रात
रात हैरान कर देती है
उफ़्फ़ !
यह कुछ इस तरह परेशान कर देती है
जैसे टूटते तारे ख़ुद गिर जाना
चाहते हों इसकी आग़ोश से
तन्हा चाँद ढूँढे, कोई साथी बतियाने को
स्याह चादर ओढ़े
जैसे कोई नन्हा शरारत करे
किसी बड़े को डराने को
ढूँढे कोई प्रेमी बहाने हज़ार
प्रेयसी के पास जाने को
शायद ढूँढे बहाने यह भी
सूरज की झलक पाने को
उसे रिझाने और मनाने को……….