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27 Jul 2022 · 1 min read

*राखी: कुछ शेर*

राखी: कुछ शेर
_________________________
(1)
आप कैसे इन्हें खरीदेंगे
राखियाँ बाजार में नहीं मिलतीं
(2)
ये दो रुपयों की राखी कब मयस्सर बदनसीबों को
तरसते हैं पहनने के लिए कुछ लोग जीवन भर
(3)
मौहब्बत मर चुकी इन्सानियत के सारे रिश्तों में
अभी भी प्यार जिन्दा सिर्फ है राखी के धागों में
(4)
बड़े सीधे सरल राखी के ये धागे थे बचपन में
न जाने कब पड़ी गॉंठें, न जाने ये कहाँ उलझे
_________________________
रचयिता: रवि बाजार
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99961 95451

Language: Hindi
Tag: शेर
69 Views
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