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16 May 2024 · 1 min read

राग द्वेश से दूर हों तन – मन रहे विशुद्ध।

कुण्डलिया छंद

राग द्वेश से दूर हों तन – मन रहे विशुद्ध।
जप – तप संयम ज्ञान दो शान्ति दूत हे बुद्ध।
शान्ति दूत हे बुद्ध शान्ति की खोज करूं मैं।
जन्म मृत्यु के भय से किंचित नहीं डरूं मैं।
प्राणि मात्र को डस रहे विविध रूप में नाग।
काम क्रोध मद मोह अरु कुंठा द्वेश अनुराग।

………✍️ सत्य कुमार प्रेमी

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