रामू
जिस दिन यह पता चला
रामू चौकीदार को
कि सड़क तो
उसके घर से होकर निकल रही है
और अब उसका घर
उखाड़ दिया जाएगा
उसके चेहरे पर
चिंता की असीम रेखाएं
भयंकर सूखे के कारण
धरती पर पड़ी
दरारों का पर्याय हो गई हैं
अब आशियाना उखड़ जाएगा
उखड़ जाएगा वह कमरा
जिसकी चाबियां
मेरे पिताजी ने मुझे
यह कहते हुए सौंपी थी
”बेटा यह वह कमरा है
जो मुझे बेहद प्यारा है
इसमें मेरे अरमान सजे हैं
मेरे पिताजी , उनके पिताजी
सभी पूर्वजों के चित्र टंगे हैं
बहुत सहेज के रखा है मैंने इसको
तुम भी उतने ही अरमानों से रखना “,
बेटी साधना
कई दिनों तक
बस यही सोचती रही
मेरे गुड्डा गुड़ियों का क्या होगा
जो मेरे हर पल के साथ थे
मैं किससे करूंगी बातें
कितनों ही को अपने साथ
ले जा पाऊंगी गठरी में बांधकर,
फिर एक दिन
सरकारी आदेश हुआ
बुलडोजर चला
रामू चौकीदार के सपनों की दुनिया को
जमीन कर दिया
खाली पड़ी
जमीन पर
बांस की खपचियां जोड़कर
अब रामू ने छोटी सी झोपड़ी बना ली है
बस उसी में स्वयं को
सहेजने के प्रयास में
दिन रात एक कर रहा है
एक गठरी एक कोने पर
दूसरी गठरी दूसरे कोने पर है
इस तरह से गांठों में बांध कर रख दिए हैं रामू ने जिंदगी भर के
सारे सपने सहेज कर
और अपने सारे अरमानों
को
रख दिया है खूंटी पर टांग कर।।
डॉ राजेंद्र सिंह