राजनीति के राज
विधा-दोहा छंद
कफ़न बेच नेता करें, महलों में आराम।
राजनीति के राज में, सोया है आवाम।।
अच्छे दिन के नाम पर, दिए सभी ने वोट।
राजनीति के राज में, महँगाई की चोट।।
सत्य, सरलता, सादगी, अवसरवादी नाम।
राजनीति के राज में,विफल मिले परिणाम।।
रिश्वतखोरी बढ़ गई, व्यापा भ्रष्टाचार।
राजनीति के राज में, पनप रहा व्यभिचार।।
खुले चुनावी दौर में, राजनीति के राज।
सत्ताधारी कर रहे, घोटाले नित आज।।
संबंधों पर पड़ रही, रोज-रोज अब गाज।
बाप-पूत बतला रह, राजनीति के राज।।
कलयुग गुंडाराज लख, हुआ सत्य हैरान।
राजनीति के राज में, मिला झूठ को मान।।
सत्य, सरलता, सादगी, अवसरवादी नाम।
राजनीति के राज में,विफल मिले परिणाम।।
सहज नहीं है जानना, राजनीति के राज।
लोभ, मोह चश्मा चढ़ा, खुद पर करते नाज़।।
राजनीति के राज की, महिमा अपरंपार।
खाकर पैसा गैर का, लेते नहीं डकार।।
राजनीति के राज में, शकुनी चलते चाल।
द्युत क्रीड़ा में हारकर, पांडव हुए निढ़ाल।।
राजनीति के राज में, बिगड़े सब हालात।
बगुला भगत बने करें, जनता पर आघात।।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)