रात स्वप्न में रावण आया
रात स्वप्न में रावण आया।
रात स्वप्न में रावण आया,
डर से मुझे पसीना आया,
बोला कविवर मत घबराओ,
मेरी भी कुछ व्यथा सुनाओ,
युगों पूर्व ही हार गया था,
मुझे राम ने मार दिया था
तुमने मुझको पुनः हराया,
पुतला लाए और जलाया।
आज लोग सब हार रहे हैं,
मरे हुए को मार रहे हैं
पुतले फूँक फूँक कर मेरे,
शेखी बड़ी बघार रहे हैं
पुतला फूँकफूँक हरषाते,
जोर जबर पर चल ना पाया।
आज हर तरफ दिखता रावण,
आगे रावण पीछे रावण
कहीँ भ्रूण हत्या करवाता,
कहीं रेप करवाता रावण
इसको कोई हरा न पाया,
।संकेतों में मात्र जलाया
इनका कोई दोष नहीं है,
इन्हें स्वयं ही होश नहीं है
सभी व्यवस्था के मारे हैं,
लेकिन ये मदहोश नहीं हैं
रामराज्य का स्वप्न दिखाया,
रावण किन्तु नहीं मर पाया।
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।