राजनैतिक स्वार्थ
जनसेवा नहीं राजनीति व्यवसाय हो गई है,
मूल्यों की राजनीति विलुप्त प्राय हो गई है ।
नैतिकता दूर दूर तक नहीं रही,
स्वार्थपूर्ति ही एकमात्र ध्येय हो गई ।
अपने भी अब चुनाव में ही याद करते हैं,
वो अपने किये कामों का दम भरते हैं।
बूढ़ी आंखों में राजनेता की अलग छवि जिंदा है।
वर्तमान पीढ़ी तो फ़ख्त मौसमी परिंदा है,
राजनेता का अब हल्के से बाहर ही प्रवास रहता है,
लोगों का नहीं, अपने ही भले का प्रयास रहता है।
आज मूल्यों के साथ कोई जुड़ाव नहीं,
नैतिकता और भाईचारे जैसा कोई भाव नहीं।
अब तो सामाजिकता के मूल्य बिखर रहे हैं,
जो लोग मूल्यों पर चलते हैं वो अखर रहे हैं।