विधायक रामभरोसे
“देश को आज़ाद हुए आज 75 बरस हो चुके हैं लेकिन जनता की दशा और दिशा नहीं बदली। नेता आमिर होते चले गए और जनता ग़रीब और ग़रीब होती चली गई। कई सरकारें आईं और चली गईं, मगर न लोकतंत्र बदला, न व्यवस्था बदली, न हालात बदले, मगर विधायक रामभरोसे के राज में अब ऐसा नहीं होगा। सभी ग़रीब लोगों को मात्र पाँच रूपये में भरपेट भोजन मिलेगा। बी.पी.एल. राशनकार्ड योजना के तहत ग़रीबी रेखा के नीचे जी रहे हर झुग्गी-झोपड़ीवासियों को एक रूपये किलो आटा-दाल-चावल मिलेगा।” दो बार लगातार विधायक बन चुके रामभरोसे ने ये भाषण पहली बार विधायक बनते वक़्त दिया था। मगर घण्टे भर के इस रिकार्डिड भाषण को वह आये दिन कई बार अपने एल.ई.डी. टी.वी. पर सुनते रहते थे। कभी अपने यहाँ आने वाले मेहमानों को भी सुनाते तो कई बार अकेले में ही सुना करते थे और अपने बड़े महान नेता होने के भ्रम को जीवित रखते थे। कई बार मुख्यमंत्री को देखकर उनके हृदय के अन्दर भी सीएम बनने की प्रबल इच्छा होती थी। इच्छाओं का भला क्या है, प्रधानमंत्री को देखकर प्रधानसेवक बनने की और राष्ट्रपति को देखकर महामहिम बनाने की महत्वकांक्षा भी बढ़ जाती थी रामभरोसे के हृदय में। इस वक़्त उनकी मेज़ पर कीमती विलायती शराब, विसलरी पानी की बोतल, कांच के ग्लास में बना हुआ पैग, एक प्लेट में भुने हुए काजू और दूसरी प्लेट में चिकन लेग पीस। कुछ प्लेटों में तीन-चार क़िस्म का सलाद। आहा! कोई भी देख ले तो मुंह में पानी आ जाये। अदम गोंडवी की पंक्तियाँ रामभरोसे के ग़रीबख़ाने का स्टीक चित्रण कर रही थी:—
काजू भुने प्लेट में, व्हिस्की गिलास में।
उतरा है रामराज, विधायक निवास में।।
कहने की आवश्यकता नहीं कि दो दशक पहले किराये के मामूली कमरे में, मामूली नौकरी के साथ, संघर्ष कर रहे रामभरोसे, अचानक मजदूरों की यूनियन के मामूली नेता से वह कैसे वामपंथी नेताओं के आशीर्वाद से विधायक क्या बने कि, उनपर जमकर धनवर्षा होने लगी। जिस शहर में जन्म से किरायेदार होने का अभिशप्त जीवन जी रहे थे, अब इसी शहर में उनके कई प्लाट, फ़्लैट और मकान थे। उनके खुद कई किरायेदार थे और पिछले हफ़्ते ही उन्होंने अपनी खुद की एक फैक्टरी भी आदरणीय वामपन्थी नेता के हाथों उद्घाटन करवाके खोली थी। कहने की आवश्यकता नहीं कि आज जिस कक्ष में बैठे वह अपना पुराना भाषण सुन रहे थे। वह तमाम अत्याधुनिकतम सुविधाओं से युक्त लेटेस्ट फर्नीचर और सजावट से लेकर, फर्श पर बिछे बेशक़ीमती कालीन से सजा पड़ा था। जिसमें बारीक़ नक़्क़ाशी का महीन काम इस दर्ज़े का हो रखा था कि वो कालीन मुग़लकालीन जान पड़ता था। कहने का अभिप्राय यह कि कौन कहता है हिंदुस्तान में ग़रीबी है। वो रामभरोसे जी के ग़रीबख़ाने को एक नज़र भर देख ले, तो सारा भ्रम दूर हो जाये।
“दो पैग लगा लिए मगर अभी तक नशा नहीं हुआ। ये स्साली विलायती शराब भी आजकल मिलावटी आने लगी है।” अपने आप से ही बड़बड़ाते हुए रामभरोसे बोले। इण्टरकॉम पर नौकर दीनदयाल को फ़ोन लगाकर पूछा, “क्यों बे दीनदयाल ये घटिया और नक़ली शराब किसी देशी ठेके से तो उठाकर नहीं लाता तू?”
“नहीं साहब! एकदम ओरिजनल है।” दीनदयाल विस्वास दिलाने के स्वर में कहता।
“ज़रा नंबर लगा उसकी दुकान का।” रामभरोसे शराब के नशे में बहकता हुआ बोला।
“क्यों साहब?” दीनदयाल हड़बड़ाया।
“उसका लाइसेंस कैंसिल करवाऊंगा।” रामभरोसे ने लगभग इंटरकॉम पर रिसीवर पटकते हुए कहा। तभी रामभरोसे के निर्जीव से पड़े मोबाइल की घण्टी बज उठी। कुरते की जेब से मोबाइल निकालते हुए कान पे सटाकर कहा, “कौन है?”
“इक़बाल बोल रहा हूँ। मेरा नंबर सेव नहीं है क्या?” इक़बाल झुंझलाते हुए बोला।
“तुम्हारा पुराना नंबर सेव है। ये नया नंबर लिया है क्या?” नशे में झूमते हुए रामभरोसे बोले।
“आपने ड्रिंक कर रखी है क्या?” इक़बाल ने रामभरोसे के झूमते स्वर से अंदाज़ा लगाया।
“हाँ थोड़ी-सी?” रामभरोसे ने हामी भरते हुए कहा।
“वैसे भी जो ख़बर मैं देने वाला हूँ आपका नशा उड़ा देने के लिए काफ़ी है।” इक़बाल ने रहस्यमयी अंदाज़ में कहा।
“साफ़-साफ़ कहो!”
“आप नशे में धुत है और टी.वी. पर आपके एरिया की न्यूज़ चल रही है।”
“कैसी न्यूज़?” रामभरोसे जी मेज़ पर पैर पसरते हुए बोले, “हमारे इलाक़े में तो सब ठीक चल रहा है।”
“सर जी, आपके इलाक़े में एक ग़रीब परिवार ने ज़हर खाकर ख़ुदकुशी कर ली है। कोई भी समाचार चैनल लगाकर देख लो।” इक़बाल ने फ़ोन रख दिया।
बैठे-बैठे ही रिमोट का बटन दबाकर, रामभरोसे ने जैसे ही समाचार चैनल लगाया। ब्रेकिंग न्यूज़ बताकर टी.वी. का न्यूज़ एंकर घटनास्थल से सीधा प्रसारण दे रहा था। अभी दो घंटे पहले इस परिवार ने आर्थिक तंगी के चलते सामूहिक आत्महत्या कर ली है। पड़ोसियों से मिली जानकारी के मुताबिक राम सिंह पिछले छः महीनों से बेरोज़गार था। अन्य जानकारी के अनुसार मरने वालों में परिवार का मुखिया राम सिंह, उम्र लगभग चालीस वर्ष; उसकी पत्नी बवीता, उम्र ३५ साल, बड़ी लड़की रेनू, उम्र सोलहा साल; मंझली लड़की गुड्डी, उम्र बारह साल और छोटी लड़की गुड़िया, उम्र छः बरस। शाम को पुलिस द्वारा दरवाज़ा तोड़ने पर मृत पाए गए है। पड़ोसियों से जानकारी के मुताबिक दोपहर से ही इनका दरवाज़ा बंद था। शाम को दरवाज़ा खटकाने पर भी न खोलने पर पुलिस को बुलाया गया और दरवाज़ा तोडा गया। जैसा की हमारे कैमरामेन संतोष जी दिखा रहे हैं सभी चार बाई चार के कमरे में मृत पाए गए हैं। पूरा परिवार कुपोषण का शिकार था। ऐसा लगता था कई दिनों से बच्चों ने भी कुछ खाया-पिया नहीं था। देखिये मुरझाये हुए दुबले-पतले शरीर। अरे संतोष जी, ज़रा इधर कैमरा लाइए छोटी बच्ची के चेहरे पर। देखिए मांस नाम की कोई चीज़ नहीं बची है इसके शरीर पे जिधर देखो, उधर हड्डियाँ ही हड्डियाँ निकलीं हुईं हैं। इस इलाक़े के विधायक कौन हैं?” न्यूज़ एंकर ने सामने खड़े व्यक्ति से पूछा।
“रामभरोसे, स्साला कभी इलाक़े का दौरा नहीं करता है।” उस व्यक्ति ने आक्रोशित होकर कहा।
“रामभरोसे हाय, हाय। रामभरोसे मुरदाबाद।” उपस्थित जनसमुदाय नारे लगाने लगा।
“भाइयों-बहनों शान्ति बनाये रखें।” एंकर ने कहा। लेकिन भीड़ शान्त नहीं हुई।
“मैं अभिषेक दर्शकों को वापिस स्टूडियों लिए चलता हूँ।” एंकर ने इतना कहा और कैमरामैन ने कैमरा ऑफ कर दिया।
रामभरोसे के चेहरे पर अपराध बोध की हल्की-सी रेखाएँ उभरने लगी। मृत बच्ची का कंकालनुमा चेहरा, उनके ज़ेहन में घूम रहा था। नशा उतर चुका था।
“मालिक, समाजसेविका नताशा मैडम आई है… अन्दर भेजूँ क्या?” तभी दरवाज़े पर दीनदयाल ने दस्तक दी।
“अबे तुझे कितनी बार समझाया है कि नताशा मैडम जब भी आयें उन्हें भेज दिया करो।” रामभरोसे तपाक से बोले। समाजसेविका की आड़ में, नताशा मैडम देह व्यापार से भी जुड़ी थी। रामभरोसे के राजनैतिक संरक्षण में वह क़ानूनी पेचीदगियों से बची हुई थी। ‘नताशा’ के चेहरे को याद करते ही रामभरोसे रोमांचित हो उठे। उन्हें गुज़रे वक़्त की सिने तारिका ‘साधना’ की याद हो आती थी। जैसे ही उन्होंने एक पटियाला पैग बनाया और हलक से नीचे उतारा। सामने नताशा अपनी क़त्ल कर देने वाली निगाहों से बोली, “ज़ालिम हमारे ग़म में अकेले-अकेले ही पी रहे हो।”
“ग़म ग़लत कर रहा था, लेकिन आपका नहीं! फैज़ ने क्या खूब कहा है—और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा।” और रामभरोसे ने ब्रेकिंग न्यूज़ का हवाला दिया। नताशा की सहानुभूति पाने के लिए खुद को उस घटना से व्यथित होने का ढोंग किया।
“अरे हुज़ूर, हमारे होते आप क्यों ग़मगीन होने लगे? मैंने भी एक घंटा पहले वो न्यूज़ देखी थी।” नताशा ने एक पैग बनाते हुए कहा, “सारे समाचार चैनल सामूहिक आत्महत्या को पिछले एक घण्टे से रिपीट पर रिपीट टेलीकास्ट करके लाइव बता कर परोस रहे हैं!”
“फिर सोचा आप ग़म के झूले में हिचकोले खा रहे होंगे, इसलिए बाँटने चले आये।” कहकर नताशा ने अपने हाथों से बना पैग नेताजी के होठों से छुआ दिया।
“आपके आने के इस मुबारक़ मौक़े पर बशीर साहब ने भी क्या खूब कहा है—कभी यूं भी आ मेरी आंख में, कि मेरी नज़र को ख़बर ना हो। मुझे एक रात नवाज़ दे, मगर उसके बाद सहर ना हो।” बड़ी बेशर्मी से रामभरोसे ने ये शेर पढ़ा। नशा और नताशा उसके मनोमस्तिष्क पर पुनः हावी होने लगे थे। तेज़ रौशनी अब आँख में चुभने लगी थी। नताशा ने ट्यूब लाइट बुझाकर, ज़ीरो वाट का बल्व जला दिया। जिसकी कमज़ोर रौशनी में रामभरोसे के चेहरे पर हवस की हैवानियत उभर आई थी और कुपोषण की शिकार मृत बच्ची का चेहरा उनके ज़ेहन से न जाने कब गुम हो चुका था, जो अभी कुछ देर पहले उन्होंने टी.वी. पर देखा था।
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