*** राजू धन का चौकीदार ***
*** राजू धन का चौकीदार ***
राजू सोच रहा था इस दुनिया में सच्चा भगवान धनवान ही है | इसलिए हमेशा धन संग्रह करना है ,
मेरी तिजोरी , सोना – चाँदी , हिरे – जवाहरात से भरे रहे यही सोते – जागते सोचना, मनन करता हूं |
हमेशा मुझे कमरे के बाहर ही सोना है , खाना – पीना कमरे के बहार ही करना है , कब मेरा संग्रह
चोरी हो जाये , और न जाने क्या-क्या हो जाये दिनरात चिंता में , शंका – कुशंका इसमें ही दिन समय के
साथ चले जा रहे थे | मैं सिर्फ अपना ही चौकीदार बन कर रह रहा हूं |
एक दिन रात्रि में मुझे एक अदृश्य से आवाज़ सुनाई दी , जागते रहो , सावधान ! मैं चिंतन करने लगा |
मैं क्यों जाग रहा हूं | अपने आप पर सोचने लगा | अपने आप पर ही हँसने लगा |
मेरे अंदर अज्ञान है , विवेक की कमी है मुझे समझ आया और मेरी चेतना जागृत हुयी | मैंने तुरंत
सुबह अच्छे भाव से , अच्छे विचारो से तिजोरी से रखा सोना – चाँदी , धन का दान व ऊपयोग करने
का मन किया और देना शुरू किया | अब मुझे हर रात-दिन चौकीदार बन कर नहीं रहना पड़ रहा था ,
चिंता मुक्त हो गया था | मेरा स्वास्थ्य भी सुधर गया था | मैं अपने विवेक से सदा दान व उपयोग
करने लगा हूं | अब मुझे जानकारी हुयी धन का चौकीदार नहीं बनना , धन ही मेरा चौकीदार बने
रहे |
– राजू गजभिये
दर्शना मार्गदर्शन केंद्र , बदनावर जिला धार (मध्य प्रदेश)