रामचरित दोहामुक्तावली
1
राम लला के जन्म से, धन्य हुआ भू लोक.
चार सुतों को देख के, दशरथ बने अशोक.
क्या ऋषि-मुनि, क्या नागरिक, देवलोक भी धन्य,
अवतारी के जन्म से, फैला है आलोक.
2
दशकंधर के राज में, असुरों का उत्पात.
हर गुरुकुल में थे बने, आतंकित हालात.
रामलला पहुँचे हुआ, हर्ष अपार असीम,
प्रवृत्तियाँ फिर राक्षसी, बढ़ी नहीं दिन-रात.
3
त्रस्त हुए सामान्य जन, पहुँचे जनक समीप.
खत्म हुआ अब धान्य धन, हरो पीर आधीप.
कृपा हुई तब भूप पर, कर पूजन हल भूमि,
माया बन प्रकटी सिया , जले घरों में दीप.
4
सीता के स्पर्श से, हिला धनुष शिव जान.
जनक भये विस्मित तभी, करके मन में ध्यान.
वरण करेगा सिय वही, तोड़े धनुष पिनाक,
महा अलौकिक हे सिया, किया जनक ऐलान.
5
एकत्रित दिग्गज सभी, भू मंडल के भूप.
रावण, बलि, श्रीराम मय, पहुँचे सभी अनूप.
रावण की गर्जन सुनी, बलि से हुआ प्रलाप,
छोड़ सभा रावण गया, छँटी अनल सी धूप.
6
भूप सभी लज्जित हुए, जमा सके नहीं धाक.
कुछ तो ऐसे भी रहे, हिला न सके पिनाक.
जनक हुए चिंतित तभी, करने लगे विलाप,
वीरों से वंचित हुई, भूमि हे स्वामि पिनाक.
7
राम उठे आशीष ले, किया चरण स्पर्श.
गुरु वंदन कर चल दिये, धनुष समीप सहर्ष.
दे अपना परिचय किया, वंदन शिव धनु देख,
उठा धनुष कर भंग फिर, देखा सिय का हर्ष.
8
कुछ दिन आयोजन चला, विदा हुए सब भूप.
सभी चकित थे देख कर, वर्ण अलौकिक रूप.
ले वधुओं, बारात सँग, लौटे अवध नरेश,
पुष्प वृष्टि से हो रहा, पथ अवरूद्ध अनूप.
9
रावण कुल का नाश जब, हुआ जहाँ आरंभ.
देख विकल लंकाधिपति, आहत होता दंभ.
शूर्पनखा विद्रूप मुख, मृतमरीच को देख,
दशकंधर ने सिय हरी, नाश हुआ प्रारंभ.
10
समरांगण में हत हुआ, दशकंधर सा वीर.
राज विभीषण सौंप कर, पहुँचे अवध अधीर.
राम-सिया अरु हों लखन, अंजनिसुत जब संग,
रामराज्य में शांति की, बहे सुगंध समीर.