रामायण के प्रसंग से शिक्षा
रामायण में अनेक उदाहरण हैं जो आज की जीवन शैली में हमें जीवन जीने के आदर्शों को हमारे सामने प्रस्तुत करते हैं जिनमें माता पिता और अपने बड़ों का सम्मान एक बहुत ही अनुकरणीय उदाहरण है । अपनी माता की आज्ञा का पालन करने के लिए एक सुकुमार बालक अपना राजपाट छोड़कर वनवास के लिए चला गया , नारी सम्मान की इससे उच्च पराकाष्ठा और क्या हो सकती है ? श्रीरामचरित मानस के अयोध्या कांड के श्री राम सीता संवाद घटनाक्रम में वन प्रस्थान के समय माता सीता को समझाते हुए कहते हैं।
एहि ते अधिक धरमु नहिं दूजा। सादर सासु ससुर पद पूजा।
जब जब मातु करिहि सुधि मोरी।होइहि प्रेम बिकल मति भोरी।
भावार्थ:-आदरपूर्वक सास-ससुर के चरणों की पूजा (सेवा) करने से बढ़कर दूसरा कोई धर्म नहीं है। जब-जब माता मुझे याद करेंगी और प्रेम से व्याकुल होने के कारण उनकी बुद्धि भोली हो जाएगी (वे अपने-आपको भूल जाएँगी)॥
इतिहास हमें जीवन की प्रेरणा देता है। हमें श्री राम के आदर्शों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। रामायण युगों पूर्व लिखी गई थी, उस समय की मान्यताएं आज के युग से भिन्न हो सकती हैं, अतः हमें श्री राम की उन चारित्रिक विशेषताओं को आत्मसात करना चाहिए, जो मानव कल्याण में सहायक हों।
?जय श्री राम ??