काला दिन
राजेश को उस दिन ऑफिस में काम निपटाते बहुत देर हो गई थी रात के 8 बज गए , उसे सभी खातों का मिलान कर त्रैमासिक रिपोर्ट बनाकर हेड ऑफिस भेजना आवश्यकता था।
राजेश उस शहर स्थित प्राइवेट कंपनी की शाखा में लेखापाल के पद पर नियुक्त था।
वह रोज शहर अपने गांव से जोकि शहर से 30 किलोमीटर दूर पड़ता था , मोटरसाइकिल से जाकर शाम तक वापस लौट जाता था।
राजेश ने चपरासी को ऑफिस बंद करने का आदेश दिया। चपरासी द्वारा ऑफिस बंद कर चाबी लेने के पश्चात उसने अपनी मोटरसाइकिल स्टार्ट की और वह जल्दी से जल्दी घर पहुंचना चाहता था , क्योंकि गांव के रास्ते के बीच में एक सुनसान जंगल पड़ता था, जिसमें रात के समय बदमाश सक्रिय रहते थे और लूट की वारदात करते थे।
अभी उसने 15 किलोमीटर की दूरी तय की थी ,
जहां से 5 किलोमीटर का जंगली रास्ता शुरू होता था , जो काफी उबड़ -खाबड़ था , जिसमें मोटरसाइकिल की गति धीमी करनी पड़ती थी नहीं तो मोटरसाइकिल के फिसलने का खतरा था।
राजेश मोटरसाइकिल एक निर्धारित धीमी गति से चलाते हुए कुछ किलोमीटर ही निकला था , तब उसे पास की झाड़ी में छिपी हुई कुछ आकृतियाँ नज़रआईं। राजेश का दिल ज़ोर से धड़कने लगा उसे लगने लगा वे बदमाश उसे मार- पीट कर उसका सब कुछ छीन लेगें, तभी उसमे से एक आकृति सड़क के बीचों बीच आ गयी और उसने हाथ देकर राजेश को रुकने का संकेत दिया।
राजेश को मोटरसाईकिल रोकने के सिवा कोई चारा नही था। राजेश ने हेडलाईट के रोशनी मे देखा वह एक 25-30 वर्ष की आयु का एक सिक्ख युवक था। उसने बतलाया वह और उसके साथी सिक्ख युवक जम्मू तवी -पूना (पुणे) झेलम एक्सप्रेस में अमृतसर से पूना(पुणे) के लिए रवाना हुए थे।
यात्रा मे आगरा केंट स्टेशन के बाद मुरैना -ग्वालियर के बीच अचानक गाड़ी चैन खीचने से रूक गई, और धारदार हथियारों से लैस बदमाशों.ने यात्रियों मे से पगड़ीधारी सिक्खों को चुन-चुनकर मौत के घाट उतारना शुरु कर दिया।
हम इस अचानक हुए हमले से घबराकर गाड़ी से उतरकर जान बचाकर भागे और छुपते छुपाते, इस रास्ते तक पहुँचे है, हमने आपकी मोटरसाईकिल को आते देखा तो आपको से मदद की उम्मीद से आपको रोका है।
राजेश देखा वे चार सिक्ख युवक थे। राजेश की समझ में नहीं आया कि वह क्या करें।
कुछ देर सोचने के बाद उसने उन लोगों से कहा आप लोग कृपया अपनी-अपनी पगड़ी उतार कर गांव वालों की तरह साफा बांध लें , और आप मे से एक मेरे साथ पास के पुलिस स्टेशन चले, वहां से पुलिस की मदद लेकर आप लोगों की सुरक्षा व्यवस्था की जा सकती है। बाकी लोग यही पुलिस की मदद आने तक छुपे रहें।
राजेश उनमे से एक युवक को अपने साथ मोटरसाइकिल पर बिठा कर पास के पुलिस स्टेशन पहुंचा।
वहां पर पुलिस इंस्पेक्टर को पूरी जानकारी से अवगत कराया। वहां पहुंचने पर उसे पता चला कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उसकी सुरक्षा में तैनात सिक्ख सुरक्षाकर्मी ने कर दी है। जिसके आक्रोश मे कुछ अराजक तत्वों द्वारा सिक्खों का कत्लेआम मचाया हुआ है।
इंस्पेक्टर ने पुलिस जीप में अपने हेड कांस्टेबल को भेजकर उन सभी छुपे हुए सिक्ख युवकों को थाने बुलवा लिया। और उनसे घटना की जानकारी एकत्रित करके अपने अधिकारियों को अवगत कराया एवं इसकी सूचना भी स्थानीय गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को दी जिससे उन सिक्ख युवकों को पूरी सुरक्षा प्रदान की जा सके और उन्हें सुरक्षित उनके गंतव्य तक पहुंचाया जा सके।
इंदिरा गांधी की हत्या से उत्पन्न आक्रोश की आग इतनी फैली हुई थी चारों तरफ अराजकता का माहौल था ।
कई गुरुद्वारों को जला दिया गया था , एवं सिक्ख व्यापारियों की दुकानों को भी जला दिया गया था। कई निरीह सिक्खों को बेरहमी से कत्ल कर दिया गया। वह सब एक बड़े पैमाने पर इतनी जल्दी हुआ था , कि प्रशासन उसे नियंत्रण करने में पूर्णतः असमर्थ रहा।
राजेश ने दानवता की पराकाष्ठा का स्वरूप जो उस दिन देखा था , जिसमें सिक्खों की लाशें गलियों में बिखरी पड़ी हुईं थीं उनके घर ,दुकानों ,एवं वाहनों एवं धार्मिक स्थलों को आक्रोशित भीड़ द्वारा जला दिया गया था ।
वह खौफ़नाक दृश्य वह ज़िंदगी भर नहीं भुला सकता था , जिसका उसके मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ा था ।
उसे परस्पर प्रेम , संवेदना, सद्भावना, मानवीयता, स्वतंत्रता, सहअस्तित्व , सहकार , सब बातें किताबीं निरर्थक लगने लगीं थीं।
वह वितृष्णायुक्त काला दिन उसके मस्तिष्क पटल पर गहराई से सर्वदा अंकित रहेगा।
नोट: यह कहानी एक सत्य घटना पर आधारित हैं , जिसमे अतिश्योक्ति का समावेश नही है।