Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Jul 2024 · 8 min read

रामचंद्र झल्ला

रामचंद झल्ला

स्कूल जाते हुए अतुल को कई बार रामचन्द गाते बजाते, तेज कदमों से जाते हुए दिखाई दे जाता । उसके कंधे पर एक झोला होता , जिसको पाने के लिए बच्चे सड़क पर झुंड बनाकर उसको घेर लेते ,
“ रामचन्द झल्ला, झोले में है नारियल
रामचन्द झल्ला , झोले में है घेवर “
बच्चे बोलते जाते और कविता रचते जाते , रामचंद घेरे में फुदकता रहता और झोले को कस कर पकड़ कर हँसता रहता , फिर अचानक वह झोला छोड़ देता, बच्चों को लगता , वे जीत गए , और झेले में से जो उन्हें पसंद आता , निकाल लेते । उसके झोले में सब कुछ निकलने की संभावना रहती । अतुल ने झोले में से ग़ुब्बारे, कापी, पेन्सिल , टाफी , अमरूद , न जाने क्या क्या निकलते देखा है । बच्चे चले जाते तो रामचंद अतुल को देखकर ऐसे हँसता , मानो यह कोई उनका आपसी मज़ाक़ हो । अतुल भी खुल कर मुस्करा देता ।

अतुल आठवीं में आया तो उसके पापा ने उसे साइकिल ख़रीद दी, अब वह रोज़ शाम को निकल जाता शहर भर में आवारागर्दी करने के लिए, एक दिन वह घूमते घूमते घर से बहुत दूर निकल गया , वहाँ भी उसने देखा रामचंद गाये जा रहा है, और बच्चे उसके पीछे भाग भाग कर गा रहे हैं , रामचंद झल्ला. ..
उसे इस तरह शाम को देखकर बहुत अजीब लगा, जैसे कोई दोपहर का सोया बच्चा सूरज ढलने पर जगे, और उसे लगे जैसे सुबह हो गई हो ।

गर्मियों की छुट्टियाँ थी , अतुल अपने चाचा की बेटी की शादी में आया था । यह जगह अतुल के घर से बहुत दूर थी , उस दिन विवाह पूर्व का समारोह था और रात का भोजन समाप्त हो चुका था , बहुत से अतिथि जा चुके थे, कि चाचा जी ने अतुल से कहा , चलो मेरी सहायता कर दो , चाचा जी उसे रसोई में ले गये , महाराज ने बचा हुआ सारा खाना बांध दिया । चाचा जी और अतुल खाना लेकर बाहर आ गए , तो अतुल ने देखा , उनके सामने रामचंद खड़ा है । एक पल के लिए अतुल उसे वहाँ अचानक पाकर हक्का बक्का खड़ा रहा , फिर उसने चाचा जी की आवाज़ सुनी , “खाना उसके झोले में डाल दो । “

अतुल ने पहली बार उस झोले को इतने क़रीब से देखा, उसे वह सचमुच एक जादुई झोला लगा, जिसके अंदर पूरी दुनिया के बच्चों की कल्पनाएँ बंद थी ।

“ यह इतने सारे खाने का क्या करेगा चाचा जी ? “ अतुल ने रामचंद के जाने के बाद पूछा ।

“ हरिजनों की बस्ती में बाँट देगा ।”

अतुल अब बड़ा हो गया था , इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ रहा था, और जिस लड़की को पसंद करता था , उसने इसकी प्रेम की प्रार्थना को ठुकरा दिया था। वह उदास स्कूटर उठाकर यूँ ही बेमक़सद ड्राइव पर निकल पड़ा । शहर का अंत आ रहा था , दूर गंगा जी , न जाने किस उत्साह से बहीं जा रही थी । उसने स्कूटर गंगा जी की ओर मोड़ दिया । आकाश लाल था, दूर पहाड़ स्थिर खड़े उसे आमंत्रित कर रहे थे , वो खोया खोया यूँ ही नदी के संग चलने लगा , कुछ दूरी पर पेड़ के पीछे से एक स्वर आ रहा था, वह कह रह था, देखो बच्चों कविता को समझो नहीं महसूस करे, उसके सारे अर्थ सच्चे हैं , वह सब मिलकर उसके अर्थ को बढाते हैं घटाते नहीं , कवि तो बस माध्यम है, किसी नई बात का आरम्भ करने के लिए, उसे पूरा तो हम सब मिलकर करेंगे । “

अतुल निकट आ गया था, आवाज़ एकदम स्पष्ट हो गई थी, और बड़ी पहचानी सी लग रही थी , पर वह इस स्वर को नाम नहीं दे पा रहा था ।

एकदम निकट आकर उसने एक झोला देखा, वह समझ गया, यह रामचंद है । वह वहीं कौतुक वंश छिपकर खड़ा रहा। कक्षा समाप्त हुई तो सब बच्चे रामचंद के पास आ गए और वे झोले में से कुछ न कुछ निकाल कर सबको देता जाता और हँसता जाता, बच्चे भी उसके साथ हंस देते, एक अजीब सा सहज ख़ुशी का माहौल था ।

बच्चे चले गए तो अतुल सामने आ गया, इस सहज ख़ुशी से उसका मन भी हल्का हो उठा था ।

रामचंद की दृष्टि उस पर पड़ी तो पहले आश्चर्य और फिर उसने सहज भाव से कहा , “ गंगा किनारे घूमने आए हो ? “
“ पहचाना मुझे ? “ अतुल ने कहा ।
“ बड़े हो गये हो, पर आँखों में अभी भी वही सरलता है , पहचानता हूँ । “
रामचंद उठकर चलने लगा तो अतुल भी उसके साथ कदम मिलाकर चलने लगा, “ कौन थे ये बच्चे? “
“ सड़क के उस पार हरिजन बस्ती में रहते हैं ।”
“ आप उन्हें बहुत अच्छा समझा रहे थे । “
“ धन्यवाद । “ रामचंद ने तेज़ी से कदम बढ़ाते हुए कहा ।
“ कौन हैं आप? “
“ लड़की ने दिल तोड़ दिया? “
“ हाँ । आपको कैसे पता ? “
रामचंद हंस दिया, “ वर्षों से हूँ यहाँ , एकांत की तलाश में लोग चले आते हैं यहाँ, तुम्हारी उम्र में अकेले तभी आते हैं , जब लड़की छोड़ देती है । “
अतुल ठंडी साँस लेकर मुस्करा दिया ।
रामचंद ज़ोर से हंस दिया, “ घबराओ नहीं यह ज़ख़्म नहीं खरोंच है, कल तक ठीक हो जाओगे ।”
अतुल फिर भी मुँह लटका कर चलता रहा तो रामचंद ने कहा ,” चलो मेरी कुटिया हैं पास में, वहाँ चलकर तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ ।

सूर्य अस्तांचल में था , दूर एक नाविक घाट पर अपनी नींव बांध रहा था । रामचंद भीतर से एक चटाई ले आया , दोनों उस पर बैठ गए तो रामचंद ने आँखें बंद कर ली, जैसे कहीं गहरे भीतर झांक रहा हो ,
“ न जाने कितने वर्ष बीत गए , एक युवक था, उसे गणित बहुत पसंद था, उसके पास शब्द नहीं, अंक थे , और था संगीत, इन दोनों में वह वो सब देख लेता था, जिसे दुनियाँ शब्दों में नहीं कह पाती । वह धनी माँ बाप की इकलौती संतान था, “ और रामचंद ने मुस्कुराकर आँखें खोल दी , “ और उसे एक बहुत ख़ूबसूरत लड़की से प्रेम हो गया , लड़की भी उसे चाहती थी , परन्तु माँ बाप ने उससे शादी की सहमति नहीं दी , क्योंकि वह लड़की अनाथ आश्रम से थी , लड़का लड़की मिलते रहे, और सोचते रहे, समय बदल रहा है, एक दिन उसके माता-पिता भी मान जायेंगे । लड़की गर्भवती हो गई और वह दोनों घबरा गए । लड़के ने लड़की से मंदिर में शादी कर ली , पढ़ा लिखा तो था ही , नौकरी भी मिल गई, एक छोटा सा घर ले लिया और लड़की को वहीं रख दिया , माता-पिता उसकी इन सारी गतिविधियों से अनजान थे । समय पर बच्चा हुआ, परंतु हाई ब्लड प्रेशर के कारण उस लड़की को हार्ट अटैक आ गया , और जन्म देते ही स्वर्ग सिधार गई । “ बात समाप्त होते न होते रामचंद की आँखें कहीं दूर जाकर स्थिर हो गई, जैसे यह सब वह अपनी आँखों के सामने घटित होते देख रहा हो । “ लड़का बौखला गया, यह स्थिति उस अनुभवहीन के लिए बहुत बड़ी थी , वह अकेला उसका क्रियाकर्म कर आया , अस्पताल से छुट्टी मिलते ही सीधा अनाथ आश्रम पहुँचा , और बच्चे को वहाँ छोड़ आया । नौकरी छोड़ दी और सारा दिन बंद कमरे में पड़ा रहता । धीरे-धीरे वह स्वतः इस स्थिति से उभर आया, सबसे पहले उसे बच्चे का ध्यान आया , उसे यह सोचकर बहुत अजीब लगा कि उसे अपने ही बच्चे का शक्ल याद नहीं , सब कुछ होते हुए भी वह बच्चा दूसरों के आश्रय पर पल रहा है । वह बौखलाहट में अनाथालय पहुँचा, परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी वो बच्चा दत्तक दिया जा चुका था, और अनाथ आश्रम किसी भी स्थिति में उसके नए माँ बाप का पता देने के लिए तैयार नहीं था। “

“ यह कहानी आपकी अपनी है न? “ अतुल ने रामचंद के रूकते ही कहा ।
“ हाँ , यह कहानी मेरी अपनी है । “ रामचंद ने कुछ इस तरह से कहा, जैसे एकदम स्पष्ट बात कह रहा हो । “ उसके बाद मैं घर नहीं जा पाया , दिनों दिन चलता रहा , जहां जगह मिलती सो रहता , जो खाना मिलता खा लेता , नहीं मिलता तो भूखा सो जाता, मैं अपने अपराध बोध से इतना दबा कि मेरा संगीत, मेरा गणित, सब छूट गए, मैं इतने क्रोध में था कि घर की ओर मेरे कदम उठ ही नहीं पाते थे । “

रामचंद ने अतुल की आँखों में आँखें डालते हुए कहा, “ भावनाओं का ज्वार हिमालय से भी ऊँचा होता है , वह अपने आप में एक ब्रम्हाण्ड लिये होता है, जहां कुछ शेष नहीं रहता, वह तूफ़ान तब तक नहीं छटता जब तक वह अपनी पूरी उम्र जी न ले ।“

कुछ पल की चुप्पी के बाद , रामचंद फिर बोला , “ उसी पागलपन की स्थिति में मैं एक दिन यहाँ पहुँचा , एक संन्यासी कुटिया के बाहर अपना रात का भोजन पका रहे थे , उन्होंने मुझे भोजन कराया और रात यहाँ बिताने का आग्रह किया । उस रात मैं पहली बार अपने मन की व्यथा किसी से कह पाया । उन्होंने मुझे संस्कृत का ज्ञान दिया , वे आसपास के बच्चों को पढ़ाते थे, रात को बस्ती के लोग आ जाते थे और गुरू जी का निर्बाध प्रवचन आरंभ हो जाता था , जिसमें कोई विषय भेद नहीं होता था, वो होता था समग्र ज्ञान । कुछ वर्ष हुए वह नहीं रहे। मैं यहीं रह गया ।”
“ आपके माता-पिता? “
“ एक बार गया था , वहाँ मेरी जगह मेरा ममेरा भाई रह रहा था , माता-पिता जा चुके थे, उसने उनकी बहुत सेवा की थी । प्रकृति को ख़ालीपन बर्दाश्त नहीं, मेरी जगह भर गई थी । “
“ और यह गलियों में गाना ? “
रामचंद हंस दिया, “ मुझे गुरूजी के साथ रहते कुछ समय बीत चुका था और मेरा मन शांत हो चला था, एक दिन बरसात के दिन मैं हल्के मन से झूम उठा, और मेरा खोया संगीत मेरे पास लौट आया , मैं वहीं भाव विभोर होकर गाने लगा, किसी ने कहा, ‘ अरे, ये तो रामचंद है । पास खड़ा बच्चा खिलखिलाकर हंस दिया, ‘ रामचंद झल्ला ‘ “ और फिर वो मेरे थैले की ओर झपटा, बस तब से यह सिलसिला शुरू हो गया , मुझे मिट्टी में मिलना था , मैं ऐसे घुलने लगा, और तब से बस घुल ही रह हूँ, फिर भी मन है कि अभी भी ढेर नहीं हुआ । “ यह कहते कहते रामचंद के चेहरे पर अजीब सी तरलता आ गई, और अतुल को लगा जैसे वो इस तरलता में घुल रहा है ।

अतुल ने देखा सड़क पार से कुछ लोग चले आ रहे हैं , वो समझ गया कि प्रवचन का समय हो गया है । वह नमस्कार कर घर की ओर चल दिया ।

माँ ने दरवाज़ा खोला , तो छूटते ही कहा , “ बड़ी देर कर दी आने में ?”
“ हां , आज गंगाजी की ओर गया था । “

“ रामचंद मिला? “
“ आप जानती हैं उसे ?”
“ भला उसे कौन नहीं जानता, उसके जैसा कबीर और कौन गा सकता है?”

अतुल छत पर तारों के नीचे लेटा था और सोच रहा था , तकनीक के सहारे मनुष्य का शरीर और मस्तिष्क भले ही कितनी लंबी यात्रायें कर ले , पर इस तरह मिट्टी में मिलना तो सिर्फ़ भावनाओं के सहारे ही हो सकेगा, और उस अर्थ में रामचंद सचमुच पूरा झल्ला है ।

शशि महाजन-लेखिका

– [ ]
Sent from my iPhone

1 Like · 118 Views

You may also like these posts

किताबें
किताबें
Dr. Bharati Varma Bourai
त्योहारी मौसम
त्योहारी मौसम
Sudhir srivastava
मेरे गुरु जी
मेरे गुरु जी
Rambali Mishra
जीवन दया का
जीवन दया का
Dr fauzia Naseem shad
मेरे प्रभु राम आए हैं
मेरे प्रभु राम आए हैं
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
"एक्सरे से"
Dr. Kishan tandon kranti
मई दिवस
मई दिवस
Ghanshyam Poddar
क्या मालूम तुझे मेरे हिस्से में तेरा ही प्यार है,
क्या मालूम तुझे मेरे हिस्से में तेरा ही प्यार है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
ज़िंदगी - बेवज़ह ही
ज़िंदगी - बेवज़ह ही
Rekha Sharma "मंजुलाहृदय"
गुरु
गुरु
R D Jangra
बस मुझे मेरा प्यार चाहिए
बस मुझे मेरा प्यार चाहिए
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
*****सबके मन मे राम *****
*****सबके मन मे राम *****
Kavita Chouhan
आज खुशी भर जीवन में।
आज खुशी भर जीवन में।
लक्ष्मी सिंह
स्नेहिल प्रेम अनुराग
स्नेहिल प्रेम अनुराग
Seema gupta,Alwar
पिंगल प्रसाद पाकर नवीन छंद सूत्रों की खोज मेरे जीवन की अमूल्
पिंगल प्रसाद पाकर नवीन छंद सूत्रों की खोज मेरे जीवन की अमूल्
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
आइए मेरे हृदय में
आइए मेरे हृदय में
indu parashar
जब आओगे तुम मिलने
जब आओगे तुम मिलने
Shweta Soni
मां से ही तो सीखा है।
मां से ही तो सीखा है।
SATPAL CHAUHAN
परिवर्तन का मार्ग ही सार्थक होगा, प्रतिशोध में तो ऊर्जा कठोर
परिवर्तन का मार्ग ही सार्थक होगा, प्रतिशोध में तो ऊर्जा कठोर
Ravikesh Jha
*खोटा था अपना सिक्का*
*खोटा था अपना सिक्का*
Poonam Matia
नास्तिक सदा ही रहना…
नास्तिक सदा ही रहना…
मनोज कर्ण
3378⚘ *पूर्णिका* ⚘
3378⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
*सर्राफे में चॉंदी के व्यवसाय का बदलता स्वरूप*
*सर्राफे में चॉंदी के व्यवसाय का बदलता स्वरूप*
Ravi Prakash
बिन गरजे बरसे देखो ...
बिन गरजे बरसे देखो ...
sushil yadav
कभी सोच है कि खुद को क्या पसन्द
कभी सोच है कि खुद को क्या पसन्द
पूर्वार्थ
जब कोई,
जब कोई,
नेताम आर सी
आपका अनुरोध स्वागत है। यहां एक कविता है जो आपके देश की हवा क
आपका अनुरोध स्वागत है। यहां एक कविता है जो आपके देश की हवा क
कार्तिक नितिन शर्मा
मंजिल
मंजिल
Swami Ganganiya
- दिल के अरमान -
- दिल के अरमान -
bharat gehlot
जिंदगी एक भंवर है
जिंदगी एक भंवर है
Harminder Kaur
Loading...