प्रकटो हनुमान
प्रकटो हनुमान !
रामायण हमने सुन रखी है, पृथ्वी पर रामदूत आए थे
पवनपुत्र अब पुनः पधारो, भक्तगण आस लगा बैठे हैं।
पड़ोस में दुश्मन बहुत कुटिल हैं, गिद्ध दृष्टि हम पर है
महावीर रौद्र रूप धरि आओ, रिपु का भू से नाश करो।
हे हनुमत ! राष्ट्र-कल्याण करो, उग्रवाद को संहारो
त्राहि-त्राहि करता जग कंपित, शांति फिर क़ायम हो।
प्रक्षेपास्त्र, विषाणु भंडारण कर, देश दंभ में फूले आज
रिपु राष्ट्र कई भारत के हैं,पवनसुत उनको मिले जवाब।
दुर्जन कुछ राष्ट्रद्रोह में लीन, उनका फिर हो समूल नाश
फैले सर्वत्र देश के दुश्मन, बाहर-भीतर हो पूर्ण विनाश।
जन्मभूमि राम की पाए हैं, हो रहा भव्य मंदिर निर्माण
प्रभु आगमन पुनः प्रतिक्षित, आप संग प्रकटो हनुमान !
भारत भू पर पुनः पधारो, प्रभु राम संग लेकर अवतार
विश्व प्रताड़ित नव असुरों से, उनका नाश करो हनुमान!
समय आ गया हे महावीर ! उतरो भू पर फिर एक बार
अत्याचारी, व्यभिचारी जो हैं, धरा मुक्त हो अंतिम बार!
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–राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, मौलिक/स्वरचित।