Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Aug 2022 · 5 min read

रहने वाली वो परी थी ख़्वाबों के शहर में

शहर में था उसका एक शीशे का महल।
उस महल में देखा करती थी सतरंगी सपने,
उसे क्या पता था सपने झूठे निकलेंगे सारे।
हुआ यूँ कि एक दानव की नज़र पड़ गयी
उस नाज़ुक सी परी पे, उसने तोड़ डाला
एक ही वार में उसका वो शीश-महल,
कर क़ैद उड़ चला उसे सोने के ज़िंदान में।
बहुत हाथ- पैर मारती रही थी, रोई थी,
चिल्लाई थी, सबसे गुहार भी लगाई थी,
पर किसी ने बढ़ कर उसे बचाया नहीं था।
सब मुस्कुरा रहे थे उसके शीश- महल के
टूट जाने पर, उसके यूँ बेबस हो जाने पर।
दानव उस परी का बहुत ख़्याल रखता था,
मोहब्बत से देखा करता था, उसे अपने
पलकों पे बिठा कर रखता था, लेकिन
फिर भी क़ैद रखता था उसे ज़िंदान में।

उसे नफ़रत होती थी दानव से, देख कर
उसे हिकारत से नज़र फेर लिया करती थी
अपनी, उसने बहुत तरतीबे की क़ैद से
निकलने की, हाथों को ज़ख़्मी किया, खिज
कर सर भी फोड़ा अपना, सारी तद् -बीरें
नाक़ाम हुईं,

“हार कर उसने दानव से कहा,
सुनो, तुम जो मुझ से इतनी मोहब्बत करते
हो रिहाई क्यों नहीं दे देते मुझे, “मैं वापस
जाना चाहती हूँ अपने ख़्वाबों के शहर में,
फिर से बनाना चाहती हूँ अपने ख़्वाबों का
शीश- महल।”

सुन कर, दानव ने कहा,
“तुम हो मेरे ख़्वाबों की परी, तुम में मेरी
जान बसती है, कैसे आज़ाद कर दूँ”,
“तुम्हें देखे बिना जीना अब तो मुश्किल है,
बड़ी मुश्किल में अब तो मेरा दिल है”
तुम जो बोलोगी सब मैं करूँगा, पर अब
मैं तुम्हें आज़ाद नहीं करूँगा।”

परी ने लाख कोशिश की, उसे बहलाने की,
पर न हुई कामयाब। थक कर सोचा उसने,
“क्यों न इससे मोहब्बत का झूटा नाटक करूँ,
फिर मौक़ा मिलते ही इसे चपत दे जाऊँ।”

अब वो धीरे- धीरे खुद को बदलने लगी थी,
दानव की तरफ़, मीठी नज़रों से देख कर
मुस्कुराने लगी थी, प्यार से मीठी- मीठी
बातें करने लगी थी।

दानव तो पहले हैरान हुआ। फिर लगा
उसे, शायद उसके प्यार का असर होने
लगा है।

अब उसे भरोसा होने लगा था परी पे।

फिर उसने आज़ाद कर दिया परी को।
मौक़ा पा कर परी ने उसे बेहोशी की
दवा पिला दी। अब वो दानव दुनिया
से बे- ख़बर था।
परी आज़ाद हो गयी थी, निकल गयी थी
वो आसमा की सैर करने।
लेकिन दिल उसका बहुत उदास था, याद
आ रही थी उसे दानव की बार- बार।

दिल बे- सुकून था, मन बेचैन था।
“कभी दिल चाहता था, लौट जाने को,
कभी मन सोचता था, इतनी मुश्किल
से तो आज़ादी मिली है, उस भयानक
चेहरे वाले दानव के पास क्यों जाऊँ,
जिसको देख कर कराहियत होती है। ”

“लेकिन लाख दलील देने के बावजूद,
वो कामयाब नहीं हो पायी, दिल को
समझा नहींं पाई, फिर लौट आई वो
दानव के महल में। ”
उसे भयानक चेहरे वाले दानव से
मोहब्बत हो गयी थी, बे- इंतेहा
हो गयी थी।

उसने तक़दीर के आगे, आख़िर सर
झुका ही दिया था अपना।

मोहब्बत के एहसास ने भुला दिया था,
उसे, उसका ख़्वाबों का शहर।

रहने वाली वो परी थी ख़्वाबों के शहर में,
शहर में था उसका एक शीशे का महल,
उस महल में देखा करती थी सतरंगी सपने,
उसे क्या पता था सपने झूठे निकलेंगे सारे,
हुआ यूँ कि एक दानव की नज़र पड़ गयी
उस नाज़ुक सी परी पे, उसने तोड़ डाला
एक ही वार में उसका वो शीश-महल,
कर क़ैद उड़ चला उसे सोने के ज़िंदान में,
बहुत हाथ- पैर मारती रही थी, रोई थी,
चिल्लाई थी, सबसे गुहार भी लगाई थी,
पर किसी ने बढ़ कर उसे बचाया नहीं था,
सब मुस्कुरा रहे थे उसके शीश- महल के
टूट जाने पर, उसके यूँ बेबस हो जाने पर,
दानव उस परी का बहुत ख़्याल रखता था,
मोहब्बत से देखा करता था, उसे अपने
पलकों पे बिठा कर रखता था, लेकिन
फिर भी क़ैद रखता था उसे ज़िंदान में,
उसे नफ़रत होती थी दानव से, देख कर
उसे हिकारत से नज़र फेर लिया करती थी
अपनी, उसने बहुत तरतीबे की क़ैद से
निकलने की, हाथों को ज़ख़्मी किया, खिज
कर सर भी फोड़ा अपना, सारी तद् -बीरें
नाक़ाम हुईं, “हार कर उसने दानव से कहा,
सुनो, तुम जो मुझ से इतनी मोहब्बत करते
हो रिहाई क्यों नहीं दे देते मुझे, “मैं वापस
जाना चाहती हूँ अपने ख़्वाबों के शहर में,
फिर से बनाना चाहती हूँ अपने ख़्वाबों का
शीश- महल।” सुन कर, दानव ने कहा,
“तुम हो मेरे ख़्वाबों की परी, तुम में मेरी
जान बसती है, कैसे आज़ाद कर दूँ”,
“तुम्हें देखे बिना जीना अब तो मुश्किल है,
बड़ी मुश्किल में अब तो मेरा दिल है”
तुम जो बोलोगी सब मैं करूँगा, पर अब
मैं तुम्हें आज़ाद नहीं करूँगा।”
परी ने लाख कोशिश की, उसे बहलाने की,
पर न हुई कामयाब। थक कर सोचा उसने,
“क्यों न इससे मोहब्बत का झूटा नाटक करूँ,
फिर मौक़ा मिलते ही इसे चपत दे जाऊँ।”

अब वो धीरे- धीरे खुद को बदलने लगी थी,
दानव की तरफ़, मीठी नज़रों से देख कर
मुस्कुराने लगी थी, प्यार से मीठी- मीठी
बातें करने लगी थी।

दानव तो पहले हैरान हुआ। फिर लगा
उसे, शायद उसके प्यार का असर होने
लगा है।

अब उसे भरोसा होने लगा था परी पे।

फिर उसने आज़ाद कर दिया परी को।
मौक़ा पा कर परी ने उसे बेहोशी की
दवा पिला दी। अब वो दानव दुनिया
से बे- ख़बर था।
परी आज़ाद हो गयी थी, निकल गयी थी
वो आसमा की सैर करने।
लेकिन दिल उसका बहुत उदास था, याद
आ रही थी उसे दानव की बार- बार।

दिल बे- सुकून था, मन बेचैन था।
“कभी दिल चाहता था, लौट जाने को,
कभी मन सोचता था, इतनी मुश्किल
से तो आज़ादी मिली है, उस भयानक
चेहरे वाले दानव के पास क्यों जाऊँ,
जिसको देख कर कराहियत होती है। ”

“लेकिन लाख दलील देने के बावजूद,
वो कामयाब नहीं हो पायी, दिल को
समझा नहींं पाई, फिर लौट आई वो
दानव के महल में। ”
उसे भयानक चेहरे वाले दानव से
मोहब्बत हो गयी थी, बे- इंतेहा
हो गयी थी।

उसने तक़दीर के आगे, आख़िर सर
झुका ही दिया था अपना।

मोहब्बत के एहसास ने भुला दिया था,
उसे, उसका ख़्वाबों का शहर।

1 Like · 249 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
✍️ शेखर सिंह
✍️ शेखर सिंह
शेखर सिंह
अपराध बोध (लघुकथा)
अपराध बोध (लघुकथा)
गुमनाम 'बाबा'
"पुरानी तस्वीरें"
Lohit Tamta
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर समस्त नारी शक्ति को सादर
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर समस्त नारी शक्ति को सादर
*प्रणय प्रभात*
दिल को सिर्फ तेरी याद ही , क्यों आती है हरदम
दिल को सिर्फ तेरी याद ही , क्यों आती है हरदम
gurudeenverma198
आ जाये मधुमास प्रिय
आ जाये मधुमास प्रिय
Satish Srijan
गर्दिश में सितारा
गर्दिश में सितारा
Shekhar Chandra Mitra
दर्द देकर मौहब्बत में मुस्कुराता है कोई।
दर्द देकर मौहब्बत में मुस्कुराता है कोई।
Phool gufran
*देकर ज्ञान गुरुजी हमको जीवन में तुम तार दो*
*देकर ज्ञान गुरुजी हमको जीवन में तुम तार दो*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
मुझको कभी भी आजमाकर देख लेना
मुझको कभी भी आजमाकर देख लेना
Ram Krishan Rastogi
राम लला
राम लला
Satyaveer vaishnav
उसे आज़ का अर्जुन होना चाहिए
उसे आज़ का अर्जुन होना चाहिए
Sonam Puneet Dubey
*चार दिवस का है पड़ाव, फिर नूतन यात्रा जारी (वैराग्य गीत)*
*चार दिवस का है पड़ाव, फिर नूतन यात्रा जारी (वैराग्य गीत)*
Ravi Prakash
कभी कभी
कभी कभी
Sûrëkhâ
टूट गया हूं शीशे सा,
टूट गया हूं शीशे सा,
Umender kumar
जो परिवार और रिश्ते आपने मुद्दे आपस में संवाद करके समझ बूझ
जो परिवार और रिश्ते आपने मुद्दे आपस में संवाद करके समझ बूझ
पूर्वार्थ
हर एक अवसर से मंजर निकाल लेता है...
हर एक अवसर से मंजर निकाल लेता है...
कवि दीपक बवेजा
सोच
सोच
Neeraj Agarwal
मैं चल रहा था तन्हा अकेला
मैं चल रहा था तन्हा अकेला
..
वर्तमान युद्ध परिदृश्य एवं विश्व शांति तथा स्वतंत्र सह-अस्तित्व पर इसका प्रभाव
वर्तमान युद्ध परिदृश्य एवं विश्व शांति तथा स्वतंत्र सह-अस्तित्व पर इसका प्रभाव
Shyam Sundar Subramanian
*मैं और मेरी चाय*
*मैं और मेरी चाय*
sudhir kumar
क्या हो तुम मेरे लिए (कविता)
क्या हो तुम मेरे लिए (कविता)
Monika Yadav (Rachina)
पढ़े-लिखे पर मूढ़
पढ़े-लिखे पर मूढ़
Mrs PUSHPA SHARMA {पुष्पा शर्मा अपराजिता}
"स्याह रात मैं उनके खयालों की रोशनी है"
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी"
"चोट"
Dr. Kishan tandon kranti
बीज
बीज
Dr.Priya Soni Khare
चरित्र साफ शब्दों में कहें तो आपके मस्तिष्क में समाहित विचार
चरित्र साफ शब्दों में कहें तो आपके मस्तिष्क में समाहित विचार
Rj Anand Prajapati
मैं तो महज एक नाम हूँ
मैं तो महज एक नाम हूँ
VINOD CHAUHAN
Falling Out Of Love
Falling Out Of Love
Vedha Singh
*** हम दो राही....!!! ***
*** हम दो राही....!!! ***
VEDANTA PATEL
Loading...