*रामपुर के राजा रामसिंह (नाटक)*
रामपुर के राजा रामसिंह (नाटक)
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काल : लगभग अठारह सौ ईसवी
पात्र परिचय :
पंडित रामस्वरूप जी : आयु लगभग साठ वर्ष
भगवती : पंडित रामस्वरूप जी की पत्नी, आयु लगभग 60 वर्ष
सुलोचना : पंडित रामस्वरूप जी एवं भगवती की पुत्री, आयु लगभग तेरह वर्ष
स्थान : रामपुर रियासत
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पर्दा खुलता है।
पंडित रामस्वरूप गीता पढ़ रहे हैं:
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सव:
मामका: पांडवाश्चैव किमकुर्वत संजय
धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में, रण की इच्छा पाल
क्या करते संजय कहो, पांडव मेरे लाल
सुलोचना : पिताजी ! आपने संस्कृत गीता का हिंदी दोहा किस पुस्तक से पढ़ा है ?
पंडित रामस्वरूप जी : बेटी तुम तो जानती हो, मुझे भूत और भविष्य सब अक्सर दिखाई पड़ते हैं । यह उन्हीं में से कोई एक रचना है ।
सुलोचना : पिताजी ! आप इतने विद्वान हैं, लेकिन हमारे राधा-कृष्ण और उनकी गीता इस घर की परिधि में छुपकर ही हम क्यों पढ़ते हैं ? घर के बाहर जो बड़ा-सा चौराहा है और जहॉं बहुत सुंदर वृक्ष स्थापित है, उसके नीचे हम राधा-कृष्ण की मूर्ति स्थापित करके वहॉं गीता क्यों नहीं पढ़ते? कई बार मैं आपसे कह चुकी हूॅं।
पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! हर बार मैंने तुम्हें समझाया है कि हमें ऐसी स्वतंत्रता रामपुर रियासत में रहते हुए प्राप्त नहीं है ।
सुलोचना : आज तो मैं अपने राधा-कृष्ण की मूर्ति ले जाकर पेड़ के नीचे रखकर वही गीता पढ़ूंगी।
भगवती देवी (अपने पति पंडित रामस्वरूप जी से): अरे भाग्यवान! सुलोचना तो बच्ची है। वह तो कुछ भी कह सकती है। लेकिन आप तो समझदार हो। उसे क्यों नहीं रोकते ? अर्थ का अनर्थ क्यों करने जा रहे हो ? घर पर बैठकर भी तो गीता पढ़ी जा सकती है ।
सुलोचना : मॉं ! तुम हर बार हमें रोक देती हो और बीच में पड़कर हमें सार्वजनिक रूप से राधा-कृष्ण की उपासना करने से मना कर देती हो ।
पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! समझने की कोशिश करो। तुम्हारी भलाई के लिए ही मॉं ऐसा कह रही हैं ।
(सुलोचना एकाएक राधा-कृष्ण की मूर्ति और गीता हाथ में उठाकर चौराहे पर पेड़ की तरफ दौड़ पड़ती है। भौंचक्के हुए पंडित रामस्वरूप जी और उनकी पत्नी भगवती सुलोचना …सुलोचना पुकारते हुए उस बच्ची के पीछे दौड़ने लगे । पेड़ के पास जाकर सुलोचना रुक गई । उसने राधा-कृष्ण की मूर्ति पेड़ के नीचे रख दी । गीता हाथ में लेकर बैठ गई और पढ़ने ही वाली थी कि दोनों माता-पिता पीछे-पीछे आ गए । पंडित रामस्वरूप जी सुलोचना के हाथ से गीता छीनते हुए तथा राधा कृष्ण की मूर्ति पर अपने कंधे पर पड़ा हुआ अंगोछा डाल कर रखते हुए कहने लगे )
पंडित रामस्वरूप जी: सुलोचना ! अभी यह समय नहीं आया है।
सुलोचना : कब आएगा समय ? आप तो भूत-भविष्य सब जानते हैं, फिर बताइए ?
पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! अभी लंबा समय बीतेगा । मेरा और तुम्हारा दोनों के जीवन का जब अंत हो जाएगा, तब एक उदार, धर्मनिरपेक्ष शासक रामपुर रियासत में राजसिंहासन पर आसीन होंगे । उनका नाम नवाब कल्बे अली खॉं होगा । उसी समय पंडित दत्त राम नामक एक अलौकिक शक्तियों से संपन्न सत्पुरुष अपनी प्रेरणा से नवाब कल्बे अली खां को रामपुर रियासत में सर्वप्रथम सार्वजनिक मंदिर बनवाने के लिए उत्साहित करेंगे और तब नवाब साहब द्वारा आधारशिला रखकर रामपुर के पहले शिवालय का निर्माण संभव हो सकेगा ।
सुलोचना : इस कार्य में तो पचास साल से भी ज्यादा लग जाएंगे ।तो क्या तब तक हम अपने राधा-कृष्ण की मूर्ति को घर के अंदर ही पूजने के लिए अभिशप्त होंगे ?
पंडित रामस्वरूप जी : हां, जब तक पंडित दत्त राम और नवाब कल्बे अली खॉं का युग नहीं आ जाता, स्थिति आज के समान ही अंधकारमय रहेगी । सत्पुरुष तो प्रायः एक सदी बाद ही होते हैं।
सुलोचना (दुखी होकर): ऐसा कैसा रामपुर है, जहॉं राम और कृष्ण के नाम लेने के लिए सौ साल बाद नवाब कल्बे अली खां की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी ! फिर इसका नाम रामपुर क्यों है ?
(इतना कहकर सुलोचना अपने पिता के हाथ से गीता और राधा-कृष्ण छीन लेती है तथा उन्हें अपने सीने से चिपका कर घर की तरफ दौड़ जाती है । पीछे-पीछे माता-पिता भी घर पर आ जाते हैं। घर पर सुलोचना उदास और निढाल होकर खटिया पर लेट जाती है । माता-पिता उसके पास जाते हैं और उसके बालों को सहलाते हैं । सुलोचना सुबक उठती है।
सुलोचना : पिताजी! आप तो भूत और भविष्य दोनों जानते हैं। आपने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया कि यह स्थान रामपुर क्यों कहलाता है ?
पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! यह शताब्दियों पुरानी कहानी है, जो राजा राम सिंह के अतुलनीय पौरुष, बल और वीरता से भरी हुई है । राजा राम सिंह का राज्य रामपुर और मुरादाबाद तक फैला हुआ था । तब यह स्थान “कठेर खंड” कहलाता था।
सुलोचना : कठेर-खंड का क्या तात्पर्य है पिताजी ? आखिर किसे कहते हैं ?
पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! मैं इतिहास में बहुत दूर तक तो नहीं देख पा रहा हूं, लेकिन अंतर्दृष्टि से मुझे एक ऋषि का भी दर्शन हो रहा है । इसका संबंध वेद और उपनिषद के ज्ञान से भी जान पड़ता है । लेकिन इतने पुराने इतिहास के बारे में देखते समय मेरी दृष्टि धुंधला जाती है।
सुलोचना : तो फिर जरा निकट का ही इतिहास आप देखकर हमें बताइए ?
पंडित रामस्वरूप जी : (उत्साहित होकर) हां, वह तो स्पष्ट दिख रहा है । कोई राजा रामसिंह थे,जिनका शासन महान राजाओं में सर्वश्रेष्ठ था । वह प्रजा पालक, वात्सल्य से भरे हुए तथा न्याय और नीति के मार्ग पर चलने वाले महान शासक थे । उनके राज्य में पूजा-अर्चना और हवन की सुगंध चारों ओर फैलती थी ।
सुलोचना : (हर्षित होकर) तो क्या रामपुर रियासत में भी राजा राम सिंह के यज्ञों की सुगंध प्रवाहित होती थी ?
पंडित रामस्वरूप जी : भूतकाल को देखने पर मुझे तो कुछ-कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है ।
सुलोचना : कुछ और बताइए पिताजी ! इतने महान शासक के बारे में कुछ और जानने की इच्छा है ।
पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! अधिक तो प्रतीत नहीं हो रहा । मैं देखने का प्रयत्न करता हूं , लेकिन पटल पर धुंध और धूल छा जाती है । बस इतना दिख पाता है कि किसी ने धोखे से एक महा प्रतापी राजा रामसिंह के जीवन का अंत कर दिया था । उसी के साथ सनातन जीवन मूल्यों से जुड़े आचार-विचार की क्षति इस कठेर-खंड में चारों तरफ छा गई।
सुलोचना : फिर मुरादाबाद का क्या हुआ पिताजी ?
पंडित रामस्वरूप जी : वह तो अभी हाल का ही इतिहास है । उस पर मुगलों का शासन स्थापित हो गया । बस रामपुर वाला हिस्सा बचा । उसका नाम रामपुर रख दिया गया ।
सुलोचना : रामपुर का नामकरण रामपुर कैसे पड़ा ? यह किसके नाम पर है ?
पंडित रामस्वरूप जी : राम का नाम तो सर्वविदित है । हजारों-लाखों वर्षों से यही तो परमेश्वर का सत्य स्वरूप है । इस नाम का संबंध उस परम ब्रह्म परमात्मा से अवश्य ही बनता है। लेकिन हां, जब तुम कठेर-खंड के पतन के बाद निर्मित रामपुर रियासत के बारे में पूछ रही हो, तो इसका अभिप्राय राजा रामसिंह से है । राजा रामसिंह की मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों ने इस बचे-खुचे कठेर-खंड का नाम राजा राम सिंह के नाम पर रामपुर रखना अधिक उचित समझा।
सुलोचना : रामपुर कितना धन्य है, जिसका नामकरण भगवान राम और उनके भक्त राजा रामसिंह के नाम पर अनुयायियों द्वारा किया गया है । अब हम उस समय की प्रतीक्षा करेंगे, जब फिर से इस क्षेत्र में उदार विचारों की प्रधानता होगी और सबको अपने मन के अनुरूप पूजा-अर्चना का अधिकार और अवसर मिल सकेगा ।
पंडित रामस्वरूप जी : हां बेटी ! मैं भविष्य के पटल पर और भी बहुत कुछ देख रहा हूॅं। न केवल नवाब कल्बे अली खां और पंडित दत्त राम के परस्पर सहयोग और उदार विचारों के फलस्वरुप रियासत में एक मंदिर की स्थापना के महान कार्य को इतिहास के पृष्ठों पर अंकित होते हुए मुझे दिखाई पड़ रहा है, बल्कि यह भी दिख रहा है कि राजे-रजवाड़े अतीत का हिस्सा बन जाएंगे। समूचे भारत में जनता का शासन होगा । लोकतंत्र स्थापित हो जाएगा तथा फिर शोषण, उत्पीड़न, अत्याचार और शासक वर्ग की स्वेच्छाचारिता इतिहास का भूला-बिसरा अध्याय बन जाएगी ।
(सुलोचना अपने पिता के मुॅंह से यह सुनकर तालियॉं बजाने लगती है । उसकी मॉं की ऑंखों से भी ऑंसू निकल आते हैं । वह भी बेटी के साथ मिलकर तालियॉं बजाती हैं। पार्श्व में स्वर गूंजता है कि हमारी एकता अमर रहे ….हम सब भारतवासी आपस में भाई-बहन हैं..
इसके बाद पर्दा गिर जाता है।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451