राजनीतिक चिराग को
जो सपने छले थे तेज दिल और दिमाग को।
हो क्या गया था सोच स्थल के विभाग को।
उभर आयी है पुरधानी की जो तमन्ना ,
कहीं नजर न लग जाये राजनीतिक चिराग को।।
अभी तक सभी जन वीनर थे बनते।
भ्रष्ट भी भ्रष्टाचार के क्लीनर थे बनते।
हाईकोर्ट ने छेड़ दिया है न जाने किस राग को।
कहीं नजर न लग जाये राजनीतिक चिराग को।।
सबसे ऊपर उठने को जिन्होंने कुटिल गोह पाला।
स्वप्न कहीं हो न जाये इस आरक्षण का निवाला।
कौन अब बुझाए उस उपापोह वाली आग को।
कहीं नजर न लग जाये राजनीतिक चिराग को।।
-सिद्धार्थ पाण्डेय