विषय-दो अक्टूबर है दिन महान।
यूंही नहीं बनता जीवन में कोई
इन आँखों को भी अब हकीम की जरूरत है..
प्यार का नाम मेरे दिल से मिटाया तूने।
आखिर इतना गुस्सा क्यों ? (ग़ज़ल )
न दिल किसी का दुखाना चाहिए
उपासक लक्ष्मी पंचमी के दिन माता का उपवास कर उनका प्रिय पुष्प
■ आदिकाल से प्रचलित एक कारगर नुस्खा।।
ए चांद आसमां के मेरे चांद को ढूंढ ले आ,
बहुत दिनों के बाद दिल को फिर सुकून मिला।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
जिंदगी अच्छे और बुरे दोनों पलों से मिलकर बनी है, दोनों का अप
मैं गर्दिशे अय्याम देखता हूं।
कहतें हैं.. बंधनों के कई रूप होते हैं... सात फेरों का बंधन,
"घर की नीम बहुत याद आती है"
जिन्हें सिखाया तैरना, दरिया में हर बार
*वही निर्धन कहाता है, मनुज जो स्वास्थ्य खोता है (मुक्तक)*