रहे न रहे
रक़्स-ए-जज़्बात फिर रहे न रहे
ये हसीं रात फिर रहे न रहे
आज ग़ज़लों से गुफ़्तगू कर लूँ
खुल्द-ए-नग़मात फिर रहे न रहे
© शैलेन्द्र ‘असीम’
रक़्स-ए-जज़्बात फिर रहे न रहे
ये हसीं रात फिर रहे न रहे
आज ग़ज़लों से गुफ़्तगू कर लूँ
खुल्द-ए-नग़मात फिर रहे न रहे
© शैलेन्द्र ‘असीम’