बताया कि रविवार को मेरे सामने वाले घर में भी मिस्टर राम और मिसेस रामांगी शिफ्ट होने जा रहे हैं । सभी बहुत प्रसन्न थे । मैं भी एक विद्यालय में अध्यापिका थी अतः मैंने उन्हें छुट्टी के दिन ही बुलाया था शिफ्ट होने के लिए ।
रविवार को बड़ी उत्सुकता से कॉलोनी की औरतें मेरे घर के सामने खड़ी थीं नए किराएदार का स्वागत करने के लिए । तकरीबन दस बजे के आसपास एक रॉयल एनफील्ड रुकी मेरे दरवाजे के सामने । उस पर से एक सज्जन उतरे , ब्रांडेड चश्मा, बड़ा सा मोबाइल सेट , ब्रांडेड जींस शर्ट और रेड चीफ के लेदर शू के साथ हेलमेट उतारते हुए । सांवला रंग पर काफी आकर्षक व्यक्तित्व ,कद तकरीबन 5 फीट 10 इंच का रहा होगा । कहीं से भी नहीं लग रहे थे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी । उन्होंने हम सभी से अभिवादन किया …और अपना परिचय मिस्टर राम के रूप में दिया । पीछे गाड़ी के पास खड़ी थीं मिसेज रामांगी …औसत कद – काठी, सांवली रंगत , साधारण नयन नक्श पर बड़ी – बड़ी काली जामुनी आंखों वाली …जो बहुत ही सलीके से साड़ी बांधे हुए और सिर पर पल्लू रखे हुए थीं । मिस्टर राम को मैंने घर की चाबी दी और उनके सामान के बारे में पूछा उन्होंने कहा -“भाभी जी पीछे से छोटा भाई लेकर आ रहा है ।” मैंने कहा -” ठीक है, किसी भी चीज की जरूरत होगी तो निःसंकोच बताइएगा ।” मिस्टर राम के घर में प्रवेश करने के साथ पीछे -पीछे रामांगी भी चली गई। ना कोई अभिवादन ,ना चेहरे पर मुस्कुराहट बस भाव हीन चेहरा । कुछ देर कॉलोनी की औरतों ने खुसर -फुसर की फिर सब अपने -अपने घर चली गई ।
शाम को फिर बैठक सजी मेरे दरवाजे के सामने तो उनमें से सबसे उम्रदराज रेनू भाभी जी ने मुझे इंगित करके कहा -“शोभा अपने पड़ोसी को चाय- नाश्ता भिजवाया कि नहीं… अभी तो उनका सामान भी व्यवस्थित नहीं हुआ होगा ?” “अरे ! भाभी जी.. मुझे तो इसका ध्यान ही नहीं आया ” मैंने खुद को कोसते हुए कहा । पता नहीं ये दुनियादारी की समझ मुझे कब आएगी ? यह सोचते हुए मैं किचन में गई और चाय पकौड़े बना कर मिस्टर राम के घर की डोर बेल बजाई , मुझे लगा कि रामांगी ही बाहर आएगी , पर मिस्टर राम निकल कर आए मैंने कहा-” लीजिए गरमागरम पकौड़े चाय के साथ सुबह की सारी थकान उतर जाएगी।”इस पर मिस्टर राम निर्विकार भाव से बोले -“नहीं भाभी जी, हम चाय पी चुके हैं… इन सब की कोई जरूरत नहीं है आप ले जाएं सब कुछ । “मैंने एक बार पुनः विनती की…. रामांगी पीछे ही खड़ी थी , पर कुछ नहीं बोली । मुझे बहुत बुरा लग रहा था। कितनी मेहनत से मैंने पकौड़े तले थे… थोड़ा ही रख लेते , मेरा मन रखने के लिए । वैसे भी मैं “कामकाज में आलसी, भोजन में होशियार” वाली कहावत पर फिट बैठती थी। मिस्टर राम गेट बंद कर चले गए और मैं नसीहत देने वाली रेनू भाभी जी को पकौड़े थमाते हुए बोली -“लीजिए आप लोग ही खाओ- पिओ। अच्छा ही है मुझे दुनियादारी की समझ नहीं है…फालतू की फ़जीहत है, और कुछ नहीं ।” वो हंसते हुए बोलीं-” कोई बात नहीं शोभा परेशान मत हो , तुम्हारी मेहनत बेकार नहीं जाएगी बहुत दिन बाद कुछ मिला है तुम्हारे दरवाजे पर ।” और सब चाय पकौड़े कर अपने-अपने घर चल दी।
कॉलोनी की औरतें रोज आती, बैठक रोज जमती… पर रामांगी कभी न शामिल होती उसमे । वह न किसी को दिखाई देती , न ही उसकी आवाज सुनाई देती । सब कहतीं-” लो बड़ा खुश थी कि चहल- पहल रहेगी घर के सामने …पर कितनी मनहूसियत हैं,… इससे अच्छा, तो यह घर खाली ही पड़ा रहता ।”
धीरे-धीरे मैं उनकी गतिविधियां नोटिस करने लगी । मिस्टर राम की नियुक्ति शायद कहीं दूर थी… क्योंकि वह सुबह जल्दी निकल जाते थे और मैं देर से स्कूल जाती थी । मेरी बालकनी से उनका पोर्टिको साफ दिखाई देता था। मैं देखती थी …कि रोज सुबह मिस्टर राम कमरे से अपनी पैंट का बेल्ट ठीक करते हुए निकलते और पीछे से निकलती रामांगी जिसके हाथ में एक छोटी सी बास्केट रहती , उसी हाथ की कलाई में चूड़ियों के पीछे हेलमेट लटका रहता… और दूसरे हाथ में रहता एक डस्टिंग क्लॉथ।वह अपने सिर का पल्लू दांतो के बीच बनाए हुए रॉयल एनफील्ड की विधिवत सफाई करती , और फिर मिस्टर राम गाड़ी रोड की तरफ घुमा कर उस पर बैठ जाते हैं , फिर रामांगी अपनी बास्केट से मोबाइल, रुमाल, कंघी और पर्स इत्यादि निकालकर मिस्टर राम को देती । मिस्टर राम एक-एक करके सभी चीजों को यथा स्थान व्यवस्थित रखते और अंत में हेलमेट लेकर उसे लगाते हुए यह निर्देश देते कि गेट में ताला बंद रखना …जब आऊंगा तभी खोलना और गाड़ी स्टार्ट कर चले जाते हैं। रामांगी गेट में ताला बंद करते हुए एक नजर मेरी ओर देखती है और अपने दूसरे हाथ से उस हाथ को सहलाती जिसमें काफी देर तक हेलमेट लटका होने से शायद दर्द होने लगा था । वह अपनी खाली बास्केट में अपने लिए दिन भर का सूनापन भरकर अंदर चली जाती । गजब ! की बात यह थी कि…. इतने क्रियाकलाप के दौरान उसके सिर का पल्लू रंच मात्र भी न सरकता । हमारी रोज इतनी ही मुलाकात होती। मिस्टर राम की गाड़ी की आवाज सुनकर मेरा दौड़कर बालकनी में आना… और रामांगी का गेट में ताला बंद करते हुए एक नजर मुझ पर डालना… फिर अंदर चले जाना …।अब यह हमारी दिनचर्या में शामिल हो गया था ।
रामांगी मुझे अच्छी लगने लगी थी । मैं उसके बारे में और अधिक जानना चाहती थी । अतः मै उनके घर की हर आवाज पर कान देने लगी थी । उनके घर से बहुत कम आवाजें आती थी । घर से कभी-कभी मिस्टर राम के खीझने की एकतरफा आवाज आती थी, “छगली कहीं की”…. “छगली कहीं की” मैं सोचती यह संज्ञा किसके लिए प्रयोग की जाती है ?पर मुझे समझ नहीं आता ।
मुझे अक्सर बालकनी में देर रात तक टहलने की आदत थी ।अतः मैं अपनी बालकनी की लाइट बुझा देती थी । मुझे लगता था कि मेरी बालकनी की लाइट उनके एकांत में व्यवधान डालेगी । पर अक्सर रात में मुझे सुनाई देती थी ….एक सिसक जो शायद जबरदस्ती बनाए गये रिश्ते से उत्पन्न होती थी । उन्हें रहते हुए धीरे-धीरे एक वर्ष हो गया था …और न ही मैंने रामांगी का चेहरा ठीक से देखा था न ही उसकी आवाज सुनी थी , पर उसकी आंखों ने एक पवित्र रिश्ता जोड़ लिया था मुझसे।
पंचायत चुनाव होने वाले थे, जिसमें मेरी व मिस्टर राम की भी ड्यूटी लगी थी। मिस्टर राम मेरे ही पोलिंग बूथ पर थे फिर भी हमारी कोई बातचीत नहीं हुई । सकुशल चुनाव संपन्न कराने के बाद मिस्टर राम घर वापस लौटे , पर उन्हें नहीं पता था… मौत चुपके से उनके पीछे हो चली थी । मिस्टर राम करोना पॉजिटिव हो गए थे और होम आइसोलेशन में थे । वह कई दिनों तक ड्यूटी पर नहीं गए …और मै रामांगी को देखने के लिए तरस गई । कॉलोनी की औरतों को भी मेरे द्वारा ही पता चला । धीरे -धीरे मेरे घर के सामने होने वाली बैठक बंद हो गई । सभी अपने -अपने घरों में सिमट गए थे ।
एक दिन सुबह चार बजे के आसपास एक ऑटो रिक्शा आया जिसमें मिस्टर राम अपने छोटे भाई के साथ हॉस्पिटलाइज होने जा रहे थे । पूछने पर पता चला मिस्टर राम का अॉक्सीजन लेबल काफी कम हो गया है । उनके जाने के बाद निर्देशानुसार रामांगी ने गेट में ताला बंद किया और एक नजर मुझ पर डाल कर अंदर चली गई । मेरा मन विचलित सा उठा था । कॉलोनी में एक पॉजिटिव केस आने से दहशत का माहौल था। सभी उनके स्वस्थ होने की प्रार्थना कर रहे थे। रामांगी इधर बीच बिल्कुल नहीं दिखाई दी। दो दिन बाद फिर दोपहर में एक ऑटो रिक्शा आया …जिसमें मिस्टर राम का छोटा भाई और एक मोटी सी अधेड़ औरत… विलाप करते हुए उतरे। मैं किसी अनहोनी की आशंका से बाहर आई। पूछने पर पता चला मिस्टर राम अब इस दुनिया में नहीं रहे… । उनका रोना -पीटना सुनकर कॉलोनी की औरतें भी एकत्रित हो गई । सभी की आंखें नम थी। ये कैसा राम था ? जो अपनी रामांगी को जीवन भर का वनवास दे गया था। रामांगी हमेशा की भांति सिर पर पल्लू रखे बुत बनकर खड़ी थी। शायद उसे गहरा सदमा लगा था , उसकी आंखें पथरा गई थी। हमेशा पल्लू में छिपी रामांगी इस दुनिया में कैसे खुलकर जिंदगी बिताएगी। हम सब यही सोच रहे थे …,कि उस मोटी औरत ने रामांगी का हाथ पकड़ा और चल पड़ी। रामांगी उसके पीछे ऐसे चल रही थी ,कि मानो …एक पतली सी नाजुक बेल सहारे की चाह में मोटे से वृक्ष के तने से लिपटी उसके आकार के अनुरूप स्वयं को ढ़ालती उसके नियंत्रण में स्थितप्रज्ञ हो गई हो …। अधेड़ औरत उसे लेकर ऑटो रिक्शा में बैठ गई , और मिस्टर राम का भाई गेट में ताला बंद करके सबको लेकर अपने गांव चला गया। कुछ दिनों के बाद वह घर का सामान भी लेकर चला गया और घर की चाबी मुझे मिल गई…। मेरे घर के सामने फिर वही नीरव सा सन्नाटा पसर गया…।
मुझे रामांगी की बहुत याद आती थी । उसका नजर उठाकर देखना ही मेरे साथ एक निश्छल सा रिश्ता बना गया था । उसकी खबर मिलने का कोई माध्यम नहीं था । धीरे-धीरे समय के साथ उसकी यादें धूमिल होने लगी थी । फिर भी मन के अंतस्थल में उसकी मासूम अमिट छवि रह गई थी …।
समय पंख पसार उड़ता गया । तीन वर्ष व्यतीत हो चुके थे। गर्मी की छुट्टियों के बाद स्कूल खुला तो पता चला कि हमारे पुराने सफाई कर्मचारी के स्थान पर नए सफाई कर्मचारी की नियुक्ति हुई है …जो कि एक महिला है । महिला सफाई कर्मचारी की नियुक्ति! सुनकर अच्छा लगा …क्योंकि महिलाएं अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन बखूबी करती हैं। दूसरे दिन स्कूल के सामने एक स्कूटी रूकती है। जिस पर से एक सुंदर सी स्मार्ट लड़की जींस कुर्ती , सलीके से कटे हुए घुंघराले बालों में, पैरों में सुंदर जूती पहने पाँच वर्षीय बच्चे के साथ स्कूल में प्रवेश करती है । सामने मैं भी दिख जाती हूं मुझे शालीनता पूर्व अभिवादन करते हुए बोलती है -“नमस्ते मैडम, मेै रामांगी ,आपके विद्यालय में मेरी नियुक्ति सफाई कर्मचारी के पद पर हुई है।” उसका नाम सुनकर मै चौक गई – रामांगी??? बदला हुआ रंग रूप, पहनावा, साथ में बच्चा। वह बिल्कुल बदल गई थी पर उसकी पवित्र ,मासूम आँखें …बिल्कुल नहीं बदली थी । वह एक मजबूत स्तंभ की भाँति मेरे समक्ष खड़ी थी। मैंने तुरंत पहचान लिया उसे। “मुझे पहचाना रामांगी, मैं शोभा तुम्हारे घर के सामने रहती थी ।” मैंने प्रसन्न होकर उससे कहा। “अरे ! शोभा दीदी आप।” वह मुझे पहचानने की कोशिश कर रही थी । मैंने उसके कंधे पर हाथ रखकर कुशलक्षेम पूछा तो वह फफक कर रो पड़ी। मैंने कहा -“यहां नहीं रामांगी …शाम को घर आना तुमसे बहुत सी बातें करनी है …यह उचित जगह नहीं है, चलो पहले हस्ताक्षर करो।” स्कूल के रजिस्टर पर हस्ताक्षर कर वह बच्चे के साथ चली गई ।
मैं शाम का बेसब्री से इंतजार करने लगी… शायद उसे भी मुझसे मिलने की जल्दी थी । शाम होने के पहले ही वह बच्चे के साथ मेरे घर आ गई । चाय – पानी की औपचारिकता पूर्ण करने के उपरांत मैंने पूछा -“कहो रामांगी इतने दिन कहां रही ? यह बच्चा किसका है ? क्या तुम ने दूसरी शादी कर ली ? यहां तो तुम्हारा चेहरा भी किसी ने नहीं देखा था , अब तो तुम्हें कोई पहचान ही नहीं पाएगा ….। कितनी खूबसूरत हो तुम…आज तो मैंने तुम्हें देखा है ठीक से । मिस्टर राम के जाने का बहुत दुख है हमें ।” “क्या वाकई में मैं सुंदर हूँ दीदी ?
इतना कहकर उसकी आँखें सजल हो गई, “आपको सब बताऊंगी मैं ।” रामांगी ने यह कहकर बोलना शुरू किया -” सात जन्मों के उस अटूट बंधन का टूट जाना ही अच्छा… जो जीवन में एक – दूसरे को सात पल भी सुकून के न दे पाए । बाहरी दुनिया के लिए हम एक आदर्श वादी दंपति थे… । हमारे नाम एक दूसरे के पूरक थे …। मैं अपने राम की रामांगी थी… , पर असलियत में राम मुझे बिल्कुल पसंद नहीं करते थे। एक पुरुष स्त्री के शरीर में कितनी …सुंदरता चाहता है दीदी??? ” इसका तो कोई पैमाना नहीं रामांगी , यह तो उसके नजरिए पर निर्भर करता है… पर हर स्त्री अपने आप में सुन्दर व पूर्ण होती है ।” मैने एक सार्वभौमिक सत्य ही कहा उससे । पर मेरी बात अनसुनी कर वह बोलती रही -” मेरी औसत सी कद काठी , मेरा पतला सा चेहरा , मेरी पतली सी कंपकपाती आवाज , मेरे उरोजो का आकार , उस पर मेरा सांवला रंग। मेरे प्रत्येक अंग का एक विशेष अश्लील सा नाम रखा था उसने ….और मुझे गुस्से में “छगली “(बकरी) कहकर बुलाता था । ये कैसा राम था ? दीदी जो रामेश्वरम् में विश्वेश्वर को स्थापित करने वाले राम द्वारा रचित रामांगी के हर अंग का नामकरण कर दिया था ?” तब मुझे याद आया कि उसके घर से अक्सर “छगली कहीं की “की आवाज़ आती थी । “दीदी मुझे खुद से चिढ़ हो गई थी… अपने हर अंग से घृणा होने लगी थी । जब वह मेरे साथ होता …तो मुझे ऐसा लगता कि जैसे… कोई जंगली , मोटा , भद्दा सा आठ पैरों वाला मकड़ा मेरे शरीर पर रेंग रहा है और अपने हर पैर से मेरे हर अंग को रौंद रहा हो। मैं सिहर उठती थी…, घिन आती थी मुझे उससे… पर मैं कुछ न कर पाती थी सिर्फ महसूस करती थी अपना वजूद खत्म होते हुए। वह हर बात पर चिल्लाता, शराब पीकर मारपीट करता , मेरी शारीरिक बनावट को इंगित करते अश्लील फब्तियां कसता , सब बर्दाश्त के बाहर हो गया था… , पर यह सब कुछ सहना मेरी नियति बन गया था । मेरे हंसने – बोलने हर चीज पर बंदिश थी उसकी।” वह बोलती जा रही थी अनवरत, अपलक शून्य को निहारते हुए।उसके चेहरे पर सिर्फ घृणा के भाव थे… मिस्टर राम के लिए। रामांगी के हर अंग को छूकर राम ने अपवित्र कर दिया था । कितना दर्द भरा था उन मासूम आंखों में… जिसकी परत दर परत खुलती जा रही थी । मैंने बात बदलने के उद्देश्य से उसका हाथ अपने हाथों में लेते हुए पूछा – “अच्छा राम के जाने के बाद क्या हुआ ?”
राम के जाने के बाद उनकी माँ ने कहा -” अभी तुम्हारी पूरी जिंदगी पड़ी है.., उम्र ही कितनी है तुम्हारी…, मेरे छोटे बेटे से दूसरी शादी कर लो लड़के- बच्चे हो जाएंगे तो सहारा मिल जाएगा… जीवन पार हो जाएगा तुम्हारा ।” पर हिम्मत जुटाकर मैंने कहा -“नहीं माँ जी , इतने दिनों तक मैंने आपके बड़े बेटे से मार खाई , तिरस्कार पाया, बात – बात पर बेइज्जत हुई अब दूसरे बेटे से नहीं… । मैं अब सहन नहीं कर पाऊँगी… । राम के जाने के बाद मुझ में हिम्मत आ गई थी , मैं खुद को आजाद महसूस करने लगी थी । लोग मुझे बेचारी और बेसहारा की संज्ञा देते थे… पर दीदी , मैं उस अनचाहे बंधन से मुक्त हो गई थी । कुछ भी हो दीदी …पर मैं यह मुक्ति राम के जीवन के बदले कभी नहीं चाहती थी… । मुआवजे़ के तौर पर मुझे सरकारी सहायता मिली जिससे मैंने छोटा सा घर खरीद लिया और यह नौकरी मिली जो मेरे जीवन यापन का साधन बन गई।” “और यह बच्चा रामांगी ? “मैंने बच्चे पर नजर डालते हुए प्रश्न पूछा । दीदी इस महामारी के दौर में बहुत से बच्चे अनाथ हो गए यह उन्हीं में से है । मैंने इसे अपना लिया है । अब यह मेरा सहारा है और मैं इसका , अब यही मेरा राम है । हम एक दूसरे के पूरक हैं… मुझे अब किसी अन्य सहारे की आवश्यकता नहीं।”…. इतना कहकर उसने एक गहरी सांस ली। एक लंबा निर्वात हम दोनों के वार्तालाप के मध्य तैरने लगा था । मैं अपलक देखती रही …उस दृढ़ निश्चयी रामांगी को जो अपने राम के साथ अब हर मुश्किल से लड़ने को तैयार थी । काफी देर हो गई थी… रामांगी अब चलने को तैयार थी । मैंने उसके राम को प्यार किया और कहा,-” रामांगी यह तुम्हारी शोभा दीदी का घर है निःसंकोच आती रहना ।” उसने मेरे पैर छुए और मेरे मन से आशीर्वाद निकला -” खुश रहो रामांगी …अपने इस राम के साथ।” हम दोनों एक दूसरे के गले लग कर एक आत्म संतुष्टि का अनुभव कर रहे थे । मैं रामांगी को छोड़ने घर के बाहर आई तो देखा… मेरे दरवाजे पर बैठक जम रही थी, सबसे उम्र दराज रेनू भाभी जी ने पूछा -“शोभा तुम्हारी कोई सहेली आई है क्या? बहुत सुंदर! है भई।” मै हंसते हुए बोली -“जी हां, ये वाकई में बहुत सुंदर है । पहचाना नहीं आप सब ने़…. ये रामांगी है जो मेरे सामने वाले घर में रहती थी। रामांगी ने सबसे अभिवादन किया…सबसे कुशल मंगल पूछा और अपने बच्चे के साथ स्कूटी पर बैठ कर चली गई । सब देखती रह गई इस बदली हुई रामांगी को …., जो नए परिवेश में उन्मुक्त हो… नए आकाश में अपने पर मजबूत कर …उड़ने की तैयारी में थी ।
समाप्त