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19 Sep 2024 · 7 min read

*रामपुर के धार्मिक स्थान और मेले*

रामपुर के धार्मिक स्थान और मेले
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लेखक: रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज) रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
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रामपुर के सातवें शासक नवाब कल्बे अली खान ने 1865 ईसवी में राज्यारोहण के पश्चात रामपुर की जनता के मनोरंजन के लिए सर्वप्रथम बेनजीर का मेला आयोजित किया। इस मेले में संगीत, कला और करतब के खूब रंग जमते थे। मेला नवाब साहब की व्यक्तिगत अभिरुचि के कारण उनके जीवन काल 1887 तक खूब धूमधाम से लगा।

रामपुर के ऐतिहासिक तथा धार्मिक स्थलों में शहर के मध्य में स्थित जामा मस्जिद का नाम अत्यंत आदर के साथ लिया जाना उचित है। इसका शिलान्यास एवं निर्माण 1874 ईस्वी में नवाब कल्बे अली खान के शासनकाल में हुआ। जामा मस्जिद की भव्यता देखते ही बनती है। यह सुंदर और विशाल धार्मिक स्थल रामपुर की एक विशेष पहचान है।
धार्मिक ऐतिहासिक स्थलों की ही श्रेणी में ईदगाह का निर्माण भी कहा जा सकता है। यह 1873 ईसवी में निर्मित हुआ। आज भी शहर में ईद की नमाज ईदगाह में ही अदा की जाती है। जिस दरवाजे के पास ईदगाह का निर्माण हुआ, उसका नाम शाहबाद दरवाजे के साथ-साथ बड़ी संख्या में आज ईदगाह दरवाजे के रूप में भी प्रचलन में है।

अपने शासनकाल में धार्मिक सद्भाव तथा सर्वधर्म समभाव की विचारधारा को प्रेरित करते हुए नवाब कल्बे अली खान ने रामपुर शहर के मध्य मिस्टन गंज के निकट एक गली में पंडित दत्तराम के शिवालय का निर्माण कराया। इसका शिलान्यास स्वयं अपने हाथों से सोने की ईंट रखकर किया। पंडित दत्तराम आध्यात्मिक शक्तियों के धनी थे। परिणाम स्वरूप रामपुर शहर की मंदिर वाली गली में पंडित दत्तराम का शिवालय सर्वप्रथम सार्वजनिक मंदिर है ।

नवाबी शासन के आसपास निर्मित हुए मंदिरों की श्रृंखला में ही रामपुर के पुराने मंदिरों में पंडित मुनीश्वर दत्त का मंदिर जिसे ठाकुरद्वारा मंदिर भी कहते हैं, लगभग तीन सौ वर्ष पुराना है। इसकी स्थापना पंडित मुनीश्वर दत्त ने मिस्टन गंज के निकट गली में की थी। उसके बाद से उन्हीं की वंश परंपरा में पुजारी निरंतर मंदिर में पूजा-अर्चना करते चले आ रहे हैं। जनता के बीच भारी मान्यता के कारण पंडित मुनीश्वर दत्त का मंदिर तथा पंडित दत्तराम का शिवालय दोनों का पुनर्निर्माण होकर अत्यंत भव्य स्वरूप ले चुका है।

शहर से बाहर तहसील मिलक में रठौंडे का मंदिर भगवान शंकर का अति प्राचीन पूजा स्थल है। रियासत के जमाने में यह ग्वालियर स्टेट में आता था। यहॉं पर शिवरात्रि के अवसर पर बड़ा भारी मेला लगता है और इस धार्मिक ऐतिहासिक स्थान पर भक्त बड़ी संख्या में पधारते हैं।

भमरौवे का मंदिर प्राचीन मंदिरों में विशेष आस्था का केंद्र कहा जा सकता है। यह भी भगवान शंकर का पूजा स्थल है। मंदिर का नवनिर्माण भक्तों के सहयोग से निरंतर होता जा रहा है।

ग्राम पंजाब नगर में शिव मंदिर अवकाश प्राप्त तहसीलदार छेदालाल सक्सेना की देन कहा जाएगा। आपकी धर्मपत्नी शकुंतला देवी की बगिया की जमीन पर इस मंदिर का निर्माण हुआ। चमत्कारी रूप से जमीन में से शिवलिंग प्रकट हुए थे और छेदा लाल सक्सेना ने उस स्थान पर मंदिर बनाने का निर्णय लेकर अपना तन मन धन इस कार्य के लिए अर्पित कर दिया। भक्तों की भारी भीड़ इस मंदिर के प्रति आस्था के कारण उमड़ पड़ती है।

राधा कृष्ण मंदिर रामपुर में रियासत कालीन मंदिरों में प्रमुख है। इसकी स्थापना रामपुर के प्रसिद्ध धनाड्य लाला मुन्नी लाल अग्रवाल ने नवाबी शासन काल में की थी। मंदिर में स्थापित भगवान की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा लाला मुन्नी लाल जी के धेवते नरेंद्र किशोर ‘इब्ने शौक’ के शब्दों में “वृंदावन निवासी हित हरिवंश गौरव गोस्वामी जी की विधि साधना” से की गई थी।
मुन्नीलाल धर्मशाला/ राधा कृष्ण मंदिर के द्वार पर एक पत्थर लगा हुआ है जिस पर मिती माघ बदी एक संवत 1990 विक्रमी अंकित है। (इतिहासकार रमेश कुमार जैन से प्राप्त जानकारी के अनुसार इसका अर्थ 1 जनवरी 1934 सोमवार हुआ।)

दैनिक सत्संग अब किसी-किसी शहर में कोई-कोई ही देखने में आते हैं। लेकिन कई दशकों से अग्रवाल धर्मशाला स्थित रामनाथ सत्संग भवन में बृजवासी लाल भाई साहब ने श्री राम सत्संग मंडल के माध्यम से दैनिक सत्संग का जो बीजारोपण किया, वह उनकी मृत्यु के पश्चात रवींद्र भूषण गर्ग और अब विष्णु शरण अग्रवाल सर्राफ के माध्यम से निरंतर प्रगति की ओर अग्रसर है।

रामपुर में बंगाली समाज सिविल लाइंस स्थित आदर्श धर्मशाला में शारदीय नवरात्र के अवसर पर दुर्गा पूजा बहुत उत्साह और धूमधाम से मनाता है। अन्य समाज के लोग भी श्रद्धापूर्वक इसमें सम्मिलित होते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होता है। मैदान में कुर्सियॉं बिछती हैं। भीतर हॉल में धार्मिक पूजा आयोजित की जाती है। वैसे तो दुर्गा पूजा अनेक मंदिरों में मनाई जाती है, लेकिन बंगाली समाज की यह पूजा कुछ अलग ही विशिष्ट रंग लिए होती है।

मॉ ललिता देवी का मंदिर शक्तिपीठ के रूप में रामपुर में डॉ राधेश्याम शर्मा वासंतेय की साधना स्थली है। आपने गुरु शिष्य परंपरा में आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया और ध्यान, समाधि तथा शक्तिपात विद्या के द्वारा अपने शिष्यों को ज्ञान देते हैं। आप रामपुर में राजकीय रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर रहे। मॉं ललिता देवी का मंदिर शक्तिपुरम डायमंड रोड पर शाहबाद गेट के निकट स्थित है।

माई का थान पूराना गंज रामपुर में स्थित आस्था का पुरातन केंद्र है। नवाबी काल से पहले का यह साधना स्थल माना जाता है। भक्तों की श्रद्धा माई के थान को निरंतर भव्य रूप दे रही है। इसके द्वार चॉंदी के बन चुके हैं। देवी दुर्गा के श्रृंगार के लिए सोने के आभूषण भक्तों की श्रद्धा भावना को प्रकट कर रहे हैं। दुर्गा जी के नौ रूप भव्य रूप से मंदिर में विराजमान हैं ।

हरिहर का मंदिर पूराना गंज क्षेत्र में स्थित है। हरिहर बाबा एक पुराने संत रहे। उनकी तपस्या स्थली ही कालांतर में हरिहर का मंदिर बन गई।

बाबा लक्ष्मण दास की समाधि रामपुर की एक प्राचीन आध्यात्मिक धरोहर है। बाबा लक्ष्मण दास सूफी फकीर सुभान शाह मियॉं के शिष्य थे। उनकी समाधि पर एक पत्थर फारसी भाषा में लिखा हुआ आज भी देखा जा सकता है। इस पर 1310 हिजरी 18 शव्वाल अंकित है। विक्रम संवत को इंगित करते हुए 1950 भी लिखा हुआ है। इसके अनुसार 5 मई 1893 ईसवी समाधि की तिथि बैठती है।

दशहरे का मेला रामपुर का मशहूर है। रामलीला नवाबी शासन के आखिरी दौर में आजादी के बाद शुरू हुई। एक साल पनवड़िया में लगी। फिर रामलीला मैदान में लगना शुरू हुई। अभी तक लग रही है। दशहरे के मेले में रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं। भारी भीड़ शहर से और आसपास के गॉंवों से दशहरे मेले को देखने के लिए आती है। इस अवसर पर राम-रावण का युद्ध भी प्रदर्शित किया जाता है। ॲंधेरा होते-होते भगवान राम के तीर से रावण का वध होता है और रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले धू-धू करके जल उठते हैं।

कोसी का मेला रामपुर की शहरी और ग्रामीण दोनों प्रकार की आबादी को आकर्षित करने में पूरी तरह सक्षम है। कोसी नदी के तट पर कोसी का मंदिर वैसे तो प्रतिदिन ही श्रद्धालुओं की पूजा-अर्चना की चहल-पहल से भरा रहता है; लेकिन जब गंगा स्नान पर कोसी का मेला लगता है तब कोसी वाले मंदिर की शोभा द्विगुणित हो जाती है। कोसी मंदिर रामपुर का पुराना मंदिर है। यह कोसी नदी के तट पर स्थित होने के कारण कोसी मंदिर कहलाता है। इसकी चारदीवारी छोटी ईंट की बनी हुई है। इस अवसर पर वहॉं भंडारा होता है। कोसी के मेले में मार्ग में अनेक स्थानों पर भंडारे चलते रहते हैं। नदी के तट पर भी अनेक भंडारे देखे जा सकते हैं। खाने-पीने के अनेक प्रकार के ठेले तथा दुकानें सजी रहती हैं। मिट्टी के बर्तन मेले में खूब बिकते हैं।

रामपुर में पनवड़िया पर लगने वाली नुमाइश शहर की जनता के मनोरंजन और आकर्षण का मुख्य केंद्र है। हर साल इसका आयोजन होता है। रियासत के विलीनीकरण के बाद भी यह कृषि एवं औद्योगिक प्रदर्शनी के रूप में नए नामकरण के साथ लगती रही, तथापि जनता की जुबान पर ‘नुमाइश’ शब्द ही चढ़ा रहा। नुमाइश के मेले की विशेषता यह है कि यहॉं पक्की दुकानें बनी हुई हैं ।दूर-दूर से दुकानदार यहॉं आते हैं और अपने सामान का प्रदर्शन और बिक्री करते हैं। लोग खरीदारी भी खूब करते हैं, क्योंकि जो सामान अपनी विशिष्ट बारीकी के साथ यहॉं खरीदने को मिल जाता है, वह अन्यत्र बाजारों में नहीं मिल पाता। खाने-पीने के स्टाल भी जनता का आकर्षण बढ़ाते हैं। कवि सम्मेलन, मुशायरा और संगीत सम्मेलन नुमाइश के मेले में चार चॉंद लगा देते हैं।

‘उत्सव पैलेस’ हाल ही के वर्षों में रामपुर के धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजनों के लिए एक प्रकार से केंद्र बन गया है। इसका निर्माण रामलीला मैदान में महामंत्री शिव हरि गर्ग के कार्यकाल में उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति और प्रयासों के कारण ही संभव हो सका। आज यह पूरी तरह ढका हुआ रामपुर का सबसे बड़ा हॉल है, जो बरसात और धूप दोनों से कार्यक्रमों की सुरक्षा करता है। इसी हॉल में रामलीला का आयोजन भी होता है।

गॉंधी समाधि के उल्लेख के बगैर रामपुर के आस्था केंदो की सूची अधूरी ही मानी जाएगी। 1948 में गॉंधी जी का दाह संस्कार दिल्ली स्थित राजघाट में हुआ था लेकिन उनके प्रति श्रद्धा और आस्था व्यक्त करने के लिए रामपुर के तत्कालीन शासक नवाब रजा अली खान अपनी स्पेशल ट्रेन में बैठकर तथा साथ में रामपुर के विद्वानों और पुरोहितों को लेकर सम्मानजनक रीति से गॉंधी जी की चिता की भस्म का अंश रामपुर लाकर भूमि में सुरक्षित करने में सफल रहे। जिस स्थान पर गॉंधी जी की चिता की भस्म का कलश सुरक्षित है, उसे गॉंधी समाधि कहते हैं। यह गॉंधी समाधि केवल एक दर्शनीय ऐतिहासिक स्थल ही नहीं है, बल्कि रामपुर की सबसे अनमोल धरोहर और गॉंधी जी के प्रति रामपुर रियासत के शासकों द्वारा व्यक्त की गई श्रद्धा भावना का जीता जागता स्मारक भी कहा जा सकता है।
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संदर्भ:
1) रामपुर का इतिहास, लेखक शौकत अली खान एडवोकेट, प्रकाशन वर्ष 2009 ईसवी
2) चंद गजलियात, लेखक नरेंद्र किशोर इब्ने शौक, प्रकाशन वर्ष 1987 ईसवी
3) रामपुर के रत्न, लेखक रवि प्रकाश, प्रकाशन वर्ष 1986 ईसवी
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा ,रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451

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