राम का चिंतन
राम का चिन्तन
राम, सीता , और लक्ष्मण चित्रकूट पर मंदाकनी नदी के किनारे चांदनी रात का रस ले रहे थे , पवन धीरे धीरे बह रहा था। पिछले कुछ दिनों से सोने से पहले यहां आकर बैठना और विभिन्न विषयों पर चर्चा करना , उनका नित्यकर्म हो गया था। यही वह समय होता जब वे अपने दिनभर के कामों की चर्चा करते, भविष्य की योजनायें बनाते और अयोध्या , मिथिला , गुरु विस्वामित्र , गुरुकुल आदि की बातें करते।
लक्ष्मण ने कहा , “ अयोध्या तो हमारे मन में बसी है , परन्तु इस तरह जंगल में इस उन्मुक्तता का अनुभव करना भी अद्भुत है , मन की सारी अनावश्यक परतें एकएक करके गिरती जाती हैं , जो रह जाता है , वह है शुद्ध चैतन्य,अनंत उत्सुकता , और कोमलता। ”
राम और सीता हंस दिये, “ कभी कभी तुम पूरे दार्शनिक हो उठते हो। ” राम ने कहा।
“ आप भी तो भैया , जब जंगल वासियों से या ऋषि मुनियों से बातें करते हो तो राजकुमार कहाँ रह जाते हो , एक साधक , एक अन्वेषक हो उठते हो। ”
“ तो क्या एक राजा को यह दोनों नहीं होना चाहिए ? “ सीता ने कहा।
राम मुस्करा दिए , “ मेरे विचार से तो राजा को आजीवन विद्यार्थी रहना चाहिए। हमारी प्रजा में कितने संगीतज्ञ , गणतिज्ञ ,साहित्यकार , और न जाने कितने गुणीजन हैं, जिनके समक्ष मेरा ज्ञान तृण मात्र भी नहीं, राजा तो बस इन सब के लिए ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास करता है , जहाँ यह निश्चिन्त होकर अपनी प्रतिभा का विकास कर सकें। ”
“ परन्तु यह वातावरण तैयार कर सकना भी तो सरल नहीं। ” लक्ष्मण ने कहा।
“ सरल और कठिन होना तो अपनी रूचि पर निर्भर है। “ सीता ने कहा।
“ तो क्या मात्र रूचि पर्याप्त है भैया ?” लक्ष्मण ने राम को उत्सुकता से देखते हुए कहा।
“ रूचि आरम्भ है लक्ष्मण “ राम के बजाय सीता ने उत्तर दिया।
“ तो भैया , सबसे कठिन क्या है ?” लक्ष्मण की दृष्टि राम पर टिकी रही ।
“ न्याय देना। ” राम ने कहीं दूर देखते हुए कहा।
“ तो क्या न्याय राजा की इच्छानुसार होना चाहिए ?” लक्ष्मण अभी भी राम को देखे जा रहे थे, मानो उत्तर के लिए व्याकुल हों ।
“ नहीं न्याय सबके लिए समान है , इसलिए वह व्यक्ति विशेष पर निर्भर नहीं। ” राम ने सोचते हुए कहा ।
“ जब कानून परिभाषित है तो फिर कठिनाई क्या है ?” लक्ष्मण ने बल देते हुए कहा ।
राम मुस्करा दिए , “ सीता तुम्हारा क्या कहना है इस विषय पर ?”
“ मेरे विचार से कानून की गहराई से पता चलता है , कि वह समाज बौद्धिक और मानसिक रूप से कितना उन्नत है। “ सीता ने सहज मुस्करा कर कहा ।
“ और यह उन्नत होना क्या है ?” लक्ष्मण ने पूछा।
“ उन्नत्त का अर्थ है उसमें दोषी और निर्दोषी का निर्णय होने के बाद क्षमा और सहानुभूति का कितना स्थान है। ” राम ने द्रवित होते हुए कहा।
“ अच्छा लक्ष्मण यह बताओ, कानून तो नैतिकता पर आधारित होने चाहियें , फिर नैतिक अनैतिक का निर्णंय कैसे हो ? “ राम ने लक्ष्मण के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
“ भैया , अब आप मुझे उकसा रहे हैं। ”
राम और सीता हंस दिए ,” तुम्हारे भैया तुम्हें उकसा नहीं रहे , भविष्य के लिए तैयार कर रहे हैं। यूँ तो हमारे यहां शिक्षा जहाँ गुरु शिष्य बैठ जाते हैं , वहां आरम्भ हो जाती है , पर एक शिक्षा वो भी होती है , जो मनुष्य ध्यान में, चिंतन द्वारा अपने मन की गहराइयों से पाता है , इस प्रश्न का सम्बन्ध मन की गहराइयों से है। ” सीता ने स्नेह से कहा ।
“ अर्थात् हम नैतिकता अनैतिकता के ज्ञान के साथ जन्म लेते हैं! “
” हाँ मेरे भाई , और उसी सूक्ष्म नैतिकता के आधार पर हम न्यायप्रणाली का भवन खड़ा कर देते हैं ।”
इससे पहले कि लक्ष्मण अपना अगला प्रश्न रखते , उन्होंने देखा दूर से ढोल , मंजीरे बजाते कुछ स्त्री पुरुषों का झुंड उनकी ओर बड़ा आ रहा था।
सीता ने कहा , “ इस चांदनी रात में इनको नींद कहाँ , सारी रात गायेंगे, नाचेंगे। ” फिर उन्होंने लक्ष्मण को देखते हुए कहा , “ ऐसे अवसरों पर मुझे उर्मिला की बहुत याद आती है। परिस्थतयाँ अक्सर हमारे हाथ में नहीं होती, तुम दोनों के साथ जो हुआ , वह विषय न्याय अन्याय से भी परे है। ”
“ भाभी , आप अपने पर बोझ न लें , धैर्य का प्रश्न भी नैतिकता से जुड़ा है , हमें अपना कर्तव्य निभा लेने दें। ” लक्ष्मण ने मुस्करा कर कहा ।
राम ने सीता की तरफ देखकर आंख की इशारे से उन्हें शांत होने क़े लिए कहा।
ढोल मंजीरे क़े स्वर एक दम निकट आ गए थे। वे तीनों उनके स्वागत में उठ खड़े हुए ।
जंगल संगीत लहरी में झूम उठा , हर कदम थरथरा उठा।
—_____ शशि महाजन