राखी
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* * * राखी * * *
आननपोथी रची निजपीठिका
सुन्दर सहज सुबोध
सुदर्शन-मनमोहन जी स्वीकार करो
तुम्हें भेजा है मित्र-अनुरोध
तुम्हें भेजा है मित्र-अनुरोध . . . . .
बड़के भैया मेरे स्नेह का सागर
नटखट छोटा नंदकुमार
दोनों मिल राखी का दीन्हा
छुअनपटभाषी यह उपहार
सोंधी तड़ित राखी में कौंधे
भाई-बहन प्रेम-प्रबोध
तुम्हें भेजा है मित्र-अनुरोध . . . . .
सब दिन वचनभंग के अपराधी
अब नगर रहो या गाम
संपर्क रहेगा तुमसे ए जी
निसिदिन आठों याम
अणुडाक है प्रेम की पाती
कूटाक्षर भटकनिरोध
तुम्हें भेजा है मित्र-अनुरोध . . . . .
देयपत्रक-से मनमोहक हो तुम
आधार जैसे अनमोल
वृहद्हाट मेरा स्वर गूँजे
नहीं निकलें तुम्हारे बोल
संपादी नहीं खर्च हमारे
हटा लो सब अवरोध
तुम्हें भेजा है मित्र-अनुरोध . . . . .
लतपत-रे-गणक कांधे डालूं
हाथों में तुम्हारा हाथ
अधुनातन रथ उड़ता जाए
प्राणपवन रविरश्मि भात
पथकर-कुटिया गति पड़ती धीमी
मन में चढ़ता क्रोध
तुम्हें भेजा है मित्र-अनुरोध . . . . .
भावज मेरी मैया जैसी
सब दोषों का उपचार
रीति-नीति सब वो जाने
नूतन तलवीक्ष्ण अवतार
मेरी बात लछमन-रेखा माने
नहीं करती कभी विरोध
तुम्हें भेजा है मित्र-अनुरोध . . . . . !
वेदप्रकाश लाम्बा ९४६६०-१७३१२