*राज सारे दरमियाँ आज खोलूँ*
राज सारे दरमियाँ आज खोलूँ
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प्यारी सी हरकत पर क्या बोलूँ,
ऑंखें हैँ शरबत सी रहूँ डोलूँ।
तपिश से जलता रहे तन-मन,
राज सारे दरमियाँ आज खोलूँ।
भोली सूरत सीरत क्या कहने,
मन पगला पग पग पर डोलूँ।
दागी चेहरा छुपा भी ना पाऊँ,
जो भी हैँ दाग़ मुख पर धो लूँ।
मनसीरत सह ना पाये हर गम,
जी चाहता जी भर कर रो लूँ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)