रमेशराज की 3 तेवरियाँ
1.
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नारे थे यहाँ स्वदेशी के
हम बने विदेशी माल ,हर साल !
अपने हैं ढोल नगाड़े पर
ये मढ़े चीन की खाल , हर साल !
हम गदगद अपने बागों में
अब झूले चीनी डाल , हर साल।
हम वो संगीत शास्त्री हैं
स्वर में अमरीकी ताल ,हर साल !
+रमेशराज
2.
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ये नये दौर की देशभक्ति
नफ़रत फैली हर ओर।अब शोर।।
जिनकी सरपंचों में गिनती
सारे के सारे चोर।अब शोर।।
जो विश्व-शांति की बात करे
उसने ही मारे मोर।अब शोर।।
करुणामय रूप दिखाकर वो
बन बैठा आदमखोर।अब शोर।।
फिर अंधकार छलने आया
मत बोलो इसको भोर।अब शोर।।
रमेशराज
3.
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ये रात रहेगी सदियों तक
तुझको दीखा है भोर। किस ओर।।
सावन में सूखा ही सूखा
अब नाच रहा है मोर। किस ओर।।
नदियों में तपता रेत दिखे
फिर जल की उठी हिलोर। किस ओर।।
ये किधर क्रांति का स्वर गूँजा
दीनों में आया जोर। किस ओर।।
क्या फंसा दिया बेबस कोई?
पकड़ा है आदमखोर। किस ओर।।
रमेशराज