Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Aug 2024 · 7 min read

रहिमन धागा प्रेम का

रहिमन धागा प्रेम का ….

संचिता दस वर्ष की थी जब वह माँ के साथ कलकत्ता में मदर टरीसा के आश्रम गई थी, और तभी से उसके अंदर यह विचार घर कर गया था कि वह बड़ी होकर एक बच्चे को ज़रूर दत्तक लेगी और उसे बहुत प्यार देगी ।
शादी का समय आया तो उसने मुदित से कहा , वह शादी के लिए हाँ तभी कहेगी जब मुदित उसे आश्वासन देगा कि वह एक बच्चा गोद ले सकती है । बहुत तर्क वितर्क के बाद मुदित मान गया और उनकी शादी हो गई ।

शादी के दो साल बाद आदित्य हुआ , संचिता ने उसकी देखरेख करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी और जब वह दो साल का हुआ तो उन्होंने एक महीने के समीर को गोद ले लिया । समीर बेहद खूबसूरत और ख़ुशमिज़ाज बच्चा था , जहां जाता लोग उसे गोदी में उठा लेते , जबकि आदित्य के ज़्यादा से ज़्यादा गाल सहला देते । मुदित का अपना बिज़नेस था , जब दोनों बच्चे स्कूल जाने लगे तो संचिता ने मुदित की सहायता करना आरंभ कर दिया , घर की देखभाल के लिए संचिता के बचपन की नौकरानी शारदा को बैंगलोर से दिल्ली बुला लिया , और सख़्त हिदायत दी कि दोनों बच्चों का ध्यान एक सा रखा जाए । शारदा यूँ तो बहुत अच्छी थी , पर वह इस बात को समझ नहीं पा रही थी कि संचिता को बच्चा गोद लेने की क्या ज़रूरत थी , वह भरसक समीर का ध्यान रखती पर बड़े बाप का बेटा वह आदित्य को ही समझती थी । आदित्य इस विशेष पक्षपात से थोड़ा ज़िद्दी और आलसी होने लगा, जबकि समीर आत्मनिर्भर होने लगा । समीर का कमरा हमेशा साफ़ होता , संचिता आफ़िस से आती तो उसके लिए पानी लेने दौड़ता , संचिता यह सब देखती तो आदित्य से कहती, “ सीखो कुछ अपने छोटे भाई से ।”
आदित्य यह सब सुन बेपरवाही से हंस देता ।
आदित्य को लगता समीर हमेशा माँ के आसपास मंडराता रहता है, उसे पास जाने का मौक़ा ही नहीं मिलता, जब भी उनके झगड़े होते संचिता और मुदित समीर को बचाने दौड़ पड़ते । संचिता को लगता, आदित्य समीर से अधिक शक्तिशाली है , वह समीर को दबा देगा , इसलिए उसे बचाना ज़रूरी है , और आदित्य को लगता माँ पापा समीर को अधिक प्यार करते हैं , वह मन ही मन समीर से नफ़रत करने लगा ।

आदित्य और समीर का परीक्षा परिणाम आया , आदित्य नवीं कक्षा में नवें स्थान पर था, जबकि समीर सातवीं में दूसरे नंबर पर , समीर ने सबके सामने उसका मज़ाक़ बनाते हुए कहा, नवीं में नौवाँ, तो दसवाँ में दसवाँ होगा । संचिता और मुदित सुनकर मुस्करा दिये, परन्तु आदित्य जल भुनकर राख हो गया , उसने शारदा से कहा , “ काश मेरा कोई भाई ही नहीं होता । “

शारदा जिसकी सारी सहानुभूति आदित्य के साथ थी , और अब तक दबाये गए सच को उगाने के लिए बेताब थी , ने दुलारते हुए कहा , “ वह तुम्हारा भाई थोड़े है, गोद लिया हुआ है ।”

आदित्य आश्चर्य से सिहर उठा , और भागकर संचिता और मुदित के सामने खड़ा हो गया , वहाँ समीर भी था , उसने समीर की तरफ़ इशारा करते हुए कहा , “ इसे गोद लिया था आपने ?”

वे तीनों यह सुनकर चौंक उठे , संचिता ने झट से समीर को गोदी में समेट लिया , मुदित ने हाथ पकड़कर आदित्य को अपनी गोदी में बिठा लिया ।संचिता ने कोने में खड़ी शारदा को देखा तो उसने नज़रें झुका ली ।
संचिता ने आदित्य को अपने पास खींचते हुए कहा ,
“ हम तुम दोनों को बहुत प्यार करते हैं । “
“ पर ये मेरा भाई नहीं है? “ उसने धीमी आवाज़ में पूछा ।
मुदित ने पास खिसकते हुए कहा , “ तुम दोनों हमारे बच्चे हो ।”
अब तो आदित्य को यक़ीं हो चला , उसने गंभीर स्वर में कहा , “ लेकिन मम्मा ने इसे पैदा नहीं किया ।”

कुछ देर कमरे में गहरी चुप्पी छाई रही , फिर संचिता ने आदित्य को अपने और भी पास खींचते हुए कहा, “ हम समीर को प्यार करने के लिए अपने घर ले आए, इससे हमें एक और बच्चा मिल गया और तुम्हें भाई । “
“ कितना अच्छा हुआ न ? “ कहते हुए मुदित ने आदित्य और संचिता को अपनी लंबी बाहों में समेट लिया , समीर इससे और भी अधिक संचिता की गोदी में छुप गया ।

उस रात, और उसके बाद कई हफ़्तों तक वह चारों इकट्ठे सोते रहे, मानो कुछ ऐसा टूटने का डर हो , जिसे यदि अभी बचाया नहीं गया तो ज़िंदगी फिर कभी हसीन नहीं होगी । मुदित और संचिता देर रात तक दोनों बच्चों से बातें करते, मन पसंदीदा खाने बनते , जहां तक हो सके, संचिता आफ़िस से जल्दी वापस आ जाती ताकि बच्चों को समय दे सके ।

एक दिन आदित्य ने कहा, “ वह अपने कमरे में सोना चाहता है ।”
पक्षपात न हो इसलिए संचिता ने समीर से कहा, “ तुम भी अपने कमरे में सो जाओ ।”

उस रात से समीर को एक अजीब सा सूनापन सताने लगा, जैसे ऐसा कोई नहीं है जिससे वह अपने दिल की बात कह सके , और आदित्य का मन एक अनकहे अभिमान से भर उठा । ऊपर से जो शांत था , संचिता और मुदित की लाख कोशिशों के बावजूद भीतर से टूट चुका था ।

समीर ने जैसे पूरी दुनिया को ठुकराने की क़सम खा ली , वह सारा ध्यान पढ़ाई में लगाने लगा , वह चाहता था , संचिता और मुदित उसपर गर्व करें । आदित्य को अब समीर से कोई शिकायत नहीं थी , अब वह उसके लिए एक घर में पड़ा हुआ सामान था ।

बारहवीं के बाद आदित्य पढ़ने के लिए ऑस्ट्रेलिया चला गया , उसकी अनुपस्थिति में समीर फिर से सहज होने लगा , शारदा घर से दो साल पहले ही जा चुकी थी , और समीर संचिता और मुदित के फिर से क़रीब आता गया ।

समीर को आल इंडिया मैडिकल इंस्टीट्यूट में डाक्टरी की पढ़ाई के लिए एडमिशन मिल गया था , और वह घर पर ही रहता था । दिसंबर का महीना था , आदित्य छुट्टियों में घर आया हुआ था , वह देख रहा था , समीर के संबंध संचिता और मुदित से कितने मधुर हैं , जैसे वह तीनों बिना कुछ कहे एक दूसरे की बात समझ लेते हों । समीर की एकैडमिक एचीवमेंट की बातें तो ऐसे होती जैसे वह आइंस्टाइन हो ।

जिस दिन आदित्य ऑस्ट्रेलिया वापिस जा रह था तो समीर ने उसे एक उन चारों की फ़ोटो फ़्रेम करके उपहार में दी । आदित्य ने फ़ोटो देखते हुए कहा, “ माँ बाप भी मेरे , फ़ोटो के पैसे भी हमारे, तूं मुझे क्या उपहार देगा ?”

समीर व्यथा से भर उठा , उसकी लाख कोशिशों के बाद भी , आदित्य उसे अपनाना नहीं चाहता था । समीर घर से निकल सड़कों पर भटकने लगा , वह सोच रहा था, इसमें उसकी क्या गलती है यदि उसके मां बाप ने उसे गोद ले लिया है तो , एक तरह से अच्छा ही है कि आदित्य जा रहा है , न वह अपने जन्म के लिए दोषी है , न गोद लिए जाने के लिए । वास्तव में वह एक अच्छा इंसान है, प्रतिभाशाली है, उसे आदित्य जैसे साधारण विद्यार्थी की परवाह नहीं करनी चाहिए । पढ लिखकर दूसरों की सहायता करनी चाहिए, ताकि सहायता का यह क्रम दुनिया में बना रह सके।

वह देर रात घर लौटा तो देखा, संचिता और मुदित अभी भी जाग रहे है, आदित्य के जाने के बाद वह बहुत उदासी अनुभव कर रहे थे । समीर ने उन दोनों का हाथ अपने हाथों में ले लिया, और तीनों को चेहरे पर एक स्नेहिल मुस्कान उभर आई।

समय बीतता रहा । समीर सफल डाक्टर बन गया , आदित्य ने मेलबर्न में रीनियूएबल एनर्जी में अपना बहुत बड़ा बिज़नेस खड़ा कर लिया । आदित्य की एक गर्लफ़्रेंड भी थी , कुल मिलाकर वह एक बहुत सुखद मानसिक स्थिति में था । समीर के साथ किये व्यवहार पर उसे अब कभी कभी दुख होता , और उसे यह सोचकर अच्छा लगता कि उसका एक भाई है, जो उसकी अनुपस्थिति में माँ बाप के पास है ।

मुदित बहुत बीमार था , और उससे मिलने आदित्य भारत आया । समीर के कारण इलाज में कोई परेशानी नहीं थी , फिर भी उसे बचाया नहीं जा सका । सारी रस्में दोनों भाइयों ने की , परन्तु समीर उससे खिंचा खिंचा रहा, उसे परेशानी न हो , इसलिए वह ज़्यादा समय बाहर बिताता।

एक दिन दोपहर का समय था , वे तीनों खाना खा रहे थे कि अचानक आदित्य ने समीर से कहा, “ तुम यहाँ हो तो मुझे मम्मी की कोई फ़िक्र नहीं ।”
समीर ने आश्चर्य से उसे देखा ।

“ आय एम सारी ।” उसने समीर का हाथ दबाते हुए कहा ।
“ किसलिए? “
“ वह सब कहने के लिए जो अब तक कहता आया हूँ । “
“तुमने जो कहा , हमेशा सच ही कहा ।”
“ वो बचपना था मेरा , मेरी अपनी हीनभावना ।”
“ हु । “ समीर ने दोनों हाथ थुड्डी के नीचे रखते हुए कहा ।

आदित्य ने थोड़ा रूक कर संचिता से कहा , “ माँ याद है आपको बचपन में एक बार आप ‘ रहिमन धागा प्रेम का मत दीदों चटकाए, टूटे से फिर न जुड़े , जुड़े तो गंठ पड़ जाए ‘ पढ़ा रही थी , और बता रही थी कि आप रहीम से पूरी तरह सहमत है ।”

संचिता हंस दी, “ याद नहीं , पर मैं उससे सहमत हूँ । “
“ पर मैं सहमत नहीं ।” आदित्य ने कहा , “ संबंध बिगड़ने के कितने मनोवैज्ञानिक कारण होते हैं , और मनुष्य भूल करता है, और यदि वह उन कारणों को समझकर अपनी भूल स्वीकार कर लें तो संबंधों को न केवल जोड़ा जा सकता है, अपितु और गहरा भी किया जा सकता है, और हर बार जब आप अपने मन को और समझते चले जाते हो तो मुक्त भी होते जाते हो ।”

समीर मुस्करा दिया ।
“ बस यही , मुझे समीर से यह अंडरसटैंडिंग चाहिए । आय लव यू मैन । “ उसने समीर का फिर से हाथ दबाते हुए कहा ।

समीर ने कोई जवाब नहीं दिया, पर उसका चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा ।

संचिता ने कहा ,” सच कहा तुमने, लाख गाँठों को भी खोला जा सकता है । प्यार में भी उतार चढ़ाव होते हैं , क्योंकि पूरी तरह न हम स्वयं को समझते हैं , न दूसरों को , इसलिए हर गाँठ को खोलना चाहिए, ताकि संबंधों में परिपक्वता आ सके ।”

“ बिल्कुल ठीक । “ आदित्य ने मेज़ पर धौल जमाते हुए कहा और सब हंस दिये ।

—- शशि महाजन
Sent from my iPhone

30 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
***दिल बहलाने  लाया हूँ***
***दिल बहलाने लाया हूँ***
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
इन हवाओं को महफूज़ रखना, यूं नाराज़ रहती है,
इन हवाओं को महफूज़ रखना, यूं नाराज़ रहती है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
अँधेरा
अँधेरा
sushil sarna
मां को नहीं देखा
मां को नहीं देखा
Suryakant Dwivedi
In the midst of a snowstorm of desirous affection,
In the midst of a snowstorm of desirous affection,
Chaahat
परमात्मा
परमात्मा
ओंकार मिश्र
गुरु को नमन
गुरु को नमन
पूर्वार्थ
शेखर सिंह ✍️
शेखर सिंह ✍️
शेखर सिंह
जहर    ना   इतना  घोलिए
जहर ना इतना घोलिए
Paras Nath Jha
आप ही बदल गए
आप ही बदल गए
Pratibha Pandey
ज़िंदगी की कँटीली राहों पर
ज़िंदगी की कँटीली राहों पर
Shweta Soni
मन के सवालों का जवाब नाही
मन के सवालों का जवाब नाही
भरत कुमार सोलंकी
सद्विचार
सद्विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
बूंद बूंद से सागर बने
बूंद बूंद से सागर बने
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
समय की धारा रोके ना रुकती,
समय की धारा रोके ना रुकती,
Neerja Sharma
आजकल
आजकल
Munish Bhatia
विवाह
विवाह
Shashi Mahajan
वो बेजुबान कितने काम आया
वो बेजुबान कितने काम आया
Deepika Kishori
सबको
सबको
Rajesh vyas
उस चाँद की तलाश में
उस चाँद की तलाश में
Diwakar Mahto
सुलेशन छोड़ कर सलूशन ढूंढ
सुलेशन छोड़ कर सलूशन ढूंढ
सिद्धार्थ गोरखपुरी
To my dear Window!!
To my dear Window!!
Rachana
"पत्नी और माशूका"
Dr. Kishan tandon kranti
पकोड़े नालों की गेस से तलने की क्या जरूरत…? ये काम तो इन दिनो
पकोड़े नालों की गेस से तलने की क्या जरूरत…? ये काम तो इन दिनो
*प्रणय प्रभात*
रमेशराज की पेड़ विषयक मुक्तछंद कविताएँ
रमेशराज की पेड़ विषयक मुक्तछंद कविताएँ
कवि रमेशराज
घर बाहर जूझती महिलाएं(A poem for all working women)
घर बाहर जूझती महिलाएं(A poem for all working women)
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
भोर सुहानी हो गई, खिले जा रहे फूल।
भोर सुहानी हो गई, खिले जा रहे फूल।
surenderpal vaidya
तू नहीं है तो ये दुनियां सजा सी लगती है।
तू नहीं है तो ये दुनियां सजा सी लगती है।
सत्य कुमार प्रेमी
*सर्दियों में एक टुकड़ा, धूप कैसे खाइए (हिंदी गजल)*
*सर्दियों में एक टुकड़ा, धूप कैसे खाइए (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
Loading...