रात भर जागता रहा
दोस्तों,
एक ताजा दर्द भरी ग़ज़ल आपकी मुहब्बत के हवाले!!
ग़ज़ल
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रात भर जागता रहा बस तेरे ख़्याल में,
काश मैं ढ़ूढ़ता जवाब तेरे ही सवाल में।
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मुहब्बत ने तेरी मुझको इतना रुलाया है
फंसता गया तिरे बुने प्यार भरे जाल में।
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तुम इतना गिर जाओगी, न जाना तुमने,
पूछ लेती कभी दिवाना है किस हाल में।
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बदनशीबी मेरी,सुनाता किसको दासताँ ,
कुछ हासिल भी न होता,तेरी मिसाल में।
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सदाऐं तुम्हें देता रहा,तुने कभी सुना नही,
मुड़ कर न देखा तुमने, था मैं बदहाल में।
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सुखनवर मैं “जैदि” टूटे दिल का क्या करुँ,
जिंदा हूँ या मुर्दा खुद ढूँढूँ अपनी खाल में।
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शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
बीकानेर।