राग दरबारी
सलमिया केहू के नाहीं अब ठोकबे
केहू से हम ना डेराइला
जमीरवा केहू से नाहीं हम बेचबो
केहू के दीहल ना खाइला…
(१)
हर एक मसला पर
खुलके अब बोलेब
देशवा के दुश्मन के
भेदवा सब खोलेब
ओठवा आपन अब नाहीं हम सियबो
अजदिया जानो से प्यारा बा…
(२)
गाली सुनेब चाहे
लाठी हम खाएब
सच्चाई पर चलके
जेलवो में जाएब
ज़हर के प्याला भी हंसके हम पियबो
सुकरात के चेला कहाइला…
(३)
दोसरा के ताल पर
ना कमर हिलाएब
दरबारी राग कबो
हम ना सुनाएब
जे मनवा में आई उहे हम करबो
अंजाम से ना घबराइला…
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Shekhar Chandra Mitra
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