राग और वैराग्य +
मनुष्य के मन में सबसे पहले राग उत्तपन होता है।बाद में वही राग वैराग्य में बदल जाता है।राग—स्वर की विधा का भी नाम राग है । मनुष्य के जीवन में गुरु का भी बहुत महत्व है। जब मनुष्य गुरु की संगत करते करते उसको वैराग्य उत्पन्न हो जाता है।तब वह गृहस्थ जीवन का त्याग कर देता है। और अपनी साधना में लीन हो जाता है। उसे हम वैराग्य कहते हैं। लेकिन मनुष्य गृहस्थ जीवन में भी रहकर भी अपनी साधना कर सकता है।पर! उसे अपने मन को वैराग्य धारण करना होगा। मनुष्य तन से वैरागी तो बन जाता है। और उसका मन संसारिक मोह-माया से विरक्त नही हो पाता है। केवल तन को बदल देने से कुछ नहीं होता है।जब तक हम मन को अपने वश में नही कर पाते हैं।तब तक कोई भी साधना की सिद्धि नही हो सकती है। इसलिए मनुष्य को सबसे पहले मन को वैराग्य धारण करना चाहिए।