रात ॲंधेरी सावन बरसे नहीं परत है चैन।
बिरह गीत
रात ॲंधेरी सावन बरसे नहीं परत है चैन।
बोल सखी री कब मिलि पइहैं मेरे पिया से नैन।
बिजली चमके बादल गरजे दिल मोरा घबराए।
ठंडी मादक पवन चले तन मन में अगन लगाए।
कानों को पीड़ा देते हैं प्यार भरे सब बैन। (1)
…..बोल सखी री कब मिलि पइहैं मेरे पिया से
बिरह वेदना ने सबके ही दिल में दर्द जगाया।
छोटा बड़ा जाति मजहब का भेद उसे ना भाया।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई या कोई हो जैन। (2)
…..बोल सखी री कब मिलि पइहैं मेरे पिया से
मिलन की आशा में पल-पल भी लगता युग युग जैसा।
बिरह बेदना की औषधि है मिलन, न रुपया पैसा।
खुशियां लुट जाती है जीवन की रह जाता है शैन। (3)
…..बोल सखी री कब मिलि पइहैं मेरे पिया से
………✍️ सत्य कुमार प्रेमी