राजनीति के खेल निराले
( व्यंगात्मक कवि राजनीति के खेल निराले
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राजनीति के खेल निराले l
संसद में छलक रहे मदिरा के प्याले ll
दलित-वलित के दॉव चलाकर
मिल जाती कुर्सी यों ही बैठे-ठाले l
राजनीति के खेल निराले ll
गद्दारों का साथ निभाकर
मंत्रीजी शियासत का स्वाद चखले l
घडियाली आंसू बहाके इज्जत ढकले ll
बात का बतगढ बनाकर
नेताजी माहौल गर्म कराले l
लफ्जों के पैने तीर चलाले ll
आपस में दंगे करवा कर
वेशर्म वोट बैंक बनाले l
कर-कर घोटाले निज घर भरले ll
राजनीति के खेल निराले l
संसद में छलक रहे मदिरा के प्याले ll
* मुकेश…….