रात
रात
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गुड़िया का जन्मदिन था। गुड़िया के पिता जी ने गुड़िया को उपहार में साईकिल लाकर दी। नयी साईकिल पाकर गुड़िया बहुत खुश हुई।
रविवार का दिन था। गुड़िया ने देर तक साइकिल चलाई और अपनी सहेलियों के साथ साइकिल रेस भी लगायी। नयी साईकिल की खुशी इतनी अधिक थी कि गुड़िया साइकिल को खुद से जरा देर भी अलग नहीं करना चाहती थी।
कुछ देर बाद साइकिल का खेल खेलते-खेलते अचानक गुड़िया गिर गयी। गिरने के बाद उसे अधिक चोटें आयीं।
अभिभावक ने तुरन्त डॉक्टर को दिखाया। उपचार के बाद डॉक्टर ने आराम करने की सलाह दी तो गुड़िया परेशान होकर माँ से बोली-, “माँ! अब हम स्कूल कैसे जायेंगे?”
माँ ने समझाते हुए कहा कि-, ” परेशान न हो, ठीक हो जाओगी। तब स्कूल पहले की तरह रोज़ जाना। अभी घर पर रहकर ही कुछ दिन पढ़ाई करो।”
जैसे-जैसे समय बीता, गुड़िया की बैचेनी बढ़ती गयी। उसे स्कूल से बहुत लगाव था। पढ़ाई-लिखाई में भी गुड़िया नम्बर वन थी।
रात का समय था। गुड़िया चुपचाप बैठी थी। माँ ने कहा-, ” गुड़िया! तुम उदास क़्यों हो? अब तो तुम ठीक हो रही हो।”
“हाँ, माँ! मैं ठीक तो हो रही हूँ, पर हुई नहीं हूँ। हम ठीक होकर स्कूल जाना चाहते है माँ! आखिर हम कब स्कूल जाने लायक हो जायेंगे?”
इतना कहकर गुड़िया रोने लगी।
माँ ने गुड़िया के आँसू पोंछे और प्यार से समझाया कि-, ” बेटा! देखो, जैसे रात के बाद सुबह आती है.. ये रात का अँधेरा उजाला में बदल जाता है, ठीक इसी तरह तुम जल्द ही ठीक हो जाओगी। ये दु:ख-सुख भी समय बदलते ही बदल जायेगा।”
गुड़िया को बात समझ में आ गयी और मुस्कुराते हुए बोली-, ” ठीक है माँ! हम अब रोयेंगे नहीं। जल्द से ठीक होने की कोशिश करेंगे और कभी गलत तरीके से कोई खेल नहीं खेलेंगे।
शिक्षा-
हमें कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए, जिसके कारण हमारी पढ़ाई बाधित हो।
शमा परवीन
बहराइच (उत्तर प्रदेश)