राम और तुलसी सवैया छंद में
राम और तुलसी
सवैया ही सवैया
1
मदिरा सवैया
7भगण 1गुरू
रामकथा जगमें अति पावन,
लाखन लोग बखान करी ।
चाहत जो भव सिंधु तरें
तिनको तरणी सुखचैन भरी।
हैं तुलसी सबके सिरमौर
रमायन खास रचाय धरी।
काव्य सुगंध बहे लगता,
जस कंठहुँ शारद है उतरी।।
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2
चकोर सवैया
7भगण गुरू लघु
छोड़ सनातन धर्म विधान,
जिन्हें मत पंथ सुहावत वाम।
भारत भाय न हिंदु समाज
बबूल समर्थक भाय न आम।
धर्म मिटे कुछ चाहत लोग
उपाय लगाय दिखायँ तमाम।
दोष दिखें तुलसी कविता बिच,
निंदक हैं जिन भाय न राम।
3
कुंदलता सवैया छंद
8सगण 2लघु
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गजराज बजार चले तन झूमत,
पाछिल श्वान लगे कुछ भूकत।
रचना समभाव भरी सब भाँति
मनों जरुआ उसमें त्रुटि ढूंढत।
लख प्रेम कहीं विष बोय वहीं,
जगमें चुगला कबहूँ नहिं चूकत।
खुदके मुख पै खुद थूक गिरावत,
जो जन सूरज ऊपर थूकत।
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4
किरीट
8भगण
साँचहि आँच न आय कभी,
जन झूठहिं आग कितेक लगावत।
पूजन हेतु बने प्रतिमान,
सदा पुजते मिटते न मिटावत।
धन्य धरा तुलसी जनमे रच,
ग्रंथ रमायन पाप नशावत ।
गावत संत सदा मुनि सज्जन,
राम कथा न निशाचर भावत।
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5
चँद्र कला सवैया
8सगण
सुमरे जब राम लला बजरंग,
बची नहिं लंक गई झुलसी।
झुलसी लख चेत तजा दल
बंधु,
लगा मन गांठ गई खुलसी।
खुलसी सर नाभि लगो रण में,
क्षण मौत चली हुलसी हुलसी।
हुलसी सुत राम कथा रचके,
सबके सिरमौर बने तुलसी।
6
गंगोदक सवैया
8रगण
क्या कमी है यहाँ जो वहाँ ताकते,
साध्य जाने नहीं साधना साधके।
दे रहे तर्क जैसे, बड़ा पाप है,
क्यों चलें बोझ भारी स्वयं लादके।
पीढियाँ तो रहीं मानते राम को ,
जान लेंगे सभी लोग भी बाद के ।
राम का आसरा है सदा चित्त में,
कौन है जो हरे प्रान प्रह्लाद के।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
2/2/23