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7 Jun 2022 · 6 min read

रामलुभाया (भाग 2) : कहानी

रामलुभाया (भाग 2) : कहानी
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रामलुभाया बनने चला सरकारी शिक्षक (कहानी)
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राम लुभाया सरकारी नौकरी पाने के चक्कर में सब कुछ गंवा चुका था ।मेरे पास आकर फूट-फूट कर रोने लगा ।बोला ” दलालों के चक्कर में मैं बर्बाद हो गया। सब ने मुझे पक्का आश्वासन दिया था कि तुम्हारी सरकारी नौकरी लगवा देंगे। पिताजी का सारा रुपया इसी काम में भेंट चढ़ गया ।दूसरी बार जब धोखा खाया तो अम्मा के सारे जेवर भी कम पड़ गए ,तो जाकर घर को गिरवीं रख कर पैसे लिए। सोचा था भरपूर पैसा मिलेगा ,थोड़े ही समय में सब चुकता कर देंगे ।लेकिन न सरकारी नौकरी मिली, न दलालों को दिया गया रिश्वत का पैसा वापस मिला । हम तो बुरे फंस गए।”
मैंने राम लुभाया को सांत्वना दी “अब जो हो गया ,सो हो गया। मैंने तो तुम्हें पहले ही समझाया था कि रिश्वत देकर दलालों के चक्कर में मत पड़ो ।लेकिन तुम ही सरकारी नौकरी के कुछ ज्यादा ही आकर्षण में फंसे हुए थे ।तुम सोचते थे वेतन ज्यादा है- काम कम है ”
सुनकर रामलुभाया शर्माने लगा लेकिन पक्का ढ़ीठ था । इतना धोखा खाने के बाद भी बोला “साहब ! सरकारी नौकरी में यह बात तो है ”
मैंने सिर पकड़ लिया” राम लुभाया! तुम नहीं सुधरोगे ”
“रास्ता बताइए क्या करना चाहिए”
मैंने कहा” देखो सुनो कायदे का काम ही मै बताऊंगा ।अब तुम ग्रेजुएट हो गए हो। अब टीचर्स ट्रेनिंग कोर्स तुम्हें कर लेना चाहिए उसके बाद किसी प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक के पद पर नियुक्त हो सकते हो। मन लगाकर पढ़ो और फिर उसके बाद शिक्षक की भूमिका का निर्वहन करो”
रामलुभाया की आंखों में सुनकर चमक आ गई “यह बात सही है । टीचर बनना ठीक रहेगा ”
मैंने अब राम लुभाया को अध्यापक के बारे में कुछ बातें बताने का प्रयत्न किया। मैंने कहा “देखो रामलुभाया ! शिक्षक बनकर तुम्हारे ऊपर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी आएगी । शिक्षक राष्ट्र का निर्माता होता है और प्राथमिक विद्यालय में तो बच्चे के जीवन को सजाने और संवारने का पूरा उत्तरदायित्व शिक्षक के ऊपर ही रहता है ।.वह चाहे तो एक कुशल कुम्हार की भाँति बच्चे को मन वांछित सुंदर आकार दे सकता है ”
रामूलुभाया मेरी बातों को शांत भाव से सुन रहा है, यह देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा । मेरी बातों का उस पर असर हो रहा है, यह मेरे लिए बहुत खुशी की बात थी। मैंने राम लुभाया से कहा “अब तुम शिक्षक के पद के लिए अपनी योग्यता में वृद्धि करो और मन लगाकर पढ़ो ।.शिक्षक की नौकरी तुम्हे पसंद होगी?”
मेरे यह पूछने पर रामलुभाया ने कहा” राष्ट्र निर्माता वाली बात से मुझे कोई मतलब नहीं है । मुझे तो केवल शिक्षक की अच्छी सैलरी और ज्यादा छुट्टी वाली बात में आकर्षण है।”
मैंने कहा” राम लुभाया ! मुझसे गलती हो गई ।मैं अपने को इस बात के लिए कभी माफ नहीं करूंगा कि मैंने तुम्हारे स्वभाव को जानने के बाद भी तुम्हें शिक्षक जैसे महत्वपूर्ण पद पर बिठाने के लिए कह दिया। एक जरा सी भूल देश की आने वाली पीढ़ियों को बर्बाद कर देगी और जिस प्रकार के भारत का निर्माण हम चाहते हैं, वह सारा कार्य अधर में लटक जाएगा ।”
राम लुभाया ने अब महसूस किया कि बात कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई है ।उसने कहा” साहब आप इतनी फिक्र क्यों करते हैं। इतना ज्यादा मत सोचिए। हम कोई देशद्रोही या कोई देश के खिलाफ सोचने वाले थोड़े ही हैं ।जो भी काम करेंगे ठीक-ठाक ही करेंगे”
मैंने कहा” ठीक है, अगर तुम ऐसा सोचते हो तो अच्छी बात है ।बाहरहाल अब क्या हो सकता था ! राम लुभाया सरकारी अध्यापक बनने के लिए पूरी तरह व्याकुल हो उठा था। चला गया, बोला “ठीक है, प्रणाम !अब हम सरकारी शिक्षक बनने की तैयारी कर रहे हैं ।”
उसके साथ ऐसा ही होता था ।आता था , और उसके बाद महीनों के लिए गायब हो जाता था ।मैं चाहता था राम लुभाया किसी अच्छे पद पर आ जाए और ढंग से अपनी गृहस्थी चलाएं । करीब 6 महीने बाद राम लुभाया का लौट कर आना हुआ।
“क्या कर रहे हो “मैने पूछा था।
“भाई साहब हम तो उसी काम में लगे हुए हैं जो आपने बता दिया है ।”
मैंने कहा” साफ-साफ बताओ ,क्या कह रहे हो”
राम लुभाया बोला” टीचर्स ट्रेनिंग कोर्स का काम चल रहा है पढ़ाई नियमित कर रहा हूं और उसके साथ- साथ मैंने कुछ अध्यापकों से भी जो कि प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ाते हैं दोस्ती करना शुरू कर दिया है ।उन्हीं से मिलता रहता हूं ताकि नौकरी मिलने पर नयापन महसूस न हो । जो अध्यापक मिले,उनमें दो तरह के लोग थे। एक तो वे थे जो सुबह जाते थे, दोपहर को आ जाते थे और जिन्हें केवल पढ़ाने से मतलब था। पढ़ाया, काम पूरा करा, चले आए । मेरी उन लोगों में कोई खास दिलचस्पी नहीं है। यह काम तो सभी कर लेंगे ।जो दूसरे टाइप के लोग हैं उन्होंने बड़ी अच्छी बातें बताईं ”
मैंने कहा “अच्छी कैसी ?”
राम लुभाया ने बताया कि.उन्होंने कहा कि “कुछ पढ़ाना नहीं पड़ता ।अगर चाहो तो एक चौथाई वेतन पर किसी दूसरे आदमी को पढ़ाने के लिए ठेके पर रख सकते हो।एक चौथाई वेतन की धनराशि उक्त व्यक्ति ने ले ली और बाकी 75% धनराशि वेतन की तुम्हारे पास आ जाएगी।”
मैंने चीखने की आवाज में कहा ” राम लुभाया! इनके चक्कर में गलत पड़ रहे हो। एक आदर्श शिक्षक ऐसा कभी नहीं करेगा”
राम लुभाया ने मुझे जानकारी देना जारी रखा वह बोला” उन लोगों ने यही बताया ,यह काम बहुत जोखिम भरा हुआ है ।काफी रिस्क रहता है। पकड़े गए ,तो सारा भांडा फूट जाएगा। इसलिए मुझे तो तीसरे अध्यापक की बात ज्यादा सही लगी । उसका कहना था ,जब मन चाहे , जितने बजे चाहे, विद्यालय में पहुंच जाओ। रजिस्टर पर हस्ताक्षर करो । वहां जाकर पढ़ाओ या मत पढ़ाओ।. फिर जब मन चाहे , वहां से वापस आ जाओ। अगर किसी दिन छुट्टी लेनी है तो उसके लिए भी जुगाड़ तैयार रखो”
मैंने उत्सुकतावश पूछा” कैसा जुगाड़ ! यह कौन सा प्राथमिक शिक्षा में नया प्रयोग आ गया?”
राम लुभाया रहस्यपूर्ण मुद्रा में मुस्कुराया बोला “जुगाड़ यह है कि छुट्टी की एप्लीकेशन हमेशा विद्यालय में रखी रहनी चाहिए। उस पर तारीख मत डालो । बस अगर कोई चेकिंग हो जाए ,तो वह दिखा दी जाएगी। सब के परस्पर सहयोग से विद्यालय में इस प्रकार का जुगाड़ चलता रहता है ।”
मेरी आंखें खुली की खुली रह गईं।” राम लुभाया एक बात बताओ, तुमने जो कहा कि बगैर तारीख लिखी हुई एप्लीकेशन विद्यालय में रखी रहेगी और उसके आधार पर छुट्टी मार ली जाएगी यह कैसे संभव है ? क्या चेकिंग करने वाला अधिकारी बुद्धि हीन है जो इस बात को नहीं समझेगा कि यह रोजाना का जुगाड़ है।”
राम लुभाया बोला” सच पूछिए तो भाई साहब ! अफसरों को भी एक खानापूरी करनी होती है। चेकिंग करने वास्तव में कौन आता है । और खानापूरी उस एप्लीकेशन से हो जाएगी । ऐसे ही चल रहा है ”
मैंने कहा “राम लुभाया! यह बात मेरी समझ में नहीं आई ।मुझे तो यही जानकारी है कि ज्यादातर अध्यापक प्राइमरी में बहुत निष्ठा और कर्मठता के साथ पढ़ाई का काम कर रहे हैं ।तुम्हारी यह जुगाड़ बाजी तुम्हारी अपनी खोज हो सकती है और अपवाद रूप में शायद एक -दो अध्यापक इस प्रकार का काम कर लेते होंगे ?”
राम लुभाया ने सिर हिलाया। मगर यह असहमति का स्वर था। बोला “आप नहीं मानते तो मत मानिए। मैं जितनी जुगाड़ खोज रहा हूं ,वह सब वास्तविकता पर आधारित है ।मेरा संपर्क सीधे प्राथमिक सरकारी शिक्षक से है और वह मुझे सारी बातें बता रहा है । आखिर मुझे भी तो कल को नौकरी पर लग कर जुगाड़ ही लगाना होगा।”
मैंने पश्चाताप की मुद्रा में राम लुभाया से कहा “मैंने तुम्हें बेकार ही प्राथमिक विद्यालय में सरकारी अध्यापक बनने का रास्ता दिखाया। तुम अभी भी मेरी मानो तो कोई और लाइन पकड़ लो ”
रामलुभाया हंसा और कहने लगा “अब तो 6 महीने से मैं इसी यात्रा पर आगे बढ़ चुका हूं कि क्या करें जिससे विद्यालय जाए बिना पूरा वेतन लेना हो तो छुट्टी की एप्लीकेशन किस प्रकार बिना तारीख डाले विद्यालय की दराज में रखी रहनी चाहिए ।”
फिर उसके बाद राम लुभाया चला गया, यह कहते हुए कि जब सरकारी शिक्षक बन जाऊंगा तो आपका आशीर्वाद लेने जरूर आऊंगा। मैं कसमसाकर रह गया कि हे भगवान ! यह मैंने किसको शिक्षक बनने का पाठ पढ़ा दिया ?
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लेखक :रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर,( उत्तर प्रदेश) मोबाइल 99976 15451

Language: Hindi
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