रामचरितमानस दर्शन : एक पठनीय समीक्षात्मक पुस्तक
रामचरितमानस दर्शन : एक पठनीय समीक्षात्मक पुस्तक
पिछले कुछ दिनों से मैं आदरणीय रवि प्रकाश जी द्वारा रचित पुस्तक रामचरित मानस दर्शन का अध्ययन कर रहा हूँ। तुलसी कृत रामचरित मानस लगभग हम सभी ने अवश्य पढ़ी होगी। मैंने तो कई बार पूरी रामचरित मानस का अध्ययन किया है और टीका सहित अध्ययन किया है, और हर बार पढ़ने पर कुछ न कुछ नयी जानकारी मिलती है।
आदरणीय रवि प्रकाश जी ने भी प्रतिदिन लगभग तीस दोहों का सस्वर वाचन भावार्थ सहित उपस्थित सत्संग प्रेमी भक्तजनों के सम्मुख किया,साथ ही उन्होंने दैनिक रूप से जो पढ़ा उसकी दैनिक समीक्षा भी लिखी। ये समीक्षा वे दैनिक आधार पर साहित्यिक मुरादाबाद व साहित्य पीडिया के पटल पर भी शेयर करते थे।
पाठ पूर्ण होने पर उन्होंने इन दैनिक समीक्षाओं को संकलन रुप में प्रकाशित करवाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। रामचरित मानस की समीक्षा का उनका यह संकलन स्वयं में अत्यंत अनूठा और उपयोगी है। बहुत सरल, आम बोलचाल की भाषा में रचित इस समीक्षा में, तमाम ऐसे तथ्यों का पता भी चलता है जो कई बार के मानस अध्ययन के बाद भी अन्जाने ही रह जाते हैं,
यथा:
तुलसीदास जी द्वारा रचित यह ग्रंथ आज से लगभग 449 वर्ष पूर्व संवत् 1631 विक्रमी में चैत्र मास की नवमी तिथि को (जो श्री राम की जन्म तिथि भी है) प्रकाश में आया, इस तथ्य के संदर्भ में मानस की ये चौपाइयाँ उद्धृत की गयी हैं:
संवत् सोलह सौ एकतीसा। करहुँ कथा हरि पद धरि सीसा।
नौमी भौमवार मधुमासा। अवधपुरी यह चरित प्रकासा।
जेहिं दिन राम जनम श्रुति गावहिं। तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं।
इसी प्रकार कवियों में व्याप्त आत्म श्लाघा की प्रवृत्ति का भी जिक्र तुलसीदास जी ने किया है और उस संदर्भ में लिखा है कि अपनी कविता तो सबको अच्छी लगती है, चाहे वह रसमय हो या नीरस हो लेकिन जो दूसरे की कविता सुकर हर्षित होते हैं, ऐसे व्यक्ति संसार में कम ही हैं:
निज कवित्त केहि लाग न नीका। सरस होउ अथवा अति फीका।
जे पर भनिति सुनत हरषाहीं। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं।
स्वयं बिना किसी अभिमान के तुलसीदास जी अपनी रचनाधर्मिता के संदर्भ में अपने को अज्ञानी बताते हैं। यही उनकी महानता है।
कवित विवेक एक नहिं मोरे। सत्य कहहुँ लिखि कागज कोरे।
राम नाम की महिमा राम से भी अधिक होने का संदर्भ भी तुलसीदास जी के साहित्य में बार बार आया है। इस पुस्तक में भी सोदाहरण इसका उल्लेख किया गया है। तुलसीदास जी के मतानुसारः
कहउँ नाम बड़ राम तें,निज विचार अनुसार।
साथ ही यह भी स्पष्टतः रेखांकित किया है कि रामकथा के अध्ययन, पठन पाठन, गायन व श्रवण से व्यक्ति को तभी आनंद प्राप्त हो सकता है जब वह राम कथा के प्रति श्रद्धा व विश्वास रखता हो।
राम अनंत अनंत गुण, अमित कथा विस्तार।
सुनि अचरज न मानहिं, जिन्ह के विमल विचार।
कहने का तात्पर्य यह है कि रवि प्रकाश जी की यह पुस्तक सभी के लिये पठनीय है, उनके लिये भी जिन्होंने बारंबार मानस का अध्ययन किया है, क्योंकि मानस की यही विशेषता है कि बार बार पढ़ने पर कुछ न कुछ नवीन मिलता है, इसी प्रकार जितने लोग अध्ययन करते हैं सबको कुछ न कुछ नया ज्ञान मिलता है और पुस्तक रूप में जब यह ज्ञान सम्मुख आता है तो पाठकों के ज्ञान में भी वृद्धि करता है।
मुझे तो इस पुस्तक के पठन में अत्यंत आनंद आ रहा है, अभी थोड़ा ही पढ़ा है, फिर भी इसके विषय में लिखने का लोभ संवरण न कर पाया।
पूरी पढ़ने के बाद पुनः इसके संदर्भ में लिखूँगा।
सभी साहित्य मर्मज्ञों से भी आग्रह है कि वे साहित्य पीडिया पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक को अवश्य पढ़ें, निश्चय ही आपको आनंद आयेगा।
श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG 69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद।
मोबाइल 9456641400
09.10.2023