*सजी हुई हैं बाजारों में राखी रंग-बिरंगी (गीत)*
सजी हुई हैं बाजारों में राखी रंग-बिरंगी (गीत)
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सजी हुई हैं बाजारों में, राखी रंग-बिरंगी
1
कोई साठ रुपै की राखी, कोई है दस वाली
कोई जड़ी नगीनों की है, कोई धागा खाली
भाँति-भाँति की राखी सुंदर, क्या ढंगी-बेढंगी
2
कुछ सोने की राखी भी हैं, बिकती बाजारों में
खरीदार उनके आते, महॅंगी-महॅंगी कारों में
भाग्यवान हैं वे जीवन में, देखी कभी न तंगी
3
रक्षा-बंधन के अगले दिन, उठी दुकानें पाते
सन्दूकों में बन्द राखियों के डिब्बे हो जाते
बची राखियों के देखो, छूटे सब साथी-संगी
4
भाई और बहन का नाता, कौन तोल है पाता
इस धागे को जिसने बॉंधा, वह ही गंध बताता
सजी कलाई पर जब राखी, तबियत होती चंगी
सजी हुई हैं बाजारों में, राखी रंग-बिरंगी
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रचयिता:रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451